हिन्दू आतंकवाद शब्द का मुहावरा जिन्होंने भी गढ़ा वह निहायत ही बेवकूफ किस्म का इंसान रहा होंगे। उन्हें न भारतीय इतिहास का पता है न यहां की संस्कृति का। हिन्दू कभी आतंकवादी नहीं रहा उस दौर में भी जब उन पर जुल्मों सितम की इन्तहा थी। आप उस दौर का इतिहास पढ़िए जब भारत में इस्लाम नया नया आया था। उस दौर में भारत में तीन तरह के नागरिक थे। एक तुर्क सरदार जिनके इशारे पर सल्तनत काल में शासक बने। ये जातीय श्रेष्ठता के घमंड में रहते थे। दूसरे भारतीय मुसलमान जिन्हें निहायत नीची नजर से देखा जाता था। और तीसरे गैर मुसलमान जिन्हें हिन्दू कह कर बुलाया जाता था। शुरूआती दौर में दरबार में कोई बड़ा पद हिन्दुओं और भारतीय मुसलमानों को नहीं दिया जाता। इब्न बतूता के मुताबिक दरबार के मंत्री, सचिव, जज, सब विदेशी मुसलमान थे। उनके लिए खुरासानी शब्द चल पड़ा। इनकी दिलचस्पी भारत में सिर्फ लूट खसोट की थी। बर्नी ने लिखा है-सल्तनत की नीति थी कि हिन्दुओं पर इतने टैक्स लगा दिए जाएं कि बगावत की सोच तक न पाएं। उनके खेतों में सिर्फ इतना अनाज छोड़ा जाए ताकि वह गुजर बसर करें और अपने खेत छोड़ कर न भाग जाएं। बर्नी की तारीख ए फिरोजशाही की रामपुर पोथी पढ़िए। सल्तनत के जुल्मों से शिकार लोगों ने बीस गुना लगान से नाराज होकर अपने खलियान जला दिए। दस बीस लोगों के जत्थे बनाकर वे जंगलों में जाकर छिप गए। लगान वसूलने वाले लगान के खाली रजिस्टर लेकर राजधानी पहुंचे। नाराज सुल्तान ने लश्कर लेकर दोआब पर धावा बोल दिया। बेगुनाहों का कत्लेआम हुआ। बागियों को जिन्दा लटका दिया गया। छुटपुट तौर पर हिन्दुओं की तरफ से प्रतिक्रिया हुई। बर्नी लिखता है कि हिन्दुओं की हमलावरों के प्रति नफरत सिर्फ उनके सामाजिक बर्ताव में झलकती थी लेकिन उनकी हिंसा का जवाब हिंसा से देने का ख्याल उनके दिल में कभी नहीं आया। हिन्दुओं को सिर्फ आत्मरक्षा के लिए हिंसा की इजाजत है
1 comment:
शायद गांधी जी ने भी एक बार कहा था कि हिन्दू स्वभाव से कायर होता है और मुस्लिम उग्र.
Post a Comment