दयाशंकर शुक्ल सागर

Wednesday, July 1, 2015

खबरें ऐसे बदलती हैं दुनिया

बेटी ही बचाएगी-1



मोदी मन की बात करते हुए शौचायल को मंदिर से ज्यादा जरूरी मानते हैं। पूरे देश में स्वच्छता अभियान चल रहा है। ऐसे में यह बात हैरान करने वाली है कि हिमाचल की राजधानी शिमला में सचिवालय से महज 4 किलोमीटर दूर संजौली में 52 साल पुराने एक सरकारी प्राइमरी स्कूल में एक अदद टायलेट तक नहीं है। इस स्कूल में 6 से 13 साल के 127 छात्र - छात्राएं पढ़ रहे हैं। इनमें 78 बच्चियां और 49 लड़के शामिल हैं। क्लास खत्म होने के बाद इस स्कूल के लड़के तो सड़क के किनारे खड़े होकर नेचुरल काल से निजाद पा जाते हैं लेकिन बेचारी असुरक्षित लड़कियों को पहाड़ी के नीचे जंगल की तरफ जाना पड़ता है। इन लाड़लियों के लिए यह बेहद शर्मिंदगी का अहसास था। अमर उजाला के लिए यह सवाल नारी सम्मान से जुड़ गया। अमर उजाला ने इस समस्या को एक अति संवेदनशील मुददे के रूप में उठाया और अंजाम तक पहुंचने का फैसला किया।
 
अमर उजाला ने सबसे पहले शनिवार 20 सितंबर 2014 को सड़क किनारे खुले आसमान के नीचे शर्मिदा हो रहे स्कूली बच्चे शीर्षक से खबर प्रकाशित की। दूसरे दिन 21 सितंबर को मुख्य मंत्री वीरभद्र सिंह ने खबर के प्रकाशित होने के बाद विभाग से सभी स्कूलों में टायलेट की सुविधाओं को लेकर रिपोर्ट तलब की और जांच के लिए उड़नदस्ते गठित करने के भी आदेश दिए। खबर का अमर उजाला मुद्दा के तहत लगातार फॉलोअप किया गया। बुधवार 15 अक्तूबर को एक बार फिर से लेकिन सरकारी सिस्टम को जरा भी शर्मिंदगी नहीं शीर्षक से खबर की गई।
इस खबर में हमने बताया कि लड़कियों को सुरक्षित जंगल ले जाने के लिए स्कूल ने एक शिक्षिका की व्यवस्‍था कर दी है। लेकिन सरकारी सिस्टम इस मामूली काम के लिए अभी तक संवेदनहीन बना हुआ है। 





 19 अक्तूबर को फिर से टायलेट न बना तो स्कूल छुड़ा देंगे अभिभावक शीर्षक से खबर की गई। मामले की गंभीरता को देखते हुए लगातार फोलोअप करने का असर यह हुआ कि विभाग ने स्कूल में 2 नए शौचालय निर्माण और 2 पुराने शौचालयों के मरम्मत के लिए डेढ़ लाख रुपये जारी कर दिए। 52 साल से जिस स्कूल में शौचालय की सुविधा नहीं थी, आज उस स्कूल में बच्चियों के लिए शौचालय निर्माण की प्रक्रिया शुरू हो गई है।


 

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