दयाशंकर शुक्ल सागर

Monday, December 2, 2013

काशी से कैलास तक का सफरनामा



हेमंत शर्मा की किताब "द्वितीयोनास्ति" कई मायनों में अद्भुत है। रविवार को संत मोरारी बापू के हाथों से इस पुस्तक का दिल्ली में लोकार्पण हुआ। करीब तीन घंटे का यह समारोह आध्यात्मिक, राजनीतिक, साहित्य और पत्रकारिता के दिग्गजों का एक दुर्लभ संगम था। एक तरफ सुप्रसिद्ध कथा वाचक मोरारी बापू और स्वामी रामदेव थे तो दूसरी तरफ साहित्य के आचार्य स्वामी नामवर सिंह और मीडिया मुगल रजत शर्मा। एक तरफ भाजपा के राजनाथ सिंह तो दूसरी तरफ कांग्रेस के मोतीलाल वोरा। दिलचस्प संयोग है कि ये सब लोग कहीं न कहीं काशी या कैलास से एक पर्वत श्रृंखला की तरह जुड़े रहे हैं। मसलन संत मोरारी बापू तो हेमंत शर्मा को यात्रा के दौरान कैलास पर कथा बाचते मिल गए थे। और वोराजी ने यूपी का गवर्नर रहते हेमंतजी को पहली बार हिमालय के हेलीकाप्टर से दर्शन कराए थे। कैलास जाना था रजत जी को लेकिन मौसम खराब होने के कारण बीच रास्ते से हेलीकाप्टर वापस मुड़वना पड़ा। लेकिन अगले ही साल हेमंत शर्मा काशी की सेना लेकर कैलास पर्वत छू आए। और लौटे भी तो खाली हाथ नहीं अनुभव और अनुभूति दोनों की गठरी अपने साथ ले आए।
संत मोरारी बापू ने एक बहुत अच्छी बात कही कि हम जो भी लिखते हैं, कहते हैं, वह सिर्फ हमारा अनुभव है। अनुभूति इसके ऊपर की चीज है। जहां शब्द खत्म हो जाते हैं। तब संवाद संभव नहीं हो पाता। अनुभूति प्रकट होती है आंसुओं से, जो झरने से झर झर कर बहने लगते हैं। कैलास का यह यात्रा वृतांत ऐसा ही है। मैंने इलाहाबाद में इस किताब का पहला ड्राफ्ट पढ़ा था जिसे हेमंतजी ने मेल किया था। अब किताब सामने है। मैं देख रहा हूं जहां शब्द खो गए वहां अनुभूति को हेमंत जी ने किसी प्रोफेशलन प्रेस फोटेग्राफर की तरह कैमरे में कैद कर लिया। प्रभात प्रकाशन ने उन तस्वीरों को ज्यों का त्यों छाप दिया। नामवर सिंह ने कहा-कैलास यात्रा पर इतनी अच्छी किताब उन्होंने आज तक नहीं पढ़ी। संत मोरारी बापू ने कहा इस किताब का लोकार्पण करके उनके हाथ शुद्ध हो गए। मेरे बगल में बैठे वरिष्ठ खेल पत्रकार पद्मपति शर्मा तो बापू की भावुक कथा सुन कर रोने ही लगे। भोजपुरी में कहने लगे-सागर, कसिए वाले ही अइसा लिख सकते हैं। उनका आशय काशी वालों से था। मैंने देखा है काशी वाले खुद को काशी का होने का क्रेडिट देने से कभी चूकते नहीं। सब चलते फिरते इश्तेहार हैं। नामवर हो या पद्मपति शर्मा या खुद हेमंत शर्मा। लेकिन सब में एक बात कॉमन है-कबीर वाला फक्कड़पन। इसलिए हेमंत शर्मा ने कहा-ये किताब मैंने गणेश की तरह लिखी भर है। काशी स्वर्ग का द्वार है
तो कैलास स्वर्ग। इसलिए हम स्वर्गवासी हो गए।
प्रो. कृष्‍णनाथ ने इस किताब की अद्भुत समीक्षा की है। लिखा है-हेमंत के साथ कैलास मानसरोवर की अंतर्यात्रा कर आया। कैलास का दरस-परस और मानसरोवर के जल में स्नान-मज्जन तथा पान और तर्पण। ऐसा पहली बार हुआ। क्या भाव है। क्या भाषा। ऐसी भाषा काशी में ही लिखी जा सकती है। अन्यत्र नहीं। वैसा इसका वर्णन अनेक  बार पढ़ चुका हूं। किन्तु ऐसा डूब कर नहीं। क्या ऐसा फिर हो पाएगा? कोई बताए।