दोपहर
जब दफ्तर से निकला तो देवदार
के पेडों के बीच से बर्फ रुई
के फाए की तरह मेरे कोट पर आकर
चिपकने लगी थी। सफेद बर्फ के
बेहद नर्म,
मुलायम
और मासूम फाए। हवा में एक
विचित्र सा ठंडापन है। इसे
आप जाड़ा नहीं कह सकते। क्योंकि
हाथ और जूते में छुपे पांव में
जरा भी गलन महसूस नहीं हो रही
है। शिमला में यह मेरा पहला
जाड़ा है। और आप यकीन मानिए
ये अब तक का सबसे आरामदायक
सर्दियों के दिन हैं। दिल्ली
और यूपी की सर्दी एक खीज पैदा
करती है। वहां की सर्द हवा में
एक अजीब-सा
तीखापन है। सर्द हवा आपके
परिधानों को पार करके सीधे
हड्डी में दाखिल हो जाती है।
फिर चाहे आप कम्बल ओढ़िए या
अलाव तापिए। लेकिन शिमला में
ऐसा नहीं है। शरीर ढका हो तो
जाड़ा त्वचा तक भी नहीं पहुंचता।
हवा का ठंडापन मई-जून
की हवाओं से थोड़ा ही ज्यादा
सर्द होता है। मैंने इसकी वजह
जाननी चाही तो पता चला यहां
उत्तर भारत के अन्य राज्यों
की तरह कोहरा नहीं गिरता।
कोहरा हवा में एक अजीब तरह का
तीखापन भर देता है। सूखा और
तिक्त तीखापन।
बर्फ
शाम तक पूरे शहर को अपनी आगोश
में ले चुका है। देवदार के
पेड़,
सड़कें,
बिजली
के तार,
घर,
बाजार
सब बर्फ की चादर ओढ़ चुकी है।
लेकिन सर्दी का नामो निशान
नहीं। रात करीब बारह बजे दफ्तर
से निकला तो देखा मेरी कार भी
बर्फ की चादर ओढ़े खड़ी है।
पहली नजर में लगा कि कार जैसे
किसी फ्रिजर में रखी हो। कार
की विंड स्क्रीन बर्फ से ढकी
थी। वाइपर चलाया पर कोई असर
नहीं। कार स्टाट करके हीटर
चलाया लेकिन कोई असर नहीं।
सोचा अंदर जाकर पता करुं कि
इस समस्या से निपटने के लिए
स्थानीय लोग क्या उपाय करते
हैं। फिर एक सामान्य सा आइडिया
आया कि क्यों न पानी कुनकुना
करके विंड स्क्रीन पर डाला
जाए। गरमाहट पा कर बर्फ हट
जाएगी। आइडिया काम कर गया।
बाद में पता चला स्थानीय लोग
भी यही करते हैं। पल भर में
विंड स्क्रीन पारदर्शी हो
गई।
तो
बर्फ यहां जिन्दगी रोकती नहीं।
शर्त यह है कि आप चलते रहिए।
कहीं रुकिए नहीं। हिमाचल में
एक बहुत सुंदर कहावत है-
हिऊं
बीचै हांडदा मांछ नेंई मरदा।
यानी बर्फ के बीच चलता हुआ
व्यक्ति नहीं मरता है,
क्योंकि
चलते हुए व्यक्ति को ठंड नहीं
लगती।
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