कश्मीर ग्राउंड रिपोर्ट: दो
पुलवामा।
यहां मौत आसमान से भी आ सकती है। अप्रत्याशित मौत से बचने के लिए पुलिस स्टेशन
के आंगन की खुली छत पर ग्रीन नेट लगा दिया गया है। ताकि बाहर से कोई हैंड ग्रेनेड फेंके
तो बम इस जाली से उछलकर ऊपर हवा में फटे और जान-ओ- माल का नुकसान कम से कम हो। थाने
में खड़ी पुलिस की जीप के हर हिस्से पर पत्थरबाजी के निशान हैं जो बताते हैं कि पत्थरबाजों
के लिए पुलिस अब नाकाबिले बर्दाश्त हो चुकी है।
ये पुलिस स्टेशन कहीं एकांत इलाके में नहीं बल्कि
पुलवामा के बीच बाजार में है। इमारत पुराने जमाने की है। किले जैसी दीवारों से घिरे
इस थाने पर पिछले छह महीनों में पांच बार ग्रेनेड से हमला हो चुका है। तीन बार थाने
के गेट पर फायरिंग हो चुकी है। कई पुलिस वाले घायल भी हो चुके हैं। इलाके में पड़ने
वाले तकरीबन सभी थानों का यही हाल है। अभी तीन दिन पहले ही थाने के एसएचओ मसरत अहमद
मीर पर दिनदहाड़े जानलेवा हमला हुआ। वह बुलेट प्रूफ गाड़ी में थे, सो बच गए। श्रीनगर
के रहने वाले मीर सिर्फ इसलिए आतंकियों के निशाने पर हैं क्योंकि वह पत्थरबाजों को
नहीं छोड़ते।
शोपियां खत्म होते ही पुलवामा जिला शुरू हो जाता
है। यह जिला कभी केसर और दूध के लिए जाना जाता था लेकिन अब आतंकवाद के लिहाज से कुख्यात
है। इसी जिले में त्राल है जहां हिजबुल का पोस्टर ब्वाय बुरहान वानी आतंकी बना था।
2016 के एनकाउंटर में वानी के मरने के बाद दर्जनों लड़के यहां से आतंकी बने। अंसार
गजावत उल हिंद का चीफ जाकिर मूसा भी इसी त्राल
का है। मूसा ने चंडीगढ़ के एक इंजीनियरिंग कालेज से बीटेक की डिग्री ली। टाइगर और सद्दाम
की मौत के बाद अब मूसा यहां के युवाओं का हीरो है। पुलवामा में ही पिछले साल सीआरपीएफ
कैंप पर फिदायीन हमला हुआ था, जिसमें हमारे पांच जवान शहीद हुए। इसी जिले में द्रबगाम
है, समीर टाइगर यही का रहने वाला था। आप समझ सकते हैं कि आतंकवाद के लिए ये जमीन कितनी
उर्वरक है।
यहां का माहौल भी शोपियां से जरा भी अलग नहीं
है। मैंने अपने रिपोर्टर से कहा कि मैं यहां के किसी पुलिस अधिकारी से बात करना चाहता
हूं। हमारे रिपोर्टर फिदा ने कहा कि यहां पुलिस स्टेशन सबसे ज्यादा असुरक्षित है। फिर
हम पुलिस स्टेशन पहुंचे। पुराने जमाने की इमारत थी। बीच में बड़ा आंगन चारों तरफ कमरे।
कमरे में नौजवान एसएचओ पुलवामा मसरत मीर बैठें हैं। वह श्रीनगर के हैं। पर यहां तैनात
हैं। मैं उनके पीछ टंगा बोर्ड देखता हूं। पिछले 28 साल से कोई एसएचओ यहां एक साल से
ज्यादा नहीं टिका। मीर को डेढ साल हो गए। वे आतंकियों के निशाने पर हैं। क्योंकि वह
किसी को बख्श्ते नहीं। मैंने मासूम सा सवाल पूछा-ये हरे रंग का नेट धूप से बचने के
लिए है? वे हंसे। और बोले-नहीं ये नेट हमें हैंड ग्रेनेड से बचाता है। हमे लगता है
कि इस नेट से लड़कर बम बाउंस होगा और ऊपर ही फट जाएगा। नीचे नुकसान कम होगा।
इसी जमीन पर प्रतिबंधित पॉपी की फसल भी उगाई
जाती है। इसके फूलों से तेज नशीला पदार्थ ओपीएम बनता है। एसएचओ पुलवामा मसरत मीर बताते
हैं कि खाली बैठे युवा पत्थरबाजी इसलिए भी करते हैं ताकि इसकी आड़ में पॉपी का अवैध
कारोबार चल सके। अब इन्हें आतंक का और अच्छा बहाना मिल गया है।
इसी इलाके में लश्कर-ए-तैयबा और हिजबुल दोनों
संगठन सक्रिय हैं। स्थानीय लोग दोनों के साथ हैं। सुरक्षाबलों ने पिछले हफ्ते यहां
के चिनारबाग के टकिया मोहल्ले में लश्कर के नवीद जट्ट को घेरा था। नवीद अपने दो साथियों
के संग एक घर में छुपा था। उस घर को पत्थरबाजों ने घेर लिया। ये पत्थरबाज आतंकियों
को कवर देने का काम कर रहे थे। इस मुठभेड़ में सीआरपीएफ का जवान मनदीप शहीद हो गया था। सभी आतंकी भाग निकले
और शहीद की रायफल भी साथ ले गए। सुनने में ये थोड़ा अजीब लगता है।
ऐसा नहीं कि ये आतंकी बहुत प्रशिक्षित हैं। जैसा
कि राजपूताना रायफल्स के एक सैन्य अधिकारी ने बताया कि अब सीमा पार में होने वाली आतंकी
ट्रेनिंग तकरीबन बंद हो चुकी है। नब्बे के दशक में झुंड के झुंड लड़कों की वहां कैंपों
में ट्रेनिंग होती थी। पर अब ऐसा नहीं है। कुछ लड़के सीमापार भी जाते हैं लेकिन बाकायदा
पाकिस्तानी वीजा लेकर। कई दफा वीजा के लिए फार्म पर हुर्रियत नेताओं की चिट लगी होती
है। ऐसे हमने कई लड़के पकड़े जो सिर्फ ‘बिरयानी’ और ‘ऐश कराने’ के लालच में इस्लामाबाद
चले गए थे। एक लड़का तो सिर्फ पंद्रह साल का था। उसे वीजा पर बार्डर पार करते ही धर
लिया गया था। पूछताछ में उसने बताया कि सीमापार लश्कर वालों ने उसे धोखा दे दिया। उससे
पूछा गया कि क्या धोखा हुआ था तुम्हारे साथ, तो उसका जवाब था- ‘हमें कहा गया था कि
तुम्हें एके-47 के साथ रात के अंधेरे में बार्डर क्रास क्त्रसस कराएंगे। लेकिन ऐसे
ही ये कह कर भेज दिया कि बंदूक तुम्हें वही मिल जाएगी।‘
सैन्य अधिकारी ने बताया- लेकिन अब उनका मूवमेंट
इतना आसान नहीं। नए लड़कों को यहीं शोपियां और पुलवामा के पहाड़ी और दुगज़्म इलाके में
एके-47 लोड करना और चलाना सिखा दिया जाता है। इससे ज्यादा किसी ट्रेनिंग की जरूरत नहीं।
फिर भी इन अप्रशिक्षित आतंकियों की गोली से हमारे जवान शहीद हो रहे हैं? इसके जवाब
में अफसर कहते हैं- एके 47 किसी नौसिखिए के हाथ में थमा दी जाए तो वह भी कई लोगों को
मार गिराएगा। दरअसल यह मुठभेड़ बहुत कम दायरे में होती है। जो भी गोलीबारी की जद में
आएगा, मारा जाएगा। इसके लिए आतंकी का निशानेबाज होना जरूरी नहीं। फिर हमारे सामने दो
मोचे होते हैं, एक आतंकी की गोलियां और दूसरी तरफ से बरसते चिकने, ठोस चट्टानी पत्थर।
शोपियां और पुलवामा में जो बंदूक उठाने की हिम्मत
नहीं करते, वो ओजीडब्लू बन जाते हैं। इसे सैन्य भाषा में ओवर ग्राउंड वर्कर कहा जाता
है। ये आतंकी के प्राइवेट सेकेट्री की तरह होते हैं जो उनकी हर चीज का ख्याल रखते हैं।
उनके खाने पीने से लेकर उनके कपड़े लत्ते तक का। उनके सारे मूवमेंट इन्हीं के इशारे
पर होते हैं। बिना ओजीडब्लू की मर्जी के कोई आतंकी से संपर्क नहीं साध सकता।
कायर हैं आतंकी
सीआरपीएफ
के एक कमांडर ने बताया कि ये नए आतंकी इतने कायर हैं कि सामने से घिरा देखकर
हौसला खो देते हैं। कई तो बंदूक के घोड़े नहीं खोल पाते। चारों तरफ से घिरा पोस्टर ब्वाय समीर टाइगर तो गन छोड़कर छत
के रास्ते भागने की फिराक में था लेकिन मारा गया। तब इन्हें महसूस होता है कि गलती
हो गई। अधिकांश आतंकी वहीं मुठभेड़ स्थ्ल से ही अपने मां बाप को फोन मिला कर उनसे अपने
कर्मों के लिए माफी मांगते हैं। बेटे को फंसा देखकर वे दौड़े-दौड़े मुठभेड़ स्थल तक
पहुंच जाते हैं। हम उनसे भी अपील कराते हैं कि वे उन्हें सरेंडर कर दें। पर वे नहीं
मानते। उन्हें डर रहता है कि सेना उन्हें जिंदा नहीं छोड़ेगी।
1 comment:
Sir
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