बस अभी अभी रात एक बजे नोएडा के वेव सिनेमा से रामलीला देखकर वापस लौटा हूँ और मूड इतना ख़राब है सोचता हूँ कि फ़िल्म पर अभी कुछ लिख कर अपना गुस्सा शान्त कर लूं. लेकिन इसे अपने ब्लॉग पर कल ही पोस्ट करूंगा जिसमें से कुछ गुस्सा सुबह तक जरुर एडिट हो जाएगा।
सच कहूं तो टाइम्स ऑफ़ इंडिया की फाइव स्टार रेटिंग और रामलीला के नाम पर हो रहे विवाद को देखकर गोलिओं की रासलीला देखने का मन इतनी जल्दी बना लिया। और थोड़ी और ईमानदारी से कहूं तो टीवी के प्रोमो में रात दिन चल रहीं दीपिका की दिलकश आदाएं भी काफी हद तक इस जल्दबाज़ी के लिए जिम्मेदार थीं। दीपिका पादुकोण को मैं सम्भावनाशील अभिनेत्री मानता हूं। उसमें गज़ब की शोखी,शरारत और तीखापन है। कई दफा वो आँखों से डायलॉग करती नज़र आती है। ये जवानी है दीवानी और चेन्नई एक्सप्रेस जैसी हाल की फिल्मों में अलग किस्म का किरदार निभाया। वह किसी भी कैरेक्टर में वैसे ही डूब है जैसे समंदर में मछली। फिर उस गहराई से वह किसी जलपरी की तरह बाहर निकल कर सबको चौंका देती है। वह सचमुच बेहतरीन अदाकारा है इस फ़िल्म में ये साबित भी हो गया क्योंकि भंसाली के इशारे पर उसने छिछोरेपन के अभिनय में रणवीर का जो भरपूर साथ दिया वह यादगार रहेगा । अंग्रेजी के फ़िल्म क्रिटिक इसे दोनों के बीच कामयाब कमेस्ट्री का नाम दे रहे हैं। रणवीर सिंह तो छिछोरेपन के अभिनय का सुपरस्टार है। मुझे याद है कि उसकी पहली फ़िल्म बैंड,बाजा बारात के एक गाने में उसकी हीरोइन ने उसे चल हट छिछोरे कहा था। पर वह छिछोरापन फ़िल्म की कहानी का हिस्सा था. भंसाली ने इसे अपनी फ़िल्म में छिछोरे पन का ये तत्व डाल कर फ़िल्म को हल्का और कमज़ोर बना दिया है। मुझे याद नहीं आता कि भंसाली की किसी फ़िल्म में एक भी गोली चली हो लेकिन इस फ़िल्म में उन्होंने अपना ये कोटा भी पूरा कर दिया है। फ़िल्म में गोलिओं की ऐसी रासलीला रची गई है कि गैंग्स ऑफ़ वासेपुर की श्रंखला पीछे छूट गई है।
भंसाली ने फ़िल्म में पहले ही बता दिया था की ये फ़िल्म रोमिओ जूलियट के नाटक पर आधारित है. रोमिओ जूलियट शेक्सपीयर का एक दुखान्त नाटक है जिसमें दो पुराने इज्जतदार घरानों की आपसी आन की लड़ाई दिखाई गई है. आख़िर में दोनों एक दूसरे की रज़ामंदी से बेहद नाटकीय तरीके से मर जाते हैं। शेक्सपीयर की रोमिओ जूलियट की कथावस्तु तो इटली से ली गई है लेकिन भंसाली ने अपनी देसी रोमिओ जूलियट के लिए मोदी के गुजरात को चुना। मोदी का नाम मैंने यहाँ ज़बरदस्ती इसलिए लिया क्योंकि उनके बिना आजकल कोई कहानी बनती और बिकती नहीं। मोदी ने अपना राजनीतिक करियर भले चाय बेच कर शुरू किया हो पर आजकल वह अपमार्केट का हिस्सा हैं। मोदी के नाम पर आप कुछ भी बेच सकते हैं. मैं देख रहा हूँ मोदी के नाम पर रिपोर्टर खूब बाई लाइन बटोर रहे हैं और नरेश अग्रवाल जैसे नेता टीवी फुटेज पा रहे हैं। । भारत रत्न लता जी से लेकर गुजरात के ब्रांड एम्बेस्डर बच्चन जी तक सबकी दूकान मोदी जी के नाम पर चल रही है. रोमिओ जूलियट में मोटांग्यू- कैप्युलेट दुश्मन घराने गुजरात के रजोड़ी और सनाड़ी से कही मेल नहीं खाते और वहां बिकने वाले हथियार गांधी के गुजरात की बेमेल तस्वीर दिखाते हैं।
ख़ैर मैं रामलीला और रोमिओ जूलियट की बात कर रहा था. भारत में इस कथावस्तु पर कोई दो हज़ार फ़िल्में बन चुकी होंगी। भंसाली ने भी एक बचकाना प्रयोग किया है. शेक्सपीयर का रोमिओ भी दिलफेक तबियत का नायक है उसके प्रेम की शुरुआत भी वासना और रूप की जलन के साथ दैहिक होती है लेकिन अंत में जाकर दिल में अटक जाती है। ऐसा ही राम यानी रोमिओ रणवीर और लीला यानी जूलियट दीपिका के साथ भी होता हैं। भंसाली की ये प्रेम कहानी बिना किसी भूमिका के सीधी देह से शुरू होकर रास लीला को विस्तार देती चली जाती है। शेक्सपीयर से प्रेरणा लेकर लिखी गई ऐसी कहानी पर भला कौन यकीन करेगा जिसमे पहली ही मुलाक़ात में नायिका अपने ही घर में अपने होठों से रंग लगा कर शत्रु परिवार के प्रेमी से होली खेलती हो। फ़िल्म में कहीं कहीं कुछ रोमांचक दृश्य एकदम से बांध लेते हैं लेकिन जल्द ही वे किसी छिछोरी पतंग की डोर की तरह हत्थे से कट जाते हैं। बाज दफा ऐसा लगता है फ़िल्म के कुछ हिस्से भंसाली ने डायरेक्ट किये हैं और कुछ ज्यादा हिस्से डेविड धवन ने। और अगर आप घर परिवार वाले शरीफ इंसान हैं तो रामलीला दिखाने के चक्कर में बच्चों को थियेटर लेकर मत चले जाइएगा क्योंकि अगर गोली न चली होती तो भंसाली ने कामसूत्र की एक कला तो लगभग दिखा ही दी थी।
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