शोपियां। यह सचमुच एक खतरनाक मंजर है। कश्मीर में भारतीय सेना एक ऐसे दुश्मन
से लड़ रही है जिसकी अपनी कोई वर्दी नहीं। जो युद्ध के कोई नियम नहीं मानती। ये दुश्मन
नकाब में चेहरा छुपा के बुर्कापोश महिलाओं, छोटे बच्चों और आम नागरिकों की आड़ में
हमले करता है और फिर उन्हीं के पीछे छुप जाता है। ये गुरिल्ला युद्ध नहीं और न ही आजादी
की जंग है। हिजबुल मुजाहिदीन के शब्दों में कहें तो ये ‘अल जिहाद’ है, जो युवाओं
को आजादी का झूठा सपना दिखा कर कश्मीर को तबाह और बर्बाद करने पर उतारु है।
मैं कश्मीर के सबसे संवेदनशील इलाके में हूं। अनंतनाग से आगे बढ़ा हूं। अनंतनाग
को कभी ‘इस्लामाबाद’ कहते थे। पर ये नब्बे के दशक के आतंकवाद की बात है। मुख्यमंत्री
महबूबा मुफ्ती की विधानसभा सीट अनंतनाग से कोई पचास किलोमीटर दूर से शुरू हो रहे शोपियां
जिले को अब यहां के लोग ‘छोटा पाकिस्तान’ कहते हैं। आतंकियों की पनाहगाह
और पत्थरबाजी के लिए बदनाम इस इलाके में हर तरफ एक अजीब संदिग्ध - सा सन्नाटा है।
हालात किसी भी पल खराब हो सकते हैं। इसके लिए किसी बहाने की जरूरत नहीं। कोई गैर-शोपियां
इस इलाके में घुसने की हिम्मत नहीं कर सकता। पडोस के अनंतनाग का नेशनल मीडिया से जुड़ा
कोई लोकल रिपोर्टर भी नहीं। मेरे साथ आने को कोई तैयार नहीं है। यह इलाका पाकिस्तानी
और कश्मीरी आतंकियों का गढ़ है। सुरक्षा बलों ने अभी बीती 6 मई को यहां सद्दाम पाडर
और कश्मीर विवि के समाजशास्त्र के प्रोफसर डा. मोहम्मद रफी भट समेत पांच आतंकियों
को ढेर कर दिया था। सद्दाम यहां की आतंक की दुनिया का बड़ा नाम था। वह शोपियां का ही
था। आपरेशन के दौरान देखते-देखते सैकडों पत्थरबाजों की भीड़ यहां इकट्ठी हो गई। सुरक्षाबलों
पर चारों तरफ से पत्थर बरसने शुरू हो गए। इस हिंसा में पांच पत्थरबाज मारे गए। जबकि
सौ से ज्यादा लोग जख्मी हो गए।
यहां के पत्थरबाज किस कदर खतरनाक हो गए हैं इसका नजारा बीती दो मई को दिखा
जब पत्थरबाजों ने अपने ही जिले के एक कानवेंट स्कूल की बस को घेर कर पत्थरबाजी शुरू
कर दी जिसमें दो बच्चे बुरी तरह जख्मी हो गए, कई मासूम बच्चे घायल हुए। ये बच्चे शोपियां
के ही थे। पत्थरबाजों की नाराजगी सिर्फ इस बात की थी कि स्कूलवालों ने उनके बंद के
हुक्म को क्यों नहीं माना?
इसी आतंक के कारण कश्मीर के टैक्सी वाले भी आपको यहां घुमाने के लिए तैयार
नहीं होंगे। बड़ी मुश्किल से एक टैक्सीवाला तैयार हुआ, जिसकी गाड़ी की अगली स्क्रीन
दो दिन पहले ही पत्थरबाजी में शहीद हो चुकी थी। उसने साफ चेतावनी दी ‘जनाब, आगे मत जाएं वो
छोटा पाकिस्तान है।‘ फिर इसरार करने पर उसने दो शर्तें सामने रख दीं। एक आप अपनी पत्रकार
वाली पहचान नहीं बताएंगे और दूसरे वह कहीं बीच सड़क में अपनी टैक्सी नहीं रुकेगा। चलता
रहेगा जब तक जिले की सरहद खत्म नहीं हो जाती।
पूरा कश्मीर इस समय छावनी बना है। हर चालीस कदम पर आपको यहां केन्द्रीय रिजर्व
पुलिस बल यानी सीआरपीएफ और जम्मू कश्मीर पुलिस के जवान गश्त करते मिल जाएंगे। लेकिन
शोपियां जिले में आपको ये नजारा नहीं मिलेगा। जिले में कोई पच्चीस किलोमीटर हम सीधे
चलते गए, सड़क पर न सीआरपीएफ का जवान मिला, न कोई फौजी और न कोई पुलिसकर्मी। सीआरपीएफ
के एक कमाडेंट ने बताया- ‘अकेले ड्यूटी करता कोई भी जवान यहां सुरक्षित नहीं। किसी
भी वक्त कोई भी पीछे या सामने से हमला कर सकता है। इस इलाके में हम पूरे लाव लश्कर
के साथ तभी घुसते हैं जब किसी आपरेशन में हमारी जरूरत होती है।‘ अभी पिछले हफ्ते हुए
इनकाउंटर में सेना के 23 पैरा कमांडो, 3 व 34 राष्ट्रीय रायफल, सीआरपीएफ के तीन टुकडियां
और जम्मू कश्मीर पुलिस के स्पेशल आपरेशन ग्रुप के जवान शामिल थे। थाने और चौकियां यहां
बंकरों में तब्दील हो चुके हैं। पुलिस तब निकलती है जब सीआरपीएफ उनके साथ होती है।
जो शोपियां अभी दो साल पहले तक मीठे और रसीले ‘सेब के शहर’ के नाम से जाना
जाता था आज वह आतंकियों की नर्सरी बन गया है। सेना के एक आधिकारी इसकी दो वजह बताते
हैं। एक शोपियां की भौगोलिक स्थिति। खास तौर से यहां के जंगलात, सेब के बागान और पहाड़ी
इलाका, जो इन आतंकियों को छुपने की महफूज जगह देता है। दूसरा यहां के नागरिकों का दहशतगर्दों
का अंधा समर्थन। इन आतंकियों के आगे स्थानीय युवा और महिलाएं न केवल ढाल बन कर खड़े
हो जाते हैं बल्कि सामने से सुरक्षाबलों पर पत्थर बरसाना शुरू कर देते हैं। बिना इस
डर के कि वे कभी भी उनकी गोली का निशाना बन सकते हैं।
आलम ये हैं कि अब अधिकारी भी जिले में आने से डरने लगे हैं। सोमवार को जिला
बोर्ड की बैठक थी। स्थानीय विधायक पहुंचे पर सत्तर फीसदी अफसर नदारत थे। विकास के
काम बंद पड़े हैं। जिले की मुख्य सड़क टूटी फूटी है। निर्माण के लिए पथरीले बोल्डर
सड़क के किनारे ही पड़े हैं। सड़क तो बनने से रही लेकिन ये पत्थर, पत्थरबाजों के लिए
हथियार और सुरक्षाबलों के लिए मुसीबत बन गए हैं।
यह खतरनाक संकेत हैँ। जैसा कि शोपियां के एलएलसी
शौकत गनेई कहते हैं कि ऐसा कभी नहीं हुआ। वह सवाल उठाते हैं कि ये आग किसने लगाई? वे
कहते हैं उम्मीद की किरण नहीं दिखती। कोई सुनने को तैयार नहीं। आने वाले दिन और डरावने
हो सकते हैं।
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