दयाशंकर शुक्ल सागर

Tuesday, June 7, 2016

मुफ्त का माल


स्विट्जरलैंड के नागरिकों ने सरकार की ओर से मुफ़्त की राशि लेने से इंकार कर दिया। सवाल उनके आत्मसम्मान का था। स्वीट्जरलैंड सम्पन्न देश है। हर तरफ जरूरत से ज्यादा खुशहाली है। मुझे वहां भिखारी नहीं मिले। हां कार्नवीन मेट्रो स्टेशन पर लम्बे पुराने ओवर कोट में खड़े वायलनवादक जरूर मिले। वे मेट्रो और ट्राम में वायलन बजाते हैं। थोड़ी देर बाद वह वायलन बजाना बंद करके अपने ओवरकोट की जेब से एक गिलास निकलते हैं। और यात्री उसमें सिक्के डालने लगते हैं। मैं इसे भीख नहीं मानता। उनकी वायलन से निकलने वाली धुन सम्मोहित कर देती है। और आपको जेब में हाथ डाल कर स्वीट्ज फ्रेंक निकालने पर मजबूर कर देती है।
इसलिए जब ये खबर आई तो मुझे हैरत हुई कि क्या वहां की सरकार उन्हें मुफ्त भी कुछ देती होगी। मुझे याद आया कि हमारा देश सबसीडी पर चलता है। और सबसीडी को हम अपना हक मान लेते हैं। और गैस सिलेंडर या राशन में सबसीडी घटने पर हम बेतरह नाराज हो जाते हैं जैसे किसी ने हमारी जेब काट ली।

मैंने कहीं एक कहानी पढ़ी थी। गुजरात में एक अरबपति सेठ हुआ करता था। हीरे का व्यापारी था। हर साल करोडों का टर्न ओवर था। एक भिखारी उसके दफ्तर के बाहर खड़ा होकर इकतारा बजाया करता था। वह एक खास धुन बजाता जिसे सुनकर सेठ मुग्‍ध हो जाता। और चपरासी के हाथ से हजार रुपए भिजवा देता। यह सिलसिला महीनों जारी रहा। एक दिन सेठ ने कहा तुम रोज इकतारा बजाते हो मुझे पैसे भिजवाने पड़ते हैं। वक्त जाया होता है। ऐसा करो हर महीने आकर इकट्ठे दस हजार रुपए ले जाया करो। भिखारी की मौज हो गई। वह बिला नागा हर महीने बाकायदा दस हजार रुपए मैनेजर से ले जाता। कई साल ऐसे ही बीत गए। एक दिन मैनेजर ने उसके हाथ पर पांच हजार रुपए रख दिए। भिखारी बिगड़ गया। बोला-मैनेजर साहब ये क्या है? मैंनेजर बोला- सेठ दिक्कत में हैं। कारोबार में घाटा चल रहा है। फिर उनकी बेटी की शादी भी है अगले महीने। बहुत खर्चे हैं। भिखारी और नाराज हो गया। बोला- हद हो गई। अब मेरे पैसों पर सेठ अपनी बेटी की शादी करेंगे। बुलाओ सेठ को कहां है?
तो यही हाल हमारे हिन्दुस्तान का है। जो फ्री में मिलता है उसे अपना हक समझ लेते हैं। वह आरक्षण हो या सबसीडी। आपको भी सोचना चाहिए इस पर। आखिर कब तक मोबाइल पर 15 लाख के मैसज का इंतजार करते रहेंगे?

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