कल रात मेरी किताबों की रैक में अचानक राजेंद्र यादव की किताब "नरक ले जाने वाली लिफ्ट' दिख गई। अचानक दिमाग में एक बेतुका ख्याल कौंधा इस वक्त राजेन्द्र यादव कहाँ होंगे? क्या इसी लिफ्ट में होंगे ? या अपने गंतव्य स्थल तक पहुंच गए होंगे ?
मैं गहरी सोच में पड़ गया। मौत के बाद इंसान कहां जाता है। ये कोई नहीं जानता। साइंस भी इस सवाल पर खामोश है। हम मौत से शायद डरते ही इसलिए हैं क्योंकि हम इस रहस्य से अनजान हैं कि मौत के बाद इंसान कहां जाता है ? जन्नत और ज़हन्नुम जैसी जगहें मज़हबी मुनाफाखोरों ने अपने मतलब के लिए इज़ाद की हैं। मजहबी किताबों में वो स्वर्ग की हसीन तस्वीर दिखा कर भरमाते हैं और नरक का खौफ़नाक मंजर दिखा कर डराते हैं। करीब दो साल पहले मेरी मां इस दुनिया से विदा हुई। तेरह दिन के उन तकलीफदेय शोक के दिनों मैं पूरी गरूण पुराण पढ़ गया। सिर्फ ये जानने के लिए कि मां इस समय कहां होगी ? कैसी होंगी ? शायद इस किताब से कोई सुराग मिले। गरूण पुराण में कोई उन्नीस हज़ार श्लोक हैं। बाद के आधे हिस्से में सारे श्लोक मौत के बाद के जीवन से जुड़े हैं। इस किताब में न जाने कितने तरह के नरक का ब्यौरा है। हर अपराध के लिए अलग दंड है और हर दंड के लिए अलग नरक। दो नरकों के बीच में भी एक नरक है। मैंने थक कर किताब बंद कर दी। अच्छे लोग मर कर कहां जाते हैं इस बारे मैं ये किताब कुछ नहीं बताती। अगर में गरूण पुराण को ठीक समझा हूँ तो आज की दुनिया का एक आदमी भी स्वर्ग के सफ़र पर जाने के लिए इलेजिबिल नहीं है। महात्मा गांधी से लेकर अन्ना तक कोई नहीं। मैं तो कत्तई नहीं। दिलचस्प है कि इस किताब में सारे वर्जित गुनाह करने के बावजूद नरक से बचने के तमाम उपाय दिए गए हैं। लेकिन हर उपाय की अनिवार्य शर्त ये है कि आप पंडितओं और पुरोहितों की जेबें गर्म करें। मूर्ख से मूर्ख इंसान भी गरुण पुराण पढ़ कर समझ जाएगा कि ये किताब इस देश की गरीब, अनपढ़ और अनघड़ जनता को ठगने का षड्यंत्र है। और ये साजिश ज़ाहिरा तौर पर ब्राह्मणों ने रची है क्योंकि अपने फायदे के लिए पुराण वुराण लिखना उन्हीं का काम था।
"नरक ले जाने वाली लिफ्ट' में राजेंद्र जी ने दुनिया की बेहतरीन कहानिओं का अनुवाद किया है। "नरक ले जाने वाली लिफ्ट' इस किताब की अंतिम कहानी है जिसके लेखक हैं पार लागर क्विस्ट। यह कहानी एक बेवफ़ा बीवी की है जो अपने शौहर से लड़ कर अपने प्रेमी मि.स्मिथ के साथ अच्छा वक्त बिताने एक होटल में जाती है। दोनों एक साथ लिफ्ट से नीचे कमरे में जाने के लिए उतारते हैं। लिफ्ट में ही उनका रोमांस शुरू हो जाता है। तभी अचानक उन्हें महसूस होता है कि लिफ्ट तो रुक ही नहीं रही। वह नीचे और नीचे की तरफ दौड़ी चली जा रही है। दरअसल लिफ्ट ख़राब हो गई थी और वह सीधे नरक की ओर जा रही थी। दोनों सचमुच नरक पहुंच जाते हैं। वहाँ शैतान उन्हें रोमांस के लिए एक नारकीय कमरा मुहैया करता है। इससे पेशतर वे रोमांस शुरू करें कोई दरवाज़ा खटखटाता है। वह वेटर होता है जो नीम अँधेरे कमरे में रखे गिलास में शराब डालता है। उसकी कनपटी पर गोली का एक ताज़ा निशान है। लैंप कि रौशनी में वह औरत वेटर का चेहरा देख कर चीख उठती है। हे ईश्वर आर्वेड तुम ? वह कोई और नहीं बल्कि उसका शौहर था !
खैर इस कहानी का मेरी इस पोस्ट से कोई लेना देना नहीं। मेरी
दिलचस्पी राजेंद्र यादव में है। उम्र के लम्बे फासले के बावजूद वो मेरे
दोस्त थे। उम्र का लिहाज़ न करके मैं उनसे कोई भी अटपटा सवाल पूछ सकता था।
लेकिन उनके प्रति एक अनोखे तरह के सम्मान का भाव हमेशा रहता। अगर मैं उनसे
संवाद कायम कर पता तो जरुर पूछता की आप कहाँ हैं? इस नामुराद दुनिया के उस
पार का जहान कैसा है ? क्या वहाँ आपको सिगार मिल जाती है। लिखने के लिए
कागज़ कलम देते हैं वो लोग ! क्या वहाँ शराब का इंतज़ाम है। क्या वहाँ भी
कमीने ब्राह्मण दलितों और पिछड़ों को सताते हैं ? क्या वहाँ भी रेप होते
हैं। वहाँ किसी तरह का स्त्री विमर्श होता है ? क्या आपको कहीं परमानंद
श्रीवास्तव या ओम प्रकाश वाल्मीकि दिखे जो आप के पीछे -पीछे ही गए हैं? हो
सकता है वो अभी नरक की लिफ्ट में हों। पर मुंशी प्रेमचंद तो वहाँ जरुर
होंगे। उनको गए तो एक ज़माना हो गया। उन्होंने तो छूटते बनारसी अंदाज़ की
भोजपुरी में आपसे पूछा होगा-" का हो राजेन्दर हमार हंस के तू कउआ बना
देहलअ" इस पर राजेन्द्र जी हंस कर कहते होंगे -घबराइए नहीं मुंशी जी आपकी
खबर लेने वाले दलित चिंतक पीछे आ रहे हैं।
ये मज़ाक नहीं एक पीड़ा है जो मेरे अंदर घनीभूत हो रही है। हंस
शायद आगे भी छपे पर अब उसमें कांटे की बात नहीं होगी। कहानियां होंगी पर
उसमें राजेंद्र यादव की छाया नहीं होगी। एक बात तो तय है कि राजेंद्र यादव
जहाँ भी होंगे मस्त होंगे। उन्हें दुनिया कि हर खूबसूरत चीज़ से मुहब्ब्त
थी। मौत भी उनके लिए यक़ीनन खूबसूरत रही होगी।
1 comment:
hmmm matlab
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