दयाशंकर शुक्ल सागर

Monday, August 8, 2016

आदम हव्वा और हिन्दुस्तान



इस्लाम में हजरत आदम की कथा है। कुरान के मुताबिक ये दुनिया, फरिश्ते और जिन्न आदि को बनाने के बाद खुदा ने मिट्टी और पानी मिलकर अपना ही एक प्रतिरूप तैयार किया। वह पहला इंसान था जिसे उसने आदम का नाम दिया। उसकी बायीं पसली से हव्‍वा बनाई। जो उनकी बीवी बनी। दोनों जन्नत के खूबसूरत बाग में रहते थे। शैतान के बहकावे में आकर दोनों ने खुद का हुक्म तोड़ा। इस जुर्म के लिए उन्हें जन्नत से निकाल कर धरती पर भेज दिया गया और खुदा ने शाप दिया तुम्हारी औलादें मेहनत करके ही खाएंगी। ये बड़ी मशहूर कहानी है जो लगभग थोड़े बदले हुए रूप में कुरान से बहुत पहले लिखे गए बाइबिल में भी मिलती है। लेकिन आदम और हव्वा धरती के किस कोने में उतारे गए यह किसी को नहीं पता। अरब वासियों की मान्यता है कि खुदा ने उनको हिन्दुस्तान में उतारा था। इसे उन्होंने "हिन्दुस्तान जन्नतनिशां" नाम दिया। उनकी मान्यता है कि उनका पहला कदम सरन्दीप पर पड़ा। प्राचीन स्वर्णद्विप यानी वर्तमान लंका को अरब वासी इसी नाम से जानते थे। उनकी मान्यता है कि आदम और हव्वा के पांव के निशान आज भी वहां के किसी पर्वत पर मौजूद हैं।
भारत के जिस प्रदेश में हजरत आदम रहे उसका नाम दजनाय था। यानी भारत वर्ष का दक्खिनी भाग। एक जमाने में अरब देश में इसी दक्षिण भाग से अनके तरह के सुदंधित पदार्थ व फल, मसाले निर्यात होते थे। उनका कहना था कि यह सब सुगंधित द्रव्य हजरत आदम अपने साथ जन्नत से लाए थे। इनमें छुआरे के अलावा नीबू और केले थे। एक अमरूद भी जन्‍न्त का फल था जो भारत में ही पाया जाता था।

मैं साफ कर दूं यह कहानी दक्षिणपंथी इतिहासकारों की गढी हुई नहीं है। ये अरबी इतिहासकारों की कथाएं हैं। इमाम जलालुद्दीन अल सुयूती की मशहूर किताब "तफसीर दूर्रे- मंसूर " के पहले ही खंड के 55वें सफे पर आपको ये कहानी मिल जाएगी। ये किताब 1505 ईसवी की है। ये कहानी उन्होंने इब्ने जरीर, इब्ने अबी हातिम और हाकिम के हवाले से दी है। ये सब आठवीं और नवीं सदी के इस्लामिक स्कालर रहे हैं।
एक कदम और आगे बढ़ते हुए मीर आजाद बिलग्रामी ने अपनी मशहूर किताब "सुबहतुल मरजान फी आसरे हिन्दोस्तान" में भारत की तारीफ में लिखा-हजरत आदम सबसे पहले भारतवर्ष में ही उतरे और यहीं उन पर ईश्वरी आदेश आया। तो यह समझना चाहिए कि यह वह देश है जहां सबसे पहले ईश्वरी संदेश आया था। इससे प्रमाणित होता है कि हजरत मुहम्मद साहेब का स्वभाविक लगाव हिन्दुस्तान से था। इसीलिए वह कहते थे- "मुझे भारतवर्ष की ओर में ईश्वरीय सुगंध आती है।" (ऐसा जिक्रकिसी हदीस में आया है)। बताता चलूं कि मीर आजाद बिलग्रामी 18सदी में भारत में अरबी, उर्दू और फारसी के बड़े स्‍कालर माने जाते हैं। https://en.wikipedia.org/wiki/Azad_Bilgrami

एक वैज्ञानिक सोच रखने के कारण में इन कथाओं को ऐतिहासिक घटना नहीं मान सकता। ये भी एक मिथ है जैसा कि आदम हव्वा, रामायण और महाभारत की कहानियों को एक मिथक माना जाता है। मिथक बन चुकी घटनाओं को प्रमाणित करना तकरीबन नामुमिकन है जब तक किसी टाइम मशीन का आविष्कार नहीं कर लेते। लेकिन फिर भी अपने अपने मिथों पर हर देश की प्रजा कहीं न कहीं आस्‍था रखती है। इन्हें हम नजरअंदाज नहीं कर सकते।

जिन किताबों का जिक्र मैंने यहां किया वह अरबी और उर्दू के प्रामाणिक ग्रंथ है। इनमें से कुछ नेट पर भी उपलब्‍ध हैं। जिन इस्लामिक इतिहासकारों का मैंने हवाला दिया वे मामूली नहीं हैं। हर नाम के साथ उनका शानदार इतिहास आपको नेट पर मिल जाएगा। लेकिन इन किताबों की कभी कोई चर्चा नहीं करता। पाठ्यक्रमों में यह कहानी आपको कहीं नहीं मिलेगी। क्योंकि हमारे सारे पाठ्यक्रम मार्क्सवादी इतिहासकारों ने गढे हैँ जो ब्रिटिश इतिहासकारों के प्रभाव से कभ्री मुक्त नहीं हो पाए। जैसे दक्षिणपंथी इतिहासकार आर्यो के मूल स्‍थान की लड़ाई में ही उलझे रहे। जबकि इस तरह के तथ्य सभी स्कूली बच्चों को पढ़ाए जाने चाहिए जो हमारी कौमी एकता को न केवल मजबूत करेंगे बल्कि यहां के मुसलमान भाई भी इस धरती पर जन्म लेने पर फख्र करेंगे।