दयाशंकर शुक्ल सागर

Friday, March 18, 2022

कश्मीर फाइल्स के बहाने

 


कहानी कहानी होती है. आधा सच और आधा फसाना. लेकिन 90' के कश्मीर के कत्ले आम के बारे में जितना मैंने पढ़ा और सुना है 'कश्मीर फाइल्स' की कहानी सौ फीसदी सच है. कुछ साल पहले जब मैं पहली दफा जम्मू के कश्मीरी पंडितों के रिफयूजी कालोनी में गया था तो दिल सच में भर आया था. कश्मीर की हरी भरी वादियों को छोड़कर उनकी दुनिया यहां दो कमरे के बंद अंधेरे उमस भरे घरों में कैद हो गई थी. मैंने महसूस किया वे अपना दर्द जाहिर नहीं होने देते थे. लेकिन अपनी आंखों में गहरी पीड़ा को चाह के भी वे छुपा नहीं पाते. आंखें जो बताती थीं कि कैसे कश्मीर में उनका शारीरिक, सांस्कृतिक और भावनात्मक नरसंहार हुआ. कोई 15000 परिवार जम्मू में बस गए. कई अन्य परिवार दिल्ली, लखनऊ और दूसरे शहरों में पलायन कर गए. तीस साल में जैसे कई पीढ़ियां गुजर गईं.  तो विवेक रंजन अग्निहोत्री ने अपनी फिल्म 'कश्मीर फाइल्स'  में सच दिखाया. वैसा सच जैसा वो है. नंगा, दर्दनाक और कड़वा सच. जिस सच को दिखाने की हिम्मत तीस साल तक बालीवुड नहीं जुटा पाया. क्योंकि सच कहने और उसे सार्वजनिक करने के अपने खतरे हैं. गांधी के ब्रह्मचर्य के प्रयोग का सच मैंने अपनी किताब #अधनंगा फ़कीर में कहने की कोशिश की तो तमाम लानते मलानते झेलनी पड़ी. इस कहानी पर फिल्म बनाने के लिए बालीवुड के कई निर्देशकों से मेरी बात हुई. पर स्क्रिप्ट पसंद आने बावजूद कोई इस विषय को छूने की हिम्मत तक नहीं जुटा पाया. इसलिए मैं अग्निहोत्री का दर्द समझ सकता हूं. मैं नहीं जानता कि आपने कभी स्टीवन स्पीलबर्ग की फिल्म शिंडलर्स लिस्ट देखी या नहीं. दुनिया के सिनेमा में ये फिल्म मील का पत्‍थर है. इसे न जाने कितने आस्कर मिले. इसका हर दृश्य दिल और ‌दिमाग को झकझोर देने वाला है. ये फिल्म हिटलर की हैवानियत को दिखाती है जो उसने पोलिश-यहूदी शरणार्थियों के साथ किया.  हिटलर तो फिर गैस चैम्बरों में यहूदियों को नंगा करके उनका सामुहिक कत्ल करता था लेकिन कश्मीरी पंडितो के साथ हुई हैवानियत उससे कहीं ज्यादा खौफनाक है. शिंडलर्स लिस्ट में 50 साल पुराने जन संहार की घटना को फिल्म के जरिए दिखाया गया है. जबकि कश्मीर का जनोसाइट तो अभी 30 साल पुराना है. पर फिल्म के बहाने पूरे नरैटिव को हिंदू बनाम मुस्लिम बना दिया गया.  फिल्म शिंडलर्स लिस्ट को सारी दुनिया ने सराहा. कला की दृष्टि से भी और कंटेंट के नजरिए से भी. मुझे लगता है कि  'कश्मीर फाइल्स' का आकलन भी इसी नजरिए से करना चाहिए. फिर जिन्हें राजनीति करना है करेंगे. सबसे मजेदार प्रतिक्रिया तो अभिव्यक्ति की आजादी का झंडा उठा आजादी की भीख मांगने वाले झूठे मक्कार सेकुलरों की दिख रही है. ये अरुधंती राय जैसे वही सेकुलर हैं जिन्हें कश्मीरी आतंकियों की हिंसा अभिव्यक्ति की आजादी नजर आती है लेकिन कश्मीरी पंडितों के दर्द की अभिव्यक्ति में उन्हें असहिष्णुता दिखाई दती है. तथ्यों और कला के आधार पर फिल्म का मूल्यांकन करने के बजाय वे फिल्म पर लानत मलानत भेज रहे हैं.  

और फिल्म पर  भगवा दक्षिणपंथियों का तमाशा तो और भी ज्यादा दिलचस्प है. वे ऐसा दिखा रहे हैं कि फिल्म देखकर उन्हें पहली बार इलहाम हुआ कि कश्मीरी पंडितों पर कितना अत्याचार हुआ. ऐसा कतई नहीं है कि कश्मीरी पंडितों पर 90' में हुए इस्लामिक कट्टरपंथियों के जघन्य अत्याचारों से ये हिंदू झंडबदार अनजान थे. जब ये सब हुआ केन्द्र में अब तक के सर्वाधिक कमजोर प्रधानमंत्री वीपी सिंह की सरकार थी. इस सरकार की अर्थी को कंधा देनी वाली यही बीजेपी थी जो अपने राज्यों में 'कश्मीर फाइल्स' को टैक्स फ्री कर रही है. तब इसी बीजेपी के आडवाणी जैसे लीडरान कश्मीरी पंडितों को बचाने के बजाए सत्ता में आने के लिए रथ यात्रा निकलाने की रणनीति बना रहे थे. जम्मू में रहते मैंने महसूस किया कि मोदी सरकार पहली बार कश्मीर और कश्मीरी पंडितों को लेकर सचमुच संजीदा है. आर्टिकल 370 हटा कर और पंडितों के पुनर्वास की प्रक्रिया शुरू कराके ये सरकार ने साबित भी कर दिया. अभी जम्मू के एक मित्र ने मुझे बताया कि पोर्टल बनाकर कश्मीरी पंडितों की जमीनें वापस उनके नाम की जा रही हैं. कश्मीर में देसी और दुबई की विदेशी कंपनियां करोडों का विनिवेश करने जा रही हैं. संभवतः इसी महीने मोदी जी जिसकी शुरूआत करेंगे.

फिल्म में ज्यादातर कश्मीरी मुसलमानों को पाकिस्तान परस्त और हिंदुओं से नफरत करने वाली कौम की तरह दिखाया गया है. कश्मीर का यही कड़वा सच है. वे देश को अमूमन 'इंडिया' कह कर पुकारते हैं गोया वे कश्मीर में नहीं पाकिस्तान में हों. मैं कश्मीर के गांव-गांव हफ्तों घूमा हूं. वे आजादी के 75 साल बाद भी इंडिया पर यकीन नहीं कर पाए हैं. खुद कश्मीरी पंडितों के संगठन बताते हैं कि घाटी में अब तक कोई 650 (आरटीआई में ये गिनती 89 बताई गई है.) कश्मीरी पंडित मारे गए . श्रीनगर पुलिस के आरटीआई में दिए आंकड़े बताते हैं कि आतंकी हमलों में अब तक कोई 1635 गैर हिन्दू मारे गए. ये एक अलग नजरिया है कश्मीर को देखने समझने का. क्या इस नजरिए पर कोई फिल्म बना सकता है?  

कश्मीर के साथ इतिहास ने हमेशा से बेइंसाफी की. 12वीं सदी में कल्हण जब 'राजतरंगिणी' लिख रहे थे और देख रहे थे कि किस तरह महमूद गजनी के हमलों से बेजार उत्तर भारत के बदहवास  हिन्दू भागकर कश्‍मीर में शरण ले रहे हैं. वे अपने साथ बेशकीमती ग्रंथ साथ ला रहे थे. और देखते-देखते कश्मीर विद्वान ब्राह्मणों का केन्द्र बनता जा रहा था. 1192 यानी राजतरंगिणी की रचना पूरी होने के 44 साल बाद मुहम्मद गौरी ने भारत पर हमला का यहां मुस्लिम राज स्‍थापित किया. एक तिब्बती राजकर्मी रेंचन ने हिन्दू राजा की बेटी कोट रानी से ब्याह रचाया. वह हिन्दू बनना चाहता था पर कश्मीरी पंडितों ने ये स्वीकार नहीं किया. तो वो मुसलमान बन गया. उसकी मौत के बाद कोट रानी द लास्ट क्वीन आफ कश्मीर के नाम से मशहूर हुई. सच पूछिए तो 'कश्मीर फाइल्स' यहां से खुलती है. तो जो अग्निहोत्री ने कश्मीर फाइल्स में दिखाया वो एक बानगी भर है. असली इतिहास तो अभी बताया और दिखाया जाना बाकी है. लेकिन उसे देखने के लिए कलेजा मजबूत करना होगा.