दयाशंकर शुक्ल सागर

Saturday, April 23, 2022

'पिंजरे में कैद गणेश' जी'


दयाशंकर शुक्ल सागर
 "जो लोग इतिहास नहीं जानते वे इसे दोहराने के लिए अभिशप्त हैं." 18वीं सदी के आयरिश मूल के ब्रिटिश राजनेता, अर्थशास्त्री और दार्शनिक एडमंड बर्क का ये उक्ति हर युग के लिए मौजू है. 12वीं सदी के अंत में जब विदेशी आक्रान्ता शहाबुद्दीन गौरी और उसके गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक ने दिल्ली के हिंदू-जैन मंदिरों को तोड़ कर उसके मलबे से कुतुब मिनार और उसी परिसर में कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद का निर्माण कराया था तब उसने सोचा भी नहीं होगा कि 21वीं सदी में इतिहास की गलतियों को सुधारने के नाम पर वो और उसकी ये इमारतें हिन्दूवादी संगठनों के निशाने पर होंगी. कुतुब मिनार परिसर में हिन्दू देवी देवताओं की मूर्तियां मस्जिद की दिवारों और खम्बों पर सदियों से अंकित हैं. लेकिन कभी सांसद रहे राष्ट्रीय संस्मारक प्रा‌धिकरण के चेयरमैन तरूण विजय ने बीती 25 मार्च को संस्कृति मंत्रालय को लिख कर जैसे सोए हुए किसी जिन्न को जगा दिया. इस पत्र में उन्होंने लिखा- 'कुतुब मिनार परिसर में  गणेशजी को पैर के स्तर पर रखा गया है. वहां जान बूझकर गणेशजी को उल्टा लटका देख हिंदुओं को रोजाना अपमान झेलना पड़ रहा है. पिंजरे में एक और गणेश की मूर्ति जहां लोग अपना जूते पहन कर जाते है.' ("the daily humiliation Hindus have to face there seeing deliberately put upside down Ganpati at the foot level and another Ganesh sculpture in the cage where people put their shoes. पत्र में उन्होंने भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 का हवाला दिया है जिसमें " सभी के लिए समानता और न्याय की भावना" की बात कही गई है. ( lt is against the Constitution of lndia's spirit of equality and justice for all.")  तरूण विजय ने भारत सरकार से 'कुतुब मीनार में "उल्टे गणेश और पिंजड़े में बंद गणपति" को इस कंपाउंड को निकाल कर सम्मान के साथ राष्ट्रीय संग्रहालय में रखने का आग्रह किया है. ("the Ulta Ganesh and the Ganesh in cage in Qutub Minar compound may kindly be taken out and kept in national museum with respect. lt can be done within the AMASR Act, 1958.") कई लोगों को भाजपा के पूर्व राज्यसभा सदस्य के भावुकता से भरे इरादे नेक लग सकते हैं पर बात उस वक्त और पेचीदा हो गई जब कुछ हिंदूवादी संगठनों ने दिल्ली की साकेत कोर्ट में  इस पर एतराज जताते हुए उन "मूर्तियों को परिसर में ही सम्मानजनक ढंग से रखने और उनकी पूजा अर्चना करने की इजाजत" देने की अपील दायर कर दी. और कोर्ट ने बीती 13 अप्रैल को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) को मस्जिद से हिंदू देवताओं की मूर्तियों को हटाने पर रोक लगाकर और यथा स्थिति बनाए रखने के आदेश जारी कर दिए.
पिंजड़े की तस्वीर

कोई और वक्त होता तो बात बेशक आई-गई हो जाती. लेकिन इस दौर में जबकि हर तरफ हिन्दुत्व की लहरें हिलौरे मार रही हैं, ये मामला संगीन हो गया है. देखा जाए तो कुतुब मिनार और उसके परिसर में मौजूद मस्जिद को लेकर विवाद नया नहीं है. खुद देश का पुरातत्व विभाग मानता है कि कुतुब मिनार परिसर में शहाबुद्दीन गौरी के सिपाहसलार ऐबक ने हिंदू-जैन मंदिरों को तोड़ कर उसके मलबे से कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद बनवाई. यह एक आक्रान्ता का शक्ति प्रदर्शन था जिसे उसने कुव्वत-उल-इस्लाम यानी इस्लाम की कुवत (Might of Islam) का नाम दिया. ये ऐतिहासिक तथ्य है जो मस्जिद के मुख्य दरवाजे पर खुद कुतुबुद्दीन ऐबक ने अरबी में इन शब्दों में अंकित कराया कि- "इस जामी मस्जिद की तामीर (महीने) वर्ष 587 (1191-2 ई.) में सेना के महान और गौरवशाली सेनापति, (नाम) कुतुब-द-दौलतवा-दीद, अमीरुइउमरा ऐबक सुल्तानी द्वारा की गई थी, खुदा अपने बंदों को ताकतवर बनाए. इसके (मस्जिद के ) निर्माण में 27 मंदिरों की सामग्री व धन (हर मंदिर की सम्पत्ति 2,000,000 देलीवाल थी) का इस्तेमाल किया गया,"  ( this Jami Masjid was built in (the months of) the year 587 (1191-2 A.D.) by the Amir, the great and glorious commander of the army, (named) Qutbu-d-daulatwa-d-did, the AmiruIumara Aibak Sultani, may God strengthen his helpers. The materials of 27 temples on each of which 2,000,000 Deliwals has been spent, were used in (the construction of) this mosque)* ( एएसआई के तत्कालीन अधीक्षक जे.ए. पेज द्वारा अरबी से अंग्रेजी में किया गया  ये अनुवाद 'मेमरी आफ द आर्किलाजिकल सर्वे आफ इंडिया नं 22 में 'एन हिस्टारिकल मेमोरी ऑन द कुतुब: दिल्ली' शीषक से प्रकाशित लेख से लिया गया है.)  *(‘Memoirs Of The Archeological Survey Of India’ No. 22 under the heading ‘An Historical Memoir On The Qutub: Delhi’ authored by J.A. Page, the then Superintendent Archeological Survey of India,) दरवाजे पर अगर यह इबारत न भी लिखी गई होती तो भी खुले मस्जिद परिसर में देवी-देवताओं की मूर्तियां और  इसके आंगन के चारों तरफ के खंबों और दीवारों पर मंदिर की वास्तुकला साफ तौर पर दिखाई देती है. भारत में शुरूआती मस्जिदों में एक ये इमारत आज तकरीबन खंडहर में तब्दील हो चुकी है. कुतुब मिनार के एकदम बगल में बनी ये मस्जिद अब भारतीय पुरातत्व सवेक्षण की निगेहबानी में है. चूंकि मस्जिद परिसरों में चारों तरफ मूर्तियां हैं इसलिए पुराविदों को य‌हां कभी नमाज पढ़े जाने के संकेत नहीं मिले. ज्यादातर खम्बों और दिवारों पर अंकित मूर्तियां अब पूरी तरह से टूट चुकी हैं और आम पर्यटक के लिए पहचान कर पाना कठिन है कि कौन सी मूर्ति किस देवी देवता की है. हालांकि तरूण विजय और तमाम हिन्दू संगठन व इतिहासकार इनकी पहचान गणेश, विष्णु, गंगा, सूर्य, गंगा, यमुना, दशावतार, कृष्णा जन्म, नवग्रह,यक्ष यक्षिणी, महावीर, नटराज, यंत्र आदि देवताओं से करते रहे हैं. लेकिन चूंकि गणेश की प्रतिमाएं अपनी लंबी सूंड के कारण अलग से पहचानी जाती हैं इसलिए मौजूदा विवाद भी गणेश प्रतिमाओं को लेकर उठ खड़ा हुआ है. 


क्या है विवाद 

पहली विवादित प्रतिमा कुतुब मिनार परिसर की मस्जिद के आंगन के दांए सिरे पर रखी है. विवाद के कारण पिछले दिनों एएसआई ने इस कोने को बैरीकेट टेप ( Barricade Tape) लगा कर घेर दिया है ताकि आम पर्यटक वहां न आ सकें. (देखें फोटो)


दरअसल यह प्रतिमा करीब डेढ़ फीट शिलाखंड पर अंकित है. इस प्रतिमा को फर्श पर झुक कर ही ठीक से देखा जा सकता है. पूर्व सांसद तरूण विजय को आपत्ति है कि पर्यटक प्रतिमा के इर्द गिर्द जूते पहन कर घूमते हैं क्योंकि उन्हें मालूम ही नहीं कि यहां गणेश जी की प्रतिमा रखी है.

वे कहते हैं कि "मैंने एएसआई अफसरों से सिर्फ ये कहा कि इस प्रतिमा को कम से कम पैडेस्टल पर रख दिया जाए ताकि ये हर दिन अपमानित न हो पर मेरी बात किसी ने नहीं सुनी, इसलिए पत्र लिखना पड़ा"  दूसरी विवादित प्रतिमा मस्जिद में आंगन की तरफ एक खम्बेम के पास लगी है. दूसरी विवाद उल्टी गणेश प्रतिमा को लेकर है. (देखें फोटो) प्रसिद्ध इतिहासकार डा. डीपी तिवारी कहते हैं कि "हो सकता है आक्रान्ताओं ने मस्जिद जल्दबाजी में बनवाई इसलिए मलबे से पत्थपर पर अंकित ये प्रतिमा उल्टी लग गई हो.

क्योंकि मुसलिम कारीगरों के लिए वो सिर्फ एक पत्थर का टुकड़ा ही था." लेकिन प्रसिद्ध पुराविद और दिल्ली संस्मारकों के कई साल पुरातत्व अधीक्षक रहे डा. बीआर मणि ऐसा नहीं मानते. उन्होंने कहा ये जानबूझ कर हिन्दुओं को अपमानित करने के लिए किया गया. पत्‍थरों में अंकित कई मूर्तियां तोड़ी गईं और जो नहीं टूटीं उसे प्लास्टर से ढक दिया गया."  पूर्व सांसद विजय कहते हैं कि कम से कम इस गलती को तो अब सुधारा जा सकता है. पर दीवार में अंकित इस प्रतिमा को निकाल कर दोबारा कैसे ठीक किया जा सकता है? जवाब में विजय कहते हैं- "ये एएसआई जाने कि इसे कैसे ठीक करना है. लेकिन हिन्दूओं के लिए अपने इष्टदेव को रोज अपमानित होते देखना अच्छा नहीं लग रहा है." 

गणेश की तीसरी विवादित प्रतिमा वह है जिसे पूर्व सांसद "पिंजड़े में कैद बताते हैं." ये प्रतिमा मस्जिद की दाई तरफ की बाहरी दीवार में एकदम नीचे पत्थर पर अंकित है. क्योंकि ये प्रतिमा बाहरी दीवार के सबसे निचले पत्थर पर बनी है इसलिए सदियों के थपेडे़ इस पर नहीं पड़े. ये यहां मौजूद मूर्तियों में से सबसे साफ सुधरी प्रतिमा हैं जिसमें गणेश स्पष्ट दिखते हैं. (देखें फोटो) लेकिन इसे पुरातत्व विभाग ने लोहे की जाली से घेर रखा है जिसे "पिंजड़ा" कहा जा रहा है. डा. मणि कहते हैं 1995 तक वे यहां थे तब तक इस प्रतिमा को जाली से नहीं ढका गया था. 'पिंजरे' का नया विवाद उठने के बाद एएसआई ने यहां भी अपने सिक्योटी गार्ड बैठा दिए. अब किसी पर्यटक को इस जाली के पास जाने की इजाजत नहीं. अगर आप जिद करेंगे तो कोई हैरत की बात नहीं कि एएसआई के सिक्योर्टी गार्ड आपके साथ जोर जबरदस्ती करने लगें. एक सिक्योटी गार्ड ने बताया कि "ये आदेश ऊपर से मिले हैं कि जाली के पास किसी को जाने न दिया जाए." 


फिर इस प्रतिमा को पिंजड़े में कैद क्यों करना पड़ा? इसमें जवाब में एएसआई के एक अधिकारी नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं कि इस प्रतिमा की लोग पूजा करने लगे थे. इस पर टीका चंदन लगाने लगे. लोग यहां प्रसाद भी चढ़ाने लगे. जबकि प्राचीन संस्मारक तथा पुरातत्वीय स्थल और अवशेष अधिनियम, 1958  (एएमएएसआर एक्ट) के तहत पुरातत्व सम्पत्ति के साथ किसी भी तरह की छेड़छाड़ की इजाजत नहीं है. इसलिए सख्ती इतनी है कि कुतुब मिनार परिसर में दाखिल होने के दौरान सभी तरह की प्रसाद सामग्री जब्त कर ली जाती है. पुरातत्व के एक कर्मचारी ने बताया कि जिन्हें मालूम है वे गणेश जी के लिए चढ़ावा लेकर आ जाते हैं. ऐसी ही गेट पर जब्त नारियल आदि प्रसाद सामग्री कभी भी देखने को मिल जाएगी. (देखें फोटो) विवाद उठते ही आनन फानन में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण हरकत में आ गया. 17 अप्रैल को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण दिल्ली सर्किल के अतिरिक्त महानिदेशक डा. आलोक त्रिपाठी अपनी टीम के साथ मस्जिद परिसर में अपने मोबाइल फोन से इन मूर्तियों की तस्वीरें खींचते नजर आए. एडीजी त्रिपाठी ने हालांकि इंडिया टुडे से इस प्रकरण पर विस्तार से बात करने से ही इंकार कर दिया. गणेश प्रतिमा को जाली में बंद रखने के बारे में पूछे जाने पर त्रिपाठी ने कहा कि "यहां सब कुछ एएमएएसआर एक्ट के मुताबिक है." तरूण विजय के पत्र पर उन्होंने बस इतना कहा कि "एएसआई हर शिकायत का अपने स्तर पर संज्ञान लेता है."     

लेकिन ऐसे लोगों की कमी नहीं जो इस पूरे प्रकरण को सोची समझी साजिश मान रहा है. अलीगढ़ मुस्लिम विवि के मध्यकालीन इतिहास के प्रोफेसर सै.अली नदीम रिजवी कहते हैं- "इत्तला मिली है कि वहां बहुत दिनों से सुनियोजित तरह से मूर्तियों को झाड़ पोछ कर सामने सजाया जा रहा हैं ताकि बखेड़ा खड़ा करके मुल्क को बांटा जा सके." जबकि डा. मणि कहते हैं- "ये संभव ही नहीं कि वहां कोई भी छेड़छाड़ की जा सके. क्योंकि इस परिसर को यूनेस्को ने वर्ल्ड हैरिटेज साइट घोषित किया है. यहां का एक भी पत्‍थर यहां से वहां किया गया तो इससे ये दर्जा छिन सकता है."   

प्रो. रिजवी कहते हैं कि कोई भी संस्मारक या मान्युमेंट न मंदिर होता है न मस्जिद. वहां कोई धार्मिक गतिविधि करना गैर कानूनी है. ये वैसा ही ही कि कल कोई कहे कि मैं संग्रहालय में रखी किसी देवी देवता की पूजा वहीं करूंगा भजन कीर्तन करुंगा. या ब्रिटिश म्यूजियम में कई सदियों पुराने बड़े-बडे़ ताजिए रखे हैं. मैं शिया मुसलमान हूं और मैं वहां कल जाकर मजलिस या मातम करने लगूं ? आखिर इस मुल्क को हम कहां ले जा र‌हे हैं?" पुराविद डा. मणि भी नहीं चाहते कि इन संस्मारकों के साथ कोई भी छेड़छाड हो. या यहां से कोई भी मूर्ति संग्रहायल भेजी जाए. लेकिन वे कहते हैं- "ये गणेश जी का अपमान नहीं बल्कि इससे उन्हें उल्टा लगाने वाले शासकों के चरित्र का पता चलता है. लेकिन ये बात सबको पता होनी चाहिए." पूर्व सांसद का भी जोर इसी बात पर ‌है कि ये कहानी वहां लिख कर प्रदर्शित की जाए.       

         

‘कुतुब मिनार उपासना एक्ट के दायरे से बाहर’

                                                                   याचिका कर्ता हरिशंकर जैन
कुतुब मिनार विवाद की ये पूरी कहानी शुरू होती है दो साल पहले जब 'भगवान विष्णुम और जैन तीर्थांकर भगवान ऋषभदेव' ने ‌दिल्ली की कोर्ट में सरकार और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के खिलाफ एक याचिका दाखिल की. दिलचस्प है हिन्दुस्तानी कानून में मूर्तियां खुद मुकदमा दायर कर सकती हैं. क्योंकि ‌सुप्रीम कोर्ट ने अपने तमाम फैसलों में 'देवता' को एक व्यक्ति के रूप में मान्यता दी है.रामजन्म भूमि-बाबरी मस्जिद विवाद के चर्चित मुकदमे में अयोध्याम के 'रामलला विराजमान' खुद वादी थे और उनकी तरफ से मुकदमा करने वाले रामलला के 'नेक्स्टर फ्रैंड' देवकी ननंद अग्रवाल थे. तो जाहिर है ये याचिका भी इन भगवानों के 'नेक्स्ट  फ्रैंड' के रूप में एडवोकेट हरिशंकर जैन और रंजना अग्निहोत्री की और की तरफ से दायर की गई. ये दोनों वरिष्ठ अधिवक्ता राममंदिर मामले में रामलला के वकीलों की टीम का हिस्सा रहे हैं. जैन अब लखनऊ छोड़ कर सुप्रीम कोर्ट में वकालत कर रहे हैं. दिसम्बर 2020 में दायर याचिका में उनका कहना था कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने अपनी प्रारंभिक रिपोर्ट (1862) के बाद से ही इस तथ्य की पुष्टि की है 27 हिंदू और जैन मंदिरों को ध्वस्त करने के बाद उसके मलबे से कथित कुव्वत-उल-मस्जिद बनाई गई. खुद कुतुबुद्दीन ऐबक ने ये तथ्य मस्जिद के मुख्य प्रवेश द्वार पर अंकित किया है. भारत सरकार ने कुव्वतुल इस्लाम मस्जिद परिसर को 16 जनवरी 1914 संरक्षित स्मारक घोषित किया और तब से इसका प्रशासनिक नियंत्रण भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण दिल्ली सर्कल के पास है.  याचिकाकर्ताओं का दावा है कि अधिग्रहण की तारीख पर, मंदिरों और देवताओं का प्रतिनिधित्व करने वाला कोई नहीं था इसलिए प्राचीन स्मारक संरक्षण अधिनियम 1904 की धारा 10 के तहत उन्हें पक्ष रखने का कोई मौका नहीं दिया गया था. इस तरह याचिका में कुतुब मिनार परिसर को हिन्दुओं का पूजा स्थतल मानते हुए वहां मौजूद देवी देवताओं की पूजा, दर्शन व उपासना करने की इजाजत देने मांग की गई थी. इस याचिका में कुतुब मिनार परिसर को भारत सरकार द्वारा गठित किसी हिन्दू ट्रस्ट के हवाले करने की भी मांग है. याचिका में कहा गया कि प्राचीन संस्मारक तथा पुरातत्वीय स्थल और अवशेष अधिनियम, 1958 की धारा 16 और 19 इसकी इजाजत देता है.   

लेकिन साकेत कोर्ट ने 29 नवम्बर 2021 को पूजा स्थल ((विशेष उपबंध) ) अधिनियम, 1991 (THE PLACES OF WORSHIP (SPECIAL PROVISIONS) ACT, 1991 )का हवाला देते हुए ये याचिका रद कर दी.  पूजास्थल एक्ट कहता है कि 15 अगस्त, 1947 को मौजूद देश में किसी भी उपासना स्थल का धार्मिक स्वरूप वैसा ही बना रहेगा जैसा वह उस दिन विद्यमान था. कोर्ट ने अपने फैसले में इस एक्ट की व्याख्या करते हुए कहा-"इस एक्ट का मकसद देश का धर्मनिरपेक्ष चरित्र बनाए रखना है. हमारे देश का एक समृद्ध इतिहास रहा है और उसने बहुत चुनौतीपूर्ण समय देखा है. फिर भी, इतिहास को समग्र रूप से स्वीकार करना होगा.  क्या ये हो सकता है कि अच्छे को बरकरार रखा जाए और खराब को हमारे इतिहास से हटा दिया जाए?"  ("The purpose of the Places of Worship Act, 1991 was to maintain the secular character of this nation. Our country had a rich history and has seen challenging times. Nevertheless, history has to be accepted as a whole. Can the good be retained and bad be deleted from our history? Thus, harmonious interpretation of both the statutes is required to give full force to the objective behind the Places of Worship Act, 1991") बहस के दौरान वादी के वकील ने 'राष्ट्रीय शर्म' के मुद्दे पर कुछ बातें कहीं. इस पर कोर्ट ने कहा- "भारत का सांस्कृतिक रूप से समृद्ध इतिहास रहा है. इस पर कई राजवंशों ने शासन किया. हालांकि इससे किसी ने इनकार नहीं कि अतीत में गलतियाँ की गई थीं, लेकिन ऐसी गलतियाँ हमारे वर्तमान और भविष्य की शांति भंग करने का आधार नहीं हो सकतीं. कानून हमारे इतिहास और राष्ट्र के भविष्य की बात करता है. इतिहास के वाहक के रूप में राष्ट्र को इसका सामना करने की जरूरत है. आजादी अतीत के घावों को भरने के लिए एक महत्वपूर्ण क्षण था. कानून को अपने हाथ में लेने वाले लोगों के जरिए ऐतिहासिक गलतियों का समाधान नहीं किया जा सकता है." ("India had a culturally rich history. It has been ruled over by numerous dynasties. During arguments, the Ld. Counsel for plaintiff has vehemently argued on the point of national shame. However, nobody has denied that wrongs were committed in the past but such wrongs cannot be the basis for disturbing peace o f our present and future.")

 याचिका खारिज होने के बाद हिन्दूवादी पक्ष के वकीलों ने सिविल कोर्ट में ही अपील दायर की जिसमें कहा गया कि पूजा स्थल अधिनियम, 1991 की संबंधित धाराएं भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा अधिग्रहित कुतुब मिनार जैसे इमारतों पर लागू नहीं होतीं. खुद पूजा स्थल अधिनियम, 1991 की धारा-3 में ये बात साफ तौर पर कही गई है. वादी की अपील पर साकेत कोर्ट ने भारत सरकार और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को नोटिस जारी कर दिया है. उधर कांग्रेस नेता व सुप्रीम कोर्ट के सीनियर वकील सलमान खुर्शीद इंडिया टुडे से कहते हैं - "ये पूजा स्थल अधिनियम, 1991 की गलत व्याख्या है. ये सुप्रीम कोर्ट तय करेगा कि एएसआई की इमारतें इस एक्ट के तहत शामिल हैं या नहीं."  

इंडिया टुडे' ने एएसआई के वरिष्ठ अधिवक्ता सुभाष गुप्ता से इस बारे जानना चाहा तो उन्होंने कहा कि वे इस बारे में कोई बयान देने के लिए अधिकृत नहीं हैं. नोटिस मिली है और इसका जवाब तैयार किया जा रहा है. उधर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण दिल्ली सर्किल के अतिरिक्त महानिदेशक डा. आलोक त्रिपाठी  ने कहा कि अब ये मामला अदालत में है इसलिए हम अभी कोई टिप्पणी नहीं कर सकते. 

 लेकिन इसी बीच पूर्व राज्यसभा सदस्य और पूर्व सांसद तरूण विजय के संस्कृति मंत्रालय को पत्र लिख कर नया विवाद खड़ा कर दिया. उन्होंने 'कुतुब मीनार परिसर में 'उल्टे गणेश' और 'पिंजड़े में बंद गणपति' को कुतुब परिसर से निकाल कर सम्मान के साथ राष्ट्रीय संग्रहालय के पत्र के जारी होते ही भगवान ऋषभ देव के 'सखा' हरिशंकर जैन ने कोर्ट में एक अंतरिम राहत की याचिका जारी करते हुए कहा कि "ये राष्ट्रीय शर्म का विषय है करोडों हिन्दुओं के आराध्य गणपति की मूर्ति अपमानजनक हालत में पड़ी हुई है. ये एएसआई निदेशक की जिम्मेदारी है कि वे न केवल इस परिसर में बाकी अपनी सभी साइटों पर देवी देवताओं के सम्मान का ख्याल करें. एएसआई को कोई अधिकार नहीं है कि वह परिसर से इन मूर्तियों को राष्ट्रीय अभिलेखागार या कहीं और स्थांतरित करे. " जैन की इस प्रार्थना पर कोर्ट बीती 13 अप्रैल को परिसर से प्रतिमाएं न हटाने और यथा स्थिति बनाए रखने के आदेश जारी कर दिए. कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई की अगली तारीख 17 मई 2022 तय की है. 

जाहिर है पहली नजर में ये सारा मामला पुराने जख्म कुरेदने जैसा है. लेकिन भगवान ऋषभदेव के 'नेक्स्टर फ्रैंड' हरिशंकर जैन कहते हैं-"ये जख्म कुरेदना नहीं पुराने जख्म का उभार है. आखिरी आजादी मिलती क्यों हैं ताकि हम पुरानी गलतियों को सुधार सकें." जैन ताजा मिसाल देकर कहते -"आज जो रूस, यूक्रेन के साथ कर रहा है क्या उसे कभी यूक्रेन की आने वाली पीढ़ी भूलेंगी फिर हम विदेशी आक्रान्ताओं को कैसे भूल जाएं?" इस पर इंडियन मुस्लिम लॉयर कांउसिल के महासचिव आबिद हुसैन कहते हैं कि "पुराने जख्म कुरेदने से सिर्फ तकलीफ और नफरत ही पैदा होती है. बेहतर ये है कि हम पुरानी बातों को भूल कर आगे बढ़े."


END

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