संभोग और सेक्स को पाप मानने वाले महात्मा के लिए यह वाकई शर्मनाक स्थिति थी। तो फिर सेक्स या काम वासना से बचने के लिए क्या किया जाए? इसका एकमात्र उपाय था - ब्रह्मचर्य। पर महात्मा की ब्रह्मचर्य की व्याख्या बहुत जटिल थी। महात्मा के मुताबिक ‘वह व्यक्ति ब्रह्मचारी है जिसका मन काम वासना से मुक्त है, जो परमात्मा का निरंतर चिंतन करते हुए ऐसी अवस्था में पहुंच गया है कि जाने या अनजाने उसका वीर्य - स्खलन नहीं होगा, जो सुंदर - से - सुंदर स्त्री के साथ नग्न लेटे और उसके बावजूद उसको कामोत्तेजना न हो।’16 महात्मा की इस परिभाषा से साफ था कि जब तक ‘सुंदर - से - सुंदर स्त्री के साथ नग्न न लेटा’ जाए तब तक यह तय कर पाना कठिन है कि ब्रह्मचारी ने वाकई ब्रह्मचर्य साध लिया है या नहीं।
महात्मा के मुताबिक ऐसा व्यक्ति वही हो सकता है जो असत्य न बोले। जो न किसी का अहित सोचे और जो न किसी का अहित करे। जो क्रोध और द्वेष की भावना से सर्वथा मुक्त हो और ‘भगवद्गीता’ में बताए अर्थ के अनुसार अनासक्त हो। ऐसे व्यक्ति को वह ‘पूर्ण ब्रह्मचारी’ कहते थे और वह खुद ऐसे ही ‘पूर्ण ब्रह्मचारी’ बनना चाहते थे। शायद इसीलिए उन्हें 76 साल उम्र में भी इस बात की जांच करने की जरूरत पड़ी कि ‘सुंदर - से - सुंदर’ और कम उम्र की लड़कियों के साथ ‘नग्न’ लेट कर वह ‘कमोत्तेजित’ होते हैं या नहीं। 69 साल की उम्र में भी जाने - अनजाने उनका वीर्य स्खलित हुआ।
भारतीय संस्कृति और परंपरा में ब्रह्मचारी के लिए स्त्री स्पर्श त्याज्य है। महात्मा भी मानते थे कि ब्रह्मचारी को ‘काम वासना पूर्वक’ किसी स्त्री को न छूना चाहिए, न उसे देखना चाहिए और न ही उसके बारे में सोचना चाहिए। महात्मा ने ‘काम वासना पूर्वक’ शब्द अपनी तरफ से जोड़ दिया था। उन्हें लगा कि यह भूल हमारे शास्त्रों में हो गई। यह शब्द छूट गया। शास्त्रकारों ने सोचा कि सामान्य मनुष्य के लिए ऐसे मामलों में निष्पक्ष और तटस्थ निरूपण संभव नहीं है। उसके लिए यह तय कर पाना मुश्किल है कि वह ‘काम वासना’ से प्रेरित होकर किसी स्त्री का स्पर्श कर रहा है या वह उस भाव से मुक्त है। फिर काम विकार कब उत्पन्न हो जाए यह तय करना भी कठिन है। इसलिए सामान्य ब्रह्मचारी स्त्री स्पर्श से दूर ही रहे तो अच्छा है। दिलचस्प है कि सामान्य लोगों के लिए महात्मा ब्रह्मचर्य की इस शास्त्रीय परिभाषा को उचित मानते थे। लेकिन महात्मा खुद को इनसे अलग रखते। क्योंकि ऐसा करने से उन्हें महिलाओं के स्पर्श, उनके साथ सह - शयन की छूट मिल जाती थी। एक तरफ महात्मा कहते कि वह ‘बाहरी वासनाओं से मुक्त’ हैं। लेकिन दूसरी तरफ यह भी कहते कि - ‘अधिकतर स्त्रियों के प्रति निर्विकार होते हुए भी मैं यह दावा नहीं कर सकता कि स्त्री - मात्र के प्रति मैं सदा ही निर्विकार रहता हूं।’17
इन विरोधाभासी बातों के बावजूद महात्मा ने मान लिया कि उनके मन में कोई काम वासना शेष नहीं है। वह नग्न स्त्रियों के साथ सोते हैं फिर भी उनकी इंद्रियां सोई रहती हैं। मन में काम वासना का तब कोई स्थान नहीं रहता। लेकिन जब महात्मा किसी स्त्री को अपने साथ नग्न सुलाने की तैयारी करते तब क्या उनके मन में काम वासना का भाव नहीं रहता था? काम वासना की जांच का विचार अपने आप में इस बात का प्रमाण है कि आप अभी काम वासना से मुक्त नहीं हैं। महात्मा मानते थे कि ‘पुरुष को नारी का स्पर्श अपवित्र नहीं करता, बल्कि प्रायः वह स्वयं ही इतना अपवित्र रहता है कि नारी का स्पर्श करने योग्य नहीं होता।’ महात्मा खुद को पवित्र मानते थे इसलिए उनका स्पर्श भी पवित्र था। पर क्या महात्मा के प्रयोग की साझीदार महिलाएं भी मन, कर्म और वचन से उतनी ही पवित्र थीं?
शायद नहीं। कंचन और आभा ने तो खुद स्वीकार किया था कि उनकी दिलचस्पी ‘ब्रह्मचर्य’ में नहीं है वह तो ‘संभोग सुख’ चाहती हैं। फिर महात्मा उनके साथ ‘नग्न’ सोए। डॉ. सुशीला नैयर ने तो महात्मा की सेवा के लिए उनके पास रहने को लेकर हंगामा खड़ा कर दिया था। मनु कम उम्र की थी इन बातों की गंभीरता से अनभिज्ञ थी। ब्रह्मचर्य साधने के लिए महात्मा ने अपने नियम, कानून और मर्यादाएं खुद बनाईं थीं। लेकिन यह मर्यादाएं हर बार टूटती रहीं। महात्मा खुद समझ नहीं पा रहे थे कि ऐसा क्यों हो रहा है। उन्होंने लिखा - ‘मुझे इस संबंध में कुछ शंका उत्पन्न हो गई है कि किसी ब्रह्मचारी या ब्रह्मचारिणी को क्रमशः स्त्री या पुरुष के साथ अपने संपर्क के बारे में अपने ऊपर किस सीमा तक मर्यादा लगानी चाहिए। मैंने जो मर्यादाएं तय की हैं, उनसे मुझे संतोष नहीं है। ये मर्यादाएं कैसी होनी चाहिए, अभी नहीं कह सकता। प्रयोग कर रहा हूं। अपनी परिभाषा के अनुसार मैंने कभी पूर्ण ब्रह्मचारी होने का दावा नहीं किया है।’18
अविवाहित लड़कियों को लेकर महात्मा के मन में एक खास तरह का आकर्षण था। महात्मा
मानते थे कि ‘लड़कियों के लिए आदर्श अखंड ब्रह्मचर्य होना चाहिए, उसी में आदर्श विवाह समाया हुआ है।’ महात्मा के आश्रम में अधिकांश लड़कियां ही थीं। उनके जीवन में उनके करीबी संपर्क में आने वाली भी अधिकांश अविवाहित कन्याएं ही थीं जिनकी उम्र 19 से 25 साल के बीच थी। वह चाहे प्रेमा हो, डॉ. सुशीला नैयर हो या मनु गांधी। महात्मा के ब्रह्मचर्य का प्रयोग भी लड़कियों के कंधे पर हाथ रखने से शुरू हुआ। शुरुआती दिनों में महात्मा साबरमती आश्रम में लड़कियों के कंधे पर हाथ रखकर टहलने जाया करते थे। आश्रम के लोगों को यह बात आपत्तिजनक लगने लगी थी। हालांकि इसमें आपत्ति की कोई खास वजह नहीं थी क्योंकि तब महात्मा 59 साल के हो चले थे। ऐसे में अगर इस उम्र का कोई व्यक्ति अपनी पोती की उम्र की लड़कियों का सहारा ले तो इसमें प्रथम दृष्ट्या कुछ गलत नहीं होना चाहिए था। वह भी ऐसे व्यक्ति के बारे में जिसे लोग महात्मा कहते थे। फिर भी महात्मा के आश्रम के ही लोगों ने इस पर अपनी आपत्ति दर्ज की थी। बात इतनी बढ़ गई कि महात्मा को सफाई देनी पड़ी। उन्होंने कहा कि ‘लड़कियों के कंधे पर हाथ रखने में मुझे कभी कोई दोष दिखाई नहीं दिया क्योंकि मैं जानता हूं कि वे मेरे लिए बेटियों के समान ही हैं।’19
स्त्री और पुरुष के बीच एक - दूसरे के प्रति एक सहज आकर्षण होता है। महात्मा इसे स्वाभाविक नहीं मानते थे। वह कहते कि अगर यह प्रकृति - प्रेरित है तो प्रलय होने में देर नहीं। महात्मा कहते स्त्री और पुरुष के बीच सहज आकर्षण वह है जो भाई - बहन, मां - बेटे और बाप - बेटी के बीच होता है। खुद महात्मा की अपनी कोई बेटी नहीं थी इसलिए महात्मा दूसरी लड़कियों को बेटी बनाने में जरा भी देर नहीं लगाते थे। लेकिन इन बेटियों के साथ उनका रिश्ता वैसा नहीं होता था जैसा कि हिंदू समाज में या किसी भी अन्य सभ्य समाज में पिता और बेटी का होता है। अपने मित्र हेनरी पोलक की बहन मॉड को महात्मा ने ‘अपरिपक्व ज्येष्ठ पुत्री’ का दर्जा दिया था यह जानते हुए भी कि मॉड उनके बारे में किस तरह के ख्याल रखती है। ऐसी पुत्री के बारे में, जो स्टेशन पर उन्हें विदा करने आई थी, महात्मा ने पोलक को लिखा - ‘...उसने मुझसे हाथ नहीं मिलाया बल्कि मुझसे चुंबन चाहती थी।’20
महात्मा मानते थे कि - ‘यह ठीक है कि हिंदू समाज में ऐसी मान्यता है कि पिता पुत्री का स्पर्श करते हुए भी डरे किंतु मुझे तो यह विचार गलत जान पड़ता है; यह विचार ब्रह्मचर्य का शत्रु है। जिस ब्रह्मचर्य में ऐसा भय बना रहे वह तो ब्रह्मचर्य ही नहीं है।’21
महात्मा ने मीरा, प्रेमा कंटक, डॉ. सुशीला नैयर, अस्तुस्सलाम, लीलावती आसर, कंचन, आभा और मनु जैसी कितनी ही अविवाहित लड़कियों को ‘बेटी’ का दर्जा दिया। लेकिन इन लड़कियों से महात्मा ‘नग्न’ होकर मालिश कराते। उनके साथ वह ‘नग्न’ होकर सोए। इन्हें महात्मा ने अपने ब्रह्मचर्य के प्रयोग का हिस्सेदार बनाया। लेकिन सब लड़कियां केवल उनके प्रयोग की साथी थीं ऐसा भी नहीं था। कुछ लड़कियों को उन्होंने सहशयन के नाम पर अपने पास सुलाया।22
महात्मा प्रसिद्ध समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण की पत्नी प्रभादेवी के साथ भी सोए थे। लेकिन बकौल महात्मा प्रभावती उनके प्रयोग का हिस्सा नहीं थी। महात्मा ने बताया कि - ‘मैंने प्रभा को जान - बूझकर प्रयोग की परिधि में गिना है। शायद नहीं गिनना चाहिए। जब मेरे मन में प्रयोग का विचार भी नहीं उठा था, उसके पहले भी अनेक बार मुझे गरमी पहुंचाने के लिए वह मेरे साथ सोई हैं। जब वह थर - थर कांपती मेरे लिए धरती पर पड़ी होती थीं, तब मैं उसे पास समेट लेता था।’23 जब महात्मा से कहा गया कि ऐसे प्रयोग छोड़ें क्योंकि इसके परिणाम बहुत खतरनाक हैं। तब महात्मा का जवाब होता - ‘सहशयन की बात सर्वथा छूट नहीं सकती है। इस चीज को मैं ऐसा ही करो (कहो?), जब विलायत गया तब से आचार में करता आया हूं। किसी को हानि नहीं पहुंची है।’24
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