कश्मीर डायरी-3
पुलवामा। आजादी सिर्फ एक नारा है जो कश्मीर
में अपने मायने खो चुका है। अब सिर्फ कंधे पर एके 47 रखे आतंकियों का ग्लैमर है, जो खाली
निट्ठले बैठे युवाओं को अपनी तरफ खींच रहा है। हिजबुल मुजाहिदीन शहीद होने के लिए
तैयार बकरे की तरह, रायफल-बंदूकों से सजा कर उनकी तस्वीर सोशल मीडिया पर जारी कर
देता है। आतंकी बन जाने का ठप्पा लगने के बाद एक अदना-सा चौथी फेल लड़का यहां
रातों रात हीरो बन जाता है। वह भीड़ के बीच घूमता है तो लोग उसके हाथ चूमने के लिए
बेताब रहते हैं। कश्मीर वि.वि और कालेजों में पढ़ने वाली दर्जनों लड़कियां रातों
रात उसकी फैन हो जाती हैं और कश्मीर के बहके हुए युवा इस ग्लैमर की चकाचौंध में ‘गुमशुदा’ हो जाते हैं।
और उनकी ‘गुमशुदगी’ के बाद घर में रोना-पीटना मच जाता है क्योंकि कश्मीर में ‘गुमशुदगी’ का मतलब है उनका बेटा आतंक की राह पर निकल गया।
शोपियां ओर पुलवामा जिले में हर तीसरे दिन
किसी घर का एक बेटा ‘गुम’ हो रहा है। ‘गुमशुदगी’ की शिकायत थाने में दी जाती है और थाने तुरंत उनका ब्योरा सुरक्षा एजेंसियों
की तरफ बढ़ा देते हैं। श्रीनगर के कश्मीर विवि के 33 साल के प्रो. मुहम्मद रफी भट की कहानी आतंकी बनने की पूरी प्रक्रिया का खुलासा
करती है। रफी शुक्रवार को घर नहीं लौटा। अगले दिन उसकी ‘गुमशुदगी’ की रिपोर्ट
लिखवा दी गई। वह सुरक्षा एजेंसियों के सर्विलांस पर आ गया।
सुरक्षा बलों के सूत्रों के मुताबिक उसकी
पहली लोकेशन शोपियां में मिली जो आतंकियों का गढ़ है। आतंकी बनने के बाद पहला काम
उनकी लांचिंग का होता है। इसमें नवागंतुक, कुछ स्टार टाइप के आतंकियों के संग पूरी
साज-सज्जा के साथ अपना फोटो सेशन करवाता है। और ये तस्वीरें सोशल मीडिया पर अपलोड
कर दी जाती हैं। और उस एक सेकेंड में नवागंतुक आतंक की दुनिया में बाकायदा शामिल
हो जाता है। रफी की लांचिंग के लिए आतंक के कुख्यात चेहरे सद्दाम पाडर को चुना गया था। रविवार को चार आतंकियों के साथ उसका फोटो सेशन
होना था। लेकिन उससे पहले उन पांचों को शोपियां की खूबसूरत घाटी में सुरक्षा बलों
ने घेर लिया। चारों तरफ से घेरने के बाद सुरक्षाबलों ने अपनी गाड़ी भेजकर रफी के
परिवार वालों को सुबह मुठभेड़ स्थल पर बुलाया और उनसे सरेंडर करने की अपील कराई।
लेकिन दूसरी तरफ से फायरिंग जारी रही और सद्दाम, रफी समेत पांचों आतंकी ढेर हो गए। अब इससे ज्यादा किसी भी देश की सभ्य और
संवदेनशील फौज क्या कर सकती है।
अनंतनाग के एक सैन्य अधिकारी बताते हैं कि ये
पूरा खेल ग्लैमर का है। वह देखते हैं कि कल तक ये लड़का हमारे साथ गलियों में
फिरता था आज वह हीरो बन गया है। लोग उसका हाथ चूम कर सम्मान दे रहे हैं। उसे कहीं
छुपना भी नहीं पड़ रहा। हजारों की भीड़ के बीच वह एके 47 लेकर घूम सकता है। सोशल मीडिया पर सिर्फ उसी का नाम है। वह लार्जर देन लाइफ वाली जिन्दगी जी रहा है।
सैकड़ो लड़कियां उस पर मरती हैं। इतना ही नहीं एक दिन वह भी हिजबुल का पोस्टर
ब्वाय बन सकता है। बस यहीं से उनके अंदर इस ज़िंदगी को जीने की चाहत पैदा हो जाती
है और इस ग्लैमर से आकर्षित होकर वो आतंक की राह पर निकल पड़ते हैं।
हमने जब ये पूछा कि पोस्टर ब्वाय बनाने का
इनका क्राइटेरिया क्या है? सैन्य अधिकारी जवाब में कहते हैं कि इसके लिए
कौन सी पीएचडी करने की जरूरत है। शक्ल सूरत अच्छा हो, दीन की बातें कर लेता हो, बोलने में अच्छा हो, बस बन गया पोस्टर ब्वाय।
जारी…..
इनसेट-1
72 हफ्ते से ज्यादा नहीं है़ ज़िन्दगी
आतंकी मुहम्मद रफी उनमें से था जिसका आतंकी
जीवन 72 घंटे से ज्यादा का नहीं था। ‘आपरेशन ऑलआउट’ के बाद कश्मीर के किसी भी आतंकी की जिन्दगी 72 हफ्ते से ज्यादा की नहीं है। लेकिन फिर भी लड़के आतंक की राह पर निकल रहे
हैं। केवल पुलवामा इलाके से पिछले तीन महीनों में 47 नए आतंकी सेना के रिकार्ड में हैं। कई ‘गुमशुदा’ घरवालों की ओर से थानों में अब इस डर से दर्ज
नहीं कराए जा रहे हैं कि वे कहीं सुरक्षा बलों के निशाने पर न आ जाएं।
फोटो कैप्शन-
हिजबुल के टॉप कमांडर सद्दाम पाडर के जनाजे
की मोबाइल से तस्वीरें खींचते व लाइव रिकार्डिंग करते हजारों युवा
फोटो बासित जरगर
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