दयाशंकर शुक्ल सागर

Monday, February 16, 2015

अर्धनारीश्वर


आज शिव पार्वती का दिन है। इस्लाम और ईसाइयत जैसे तमाम धर्म मानते हैं कि औरत (हव्वा) मर्द (आदम)की बायीं पसली से बनी। लेकिन शिव पहले देवता थे जिनके बहाने भारतीय दार्शिनकों ने बताया कि स्‍त्री-पुरुष दो नहीं एक हैं। दुनिया में अर्धनारीश्वर की पहली परिकल्पना हिन्दू फिलासफरों ने की। यह रहस्यवाद का एक अजीबो गरीब विचार था। आधा शरीर स्‍त्री का आधा पुरुष का। लेकिन इसके कई सांकेतिक अर्थ हैं। इसके पीछे एक पूरा विज्ञान है। गणित का सिद्धान्त है कि जहां भी दो विरोधी चीजें सम हो जाती हैं, तो व्यक्तित्व तत्काल तीसरा हो जाता है। वह पार हो जाता है, दोनों के। वह फिर वही नहीं रह जाता है। तो हमने माना हमारा ईश्वर अर्धनारीश्वर है। हमारे दर्शनिकों ने शिव को प्रेम के सर्वोच्च शिखर पर स्‍थापित किया। आदर्श पति और गृहस्‍थ धर्म के पालन में शिव राम से कहीं आगे निकल जाते हैं। इसलिए कोई हैरत की बात नहीं कि हमारा प्राचीन साहित्य शिव -पार्वती के प्रेम में एकाकार है। प्राचीन ग्रंथों में शिव और पार्वती के प्रेम पर अन्नत कथाएं हैं। लेकिन बाद में जब से प्रेम और काम हमारे समाज के लिए एक टैबू बन गया, धार्मिक व सामाजिक कारणों से हमने इस पहलू को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया। अगर आज हम उन प्रेम कथाओं का जिक्र करें तो बेशक अज्ञानी भगवाधारी वही सब हरकतें शुरू कर दें जो वे वैलेन्टाइन डे पर हर साल करते हैं। लेकिन संस्कार शिव पार्वती के प्रेम की तरह हमारे दिलो दिमाग में ऐसे एकाकार हो जाते हैं कि उससे मुक्त नहीं हुआ जा सकता। शिव ने अपनी पत्नी को बराबर का दर्जा दिया, सम्मान दिया और प्यार दिया। इसलिए शिवरात्रि पर देश भर की लड़कियां व्रत रखती हैं और शिव जैसे पति की कामना करती हैं। बेशक प्रगतिशील लोग हिन्दू मान्यताओं का मजाक उड़ाएं। लेकिन अगर हम ठीक से समझें तो आधुनिक जीवन में इन आदर्शों पर चल कर हम कई नए प्रतिमान स्‍थापित कर सकते हैं।