मैं बहुत धार्मिक आदमी नहीं हूं लेकिन मेरा साफ मानना है कि किसी की धाार्मिक भावनाओं का मजाक उड़ाना ठीक नहीं। लेकिन इसका कतई ये मतलब नहीं कि आप किसी अखबार या पत्रिका के दफ्तर पर हमला कर दें। ये जहालत है। अगर आप अपनी धार्मिक या किसी भी तरह की भावना पर काबू नहीं रख सकते है तो यकीन जानिए आप निहायत कमजर्फ इंसान हैं।
इस्लाम में मुहम्मद साहब की तस्वीर बनाना गुनाह है। पेरिस में मीडिया हाउस पर हुए हमले के सिलसिले में मुझे याद आता है कई साल पहले मैंने एक फिल्म देखी-द मैसेज। इस्लाम की शुरूआत कैसे हुई इस पर इससे बेहतरीन फिल्म आज तक नहीं बनी। फिल्म पैगम्बर मुहम्मद साहब पर है। लेकिन पूरी फिल्म में वह कहीं नहीं दिखते। डायरेक्टर मुस्तफा अक्कद ने इस बात का ख्याल रखा कि मुहम्मद साहब की तस्वीर न दिखे। वह इसमें कामयाब हुए। इस फिल्म का एक दृश्य मुझे भूलता नहीं। पैगम्बर साहब मदीने का बसा रहे थे। पहली बार नमाज के लिए गांव वालों को बुलाया जाना था। कैसे सबको बुलाया जाए। तो पैगम्बर ने अजान के लिए हब्शी बिलाल को चुना क्योंकि उसका गला सुरीला था। बिलाल की आवाज में जादू था। उसकी आवाज कान से सीधा दिल की गहराइयों में उतर जाती थी। फिल्म में अजान सुन कर मैं भी अंदर तक सिहर गया। जिस दुनिया में काले हब्शियों को जानवर से बद्तर समझा जाता हो उसमें इस्लाम ने बिलाल को हजरत का दर्जा दिया। तब मैं समझा क्यों इस्लाम इतनी तेजी से दुनिया में फैल गया।
मुझे यह जानकर हैरत हुई कि मुहम्मद साहब पर ईमान रखने वाले मेरे तमाम दोस्तों ने यह बेहतरीन फिल्म नहीं देखी थी। कितने ही दोस्तों को मैंने यह फिल्म बांटी। और फिल्म देखने के बाद भावुक होकर मेरे तमाम दोस्तों ने मेरे हाथ को चूम कर शुक्रिया अदा किया।
मेरे कहने का मतलब ये है कि अभिव्यक्ति का एक तरीका यह भी है। अभिव्यक्ति की आजादी का मतलब यह नहीं कि आप मुहम्मद साहब को अपनी पत्रिका का अतिथि संपदाक बना कर उनका कार्टून पहले पेज पर छापें। या टाललेट पेपर पर किसी धर्म का मजाक उड़ाएं।
2 comments:
अरे...!
आपका ब्लॉग देखा, ठीक इसी नाम करीब साल भर पहले मैंने अपना एक दूसरा ब्लॉग बनाया था !
आपके लेखन की तारीफ़ करने वाले खूब सारे लोग होंगे, एक नाम मेरा भी जोड़ लें |
सादर ,
कश्यप किशोर मिश्र
बिलकुल सही , पत्रकारिता की मर्यादा का पालन होना चाहिये , मगर उल्लंघन का प्रतिकार हत्या नहीं हो सकता। इसके अलावा हर देश के अपने मानदंड होते हैं। फ्रॉंस के कानून उस पत्रिका को अनुमति देते हैं।हमे असहमति का आदर करना होगा।
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