महात्मा के भारत वापसी के सौ साल हो गए। अपने अध्ययन के दौरान मैंने पाया था महात्मा गांधी एक टूटे हुए इंसान के रूप में वापस लौटे थे। यह दिलचस्प प्रकरण है आपको जरूर पढ़ना चाहिए।
मोहनदास गांधी दक्षिण अफ्रीका से लंदन होकर स्वदेश लौट रहे थे। वह उदास और निराश थे। ऐसी निराशा जो लंबे संघर्ष के बाद होती है। जब लगता है कि इस लड़ाई में कितना कुछ खो गया। उन्हें टॉलस्टॉय का कथन याद आया - ‘जैसे - जैसे हम मंजिल के निकट जाते हैं वह और दूर होती जाती है।’ उनकी सेहत टूट गई थी। सफेद गेहूं के ब्रेड खाने से उनकी बवासीर फिर उभर आई थी। उन्होंने जहाज से ही अपने मित्र कैलेनबैक को लिखा - ‘मेरा मन अस्थिर है और उन चीजों की इच्छा करता है, जो मैं छोड़ चुका हूं। हम कैसे छले जाते हैं? हम मान बैठते हैं कि कुछ इच्छाओं से हम मुक्त हो चुके हैं किंतु अचानक हमें लगता है कि वे केवल हमारे भीतर सो रही थीं और समाप्त नहीं हुई थीं। लंदन में मेरा भला नहीं हुआ। स्वस्थ और आशावान व्यक्ति के रूप में भारत लौटने की बजाय मैं एक ऐसे टूटे हुए इंसान के रूप में भारत जा रहा हूं जो यह भी नहीं जानता कि भारत में उसे क्या करना या क्या बनना है और मैं यह पहले भी नहीं जानता था। परंतु न जानना खुशी का एक कारण था जो अब नहीं है। मुझे उत्साहित करने वाला आशा का कोई आधार नहीं है। इसलिए प्रिय लोअर हाउस (इस शब्द में अब भी मिठास मौजूद है) लंदन में बचकर रहना। तुम अंधकार के शहर में हो। तुम अपनी आंतरिक शक्ति से प्रेरणा लेते रहना और सही रास्ते पर चलते रहना। मैं उस स्थान से बहुत दूर हूं, फिर भी वह मेरे भीतर गूंजता रहता है।’
अंधकार के शहर’ लंदन से होते हुए मोहनदास गांधी ने 9 जनवरी, 1915 को हिंदुस्तान की जमीन पर कदम रखा। अपोलो बंदरगाह पर एक भीड़ उनके लिए खड़ी थी। उसी दिन ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि वे अपना शेष जीवन भारतीय समस्याओं के ‘अध्ययन’ में लगाना चाहते हैं और यदि कोई ‘अनपेक्षित परिस्थिति’ उन्हे बाध्य नहीं कर देती तो वे अपने पिछले कार्यक्षेत्र में ‘वापस’ नहीं जाना चाहते।
मोहनदास गांधी और उनकी पत्नी का उस बंबई शहर में भव्य स्वागत हुआ जिस शहर को वह ‘लंदन की जूठन’ मानते थे। उन्हें ‘भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के वीर’ की उपाधि दी गई। हिंदुस्तान के सत्कार और यहां के पवित्र वातावरण में मोहनदास गांधी बहुत जल्द खुद को तरोताजा महसूस करने लगे। अब उन्हें अगली लड़ाई के लिए तैयार होना था। उन्हें ऊंचाइयों और महानता की नई मंजिल पर ले जाने वाला एक नया सफर उनकी राह देख रहा था। हालांकि हिंदुस्तान उनके लिए लगभग अनजाना देश था।
मेरी किताब महात्मा गांधीः ब्रह्मचर्य के प्रयोग का एक अंश
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