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पर इस्लाम बनाम हिन्दुत्व पर
विमर्श अच्छा जा रहा है। एक
मित्र Ashutosh
Ashu ने
मुझसे पूछा-सवाल
तो वही है मेरा कि हिन्दू धर्म
पर आप निडर हो कर बोल सकते हैं।
ज्यादा से ज्यादा विरोध होगा
मोर्चा निकलेगा पोस्टर फाडे
जाएंगे बस। दूसरे धर्म के बारे
में बोलने वालों का अंजाम आप
देख रहे हैं। सच्चा वही है जो
सबके बारे में समान बोले।
सच
है हिन्दू धर्म पर हम निडर
होकर बोल सकते हैं क्योंकि
हिन्दू धर्म इसकी मान्यता
देता है। बुद्ध,
महावीर,
शबर
से लेकर चार्वाक तक एक लम्बी
और शानदार परम्परा है। इनमें
कइयों ने तो हिन्दुओं के
कर्मकाण्डों और पूजा पाठ का
मजाक तक उड़ाया। लेकिन हमारे
यहां किसी को सूली पर नहीं
लटकाया गया। महात्मा बुद्ध
को तो आगे चलकर विष्णु के दस
अवतारों में एक मान लिया गया।
मोटे तौर पर आज हिन्दुओं को
तीन हिस्सों में रखा जाता है।
पहले सनातनी जो पुरानी परम्पराओं
को ज्यों का त्यों मान्यता
देते हैं। दूसरे कट्टर सुधारवादी
जो पूजा पाठ और कर्मकाण्डों
के विरोध के बावजूद हिन्दू
धर्म को मान्यता देते हैं और
तीसरे समन्वयवादी जो हिन्दु
धर्म की पुरानी और नवीन परम्पराओं
का समावेश चाहते हैं। इस 21सवीं
सदी में तीसरी श्रेणी के हिन्दू
ज्यादा हैं।
अब
रही दूसरे धर्म की बात। बेशक
आप इस्लाम की बात कर रहे हैं।
इस्लाम,
बौद्ध
और जैनियों की तरह हमारी मिट्टी
में नहीं जनमा। यह अरब की कबिलाई
संस्कृति में पैदा हुआ एक धर्म
है। अरब लोग कबिलों में बंटे
थे। हर कबिले के अपने देवी
देवता होते थे उनकी मूर्ति
होती थी जिसे वह सनम कहते थे।
आपको यह जानकर हैरत होगी यह
सनम यानी मूर्तियां बाकायदा
मस्जिद में रखी जाती थीं।
मुहम्मद साहब का भी अपना कबिला
था जिसे कुरैश कहा जाता था।
इस कबिले का धर्मस्थल काबा
था जहां मूर्तियां रखी जाती
थीं। आसपास के कबिलों के लोग
यहां हर साल हज करने आते और
मूर्ति पूजा करते थे। यहां
हिंसा वर्जित थी। इन मूर्तियों
और इबादतगाहों से सबका सीधा
और मजबूत रिश्ता था। तब ईश्वर
के बारे में अरब वासियों की
एक अस्पष्ट-सी
धाराणा थी।
तब
मुहम्मद साहब को वैसे ही ज्ञान
की प्राप्ति हुई जैसे हमारे
देश में बुद्ध और महावीर को।
उनके संदेश और धर्म सिद्धान्त
को मानने वालों को मुसलमान
का नाम दिया गया। वे मूर्ति
पूजा के विरोधी थे। लेकिन
मक्का में मूर्ति पूजा के
विरोध का खामियजा मुहम्मद
साहब और उनके अनुयायियों को
उठाना पड़ा। वे सब मदीने की
तरफ कूच कर गए। मक्के से मदीने
की इस यात्रा यानी हिजरा के
साथ इस्लाम का इतिहास शुरू
हुआ। इसी समय से मुस्लिम कलैंडर
यानी हिजरी सन् की शुरूआत हुई।
जैसा
कि फिल्म द मैसेज की पोस्ट में
मैंने बताया कि पैगम्बर के
समानता के संदेश के साथ क्यों
इस्लाम दूर दूर तक लोगों को
प्रभावित करने लगा और कैसे
मदीना इस्लामिक राज्य की पहली
राजनीतिक राजधानी बनी और मक्का
इस्लाम के धार्मिक केन्द्र
के रूप में उभरा। इस्लाम के
कारण अरब में पहली बार इस्लामिक
एकता का विस्तार हुआ। मुहम्मद
के बाद कोई दूसरा पैगम्बर नहीं
बन सकता था इसलिए पैगम्बर के
प्रतिनिधि यानी खलीफा बनने
शुरू हो गए। खलीफों की यानी
खिलाफत परम्परा खत्म हुई तो
सल्तनतों का उदय हुआ। और इस्लाम
पूरी दुनिया पर छा गया।
मुहम्मद
साहब सरल व्यक्ति थे उनके
संदेश भी उतने सरल और उदार थे।
लेकिन उनके अनुयायियों ने
राजनीतिक कारणों से इस्लाम
के विस्तार के नाम पर इन संदेशों
और धार्मिक आचरणों को कट्टर
बनाते गए। बहुत थोड़े सूफियों
ने इस्लाम को इस सांसारिकता
से मुक्त कराके उन्हें निजी
आध्यात्मिकता की तरफ ले जाने
की कोशिश की लेकिन वे कामयाब
नहीं हो पाए। इस्लाम में अपने
धर्म के खिलाफ बोलने की आजादी
खुद किसी मुसलमान को नहीं।
तो दूसरे उनके धर्म के खिलाफ
बोलें ये उन्हें कतई गवारा
नहीं। यह बात हर मुस्लिम के
डीएनए में इस कदर पैठ चुकी है
कि दुनिया का बड़ा से बड़ा
उदारवादी मुसलमान इस ख्याल
से आजाद नहीं हो सकता।
नतीजतन
इस्लामिक संसार में एक बड़े
पैमाने पर कट्टरवादी सोच का
विस्तार होता गया। कट्टरवादी
संगठनों ने इस्लाम को तोड़
मरोड़ कर जाहिलों की एक फौज
तैयार की। एक धारा आतंकवाद
की तरफ मुड़ गई और दूसरी
असहिष्णुता की ओर।
लेकिन
इस विरोधाभास के बावजूद मुझे
लगता है कि वक्त के साथ मुसलमानों
के धार्मिक व सामाजिक जीवन
में गहराई आई है। दुनिया में
मुस्लिम आबादी का एक बड़ा तबका
शांति से जीना चाहता है। वह
इस हिंसा और प्रतिक्रियावादी
सोच से नफरत करता है। जैसे
जैसे इस्लामिक दुनिया में
शैक्षिक पिछड़ापन घटेगा इस
सोच का विस्तार होगा।
कुंठित
और जाहिल लोग चाहे हिन्दू धर्म
में हो या इस्लाम में वह दया
के पात्र हैं। हम उनकी तरह
नहीं बन सकते। ऐसे लोग किसी
भी धर्म के हों वह न धर्म को
समझते हैं न ईश्वर को। उनकी
तरह असहिष्णु बनकर आचरण करना
या उनकी तरह सोचना एक मूर्खता
है। मुझे लगता है हर समझदार
आदमी इस बात से सहमत होना चाहिए।
-ये
सब मेरे निजी विचार हैं। कृपया
इसे मेरे पेशे से न जोड़ें।
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