दयाशंकर शुक्ल सागर

Thursday, September 24, 2020

किसानों की कमाई से नेताओं की मौज

 


हिन्दी अखबारों में भी खेती किसानी की कवरेज को बहुत तब्बजो नहीं दिया जाता है. इसलिए कोई रिपोर्टर उसमें ज्यादा दिलचस्पी नहीं लेता. खेती की खबरें और कवरेज केवल कृषि निदेशालय तक महदूद रहती है. कोई पन्द्रह साल पहले जब मैं राजनीतिक और सचिवालय की कवरेज से ऊब गया तब मैंने खुद आगे बढ़कर एग्रीकल्‍चर बीट की पेशकश की जो मुझे मिल गई. तो मैं पहली बार मंडी परिषद के दफ्तर गया. ये मेरे दफ्तर के पास ही था. जब पहली बार मंडी परिषद में दाखिल हुआ तो लगा किसी फाइव स्टार होटल में आ गया हूं. शानदार इमारत, चमचमाती इटेलियन टाइल्स की फर्श,  कमरों में वुडन वर्क. पहली नजर में लगा ही नहीं किया इस दफ्तर का खेती किसानी से कोई लेना देना होगा. कोई किसान तो इस दफ्तर में घुसने की हिम्मत नहीं कर सकता था. तब मुझे पता चला कि अरबों रूपए की ये इमारत किसानों के पैसों से ही बनी है. उस जमाने में भी मंडी अफसर के आला अफसर और मंत्रीजी की आलीशान कारों की खरीद और उसका खर्च भी किसानों के पैसे से चलता था. दरअसल सरकार किसानों के बेचे गए अनाज से तब कोई ढाई फीसदी मंडी टैक्स लेती थी. कायदे से इस पैसे का इस्तेमाल सरकार को मंड़ियों को बेहतर बनाने और गांवों में सम्पर्क मार्ग बनाने, इन सड़कों की मरम्मत और इन्हें गड्ढा मुक्त करने में खर्च करना चाहिए था. ताकि किसान आसानी से अपनी उपज लेकर मंडी तक पहुंच सके. लेकिन हर साल करोडो में आने वाले मंडी शुल्क का इस्तेमाल मंत्री और अफसर राजशाही पर खर्च करते थे. राज्य में चाहे किसी की सरकार हो. लेकिन कागजों पर गांव की सड़कें गड्ढामुक्त होती रहीं. न कोई उन्हें देखने वाला न जांच करने वाला. ये कच्चा काम था इसलिए इसका आडिट भी नहीं होता है. मंडी परिषद के कुछ गिने चुने ठेकेदार, नेता और अफसरों से मिलकर पैसे बनाने लगे. इसके इलावा भी हजार तरीके हैं यहां पैसा कमाने के वहां. देखते देखते मंडी परिषद सबसे कमाऊ विभाग बन गया. आज इससे कभी न कभी जुड़ा हर नेता और अफसर करोड़पति बन गया है. न भरोसा हो तो जांच करावा के देख लीजिए. अब जब से नया कानून आया है मंडी से जुड़े अफसर कर्मचारियों के होश उड़े हुए हैं. यूपी के किसानों को न पहले ज्यादा मतलब था मंड़ियों से न अब रहेगा. मंडी रहे या चूल्हे भाड़ में जाए. लेकिन पंजाब और हरियाणा में ऐसा नहीं है. किसानों को साहूकारों और दलालों से बचाने के लिए रोहतक के सर छोटू राम ने आजादी से पहले ही यहां देश में पहली मंडी की स्‍थापना की. समझ लीजिए खुद किसान रहे छोटू राम पंजाब-हरियाण के छोटे गांधी थे. आज भी उनका नाम वहां  के किसान सम्मान से लिया जाता है. तो उनके कारण जो मंडी कानून बना वह पंजाब हरियाणा के किसानों की ताकत बन गया और वहां की अर्थव्यवस्‍था की धुरी भी.मंडी की वजह से कि वहां के किसान शुरू से ही धन सम्‍पन्न हैं. अब उन्हें लग रहा है कि ये मंडियां खत्म हो जाएंगी तो वे एक बार फिर बड़े साहूकारों के चंगुल में फंस जाएंगे. इसीलिए इन बिलों का वहां सबसे ज्यादा विरोध हो रहा है.       

 

तो कहने का मतलब चीजें इतनी आसान भी नहीं जितनी की ‌ऊपर से दिखती हैं. इन विवा‌दित बिलों के प्रभावों को बड़े परिपेक्ष्य में देखने और समझने की जरूरत है. सतही तौर पर अगर आप कोई नतीजा निकालेंगे तो बाद में बहुत पछताएंगे. क्योंकि आप किसान भले न हों एक उपभोक्ता हैं और उससे भी पहले आप इस देश के प्रबुद्ध नागरिक हैं. ये हमेशा याद रखिएगा नेता कोई संत-महात्मा हो या ईश्वर का भेजा गया कोई देवदूत. आखिर में वह नेता ही होता है.


Thursday, September 17, 2020

ज्योतिष विद्या का रहस्य




क्या आप ज्योतिष विद्या पर यकीन करते हैं? बहुत सालों तक मैं नहीं करता था. ये बड़ी बेढंगी बात लगती है कि आपसे लाखों मील दूर बैठे ग्रह नक्षत्र आपके जीवन को संचालित करें? क्या ये संभव है? अब जबकि मैं ज्योतिष विज्ञान का अध्ययन कर रहा हूं कह सकता हूं कि हां ये संभव है. न केवल संभव है बल्कि ये सब बहुत दिलचस्प है. ज्योतिष विद्या एक विज्ञान है. ये विशुद्ध गणित हैं। एक ग्रह है चन्द्रमा उसके उतार चढ़ाव से इतने बड़े समन्दर में लहरे उठती और गिरती हैं तो हम तो सिर्फ इंसान हैं जिसके शरीर में 60 फीसदी पानी है. इन दिनों मैं ज्योतिष विद्या पढ़ रहा हूं. मैंने अपनी कुंडली भी पढ़ी, जिसमें साफ साफ लिखा है- आप दूसरों को ज्ञान बांटेंगे? पढ़कर मुझे हंसी आ गई. आगे पढ़ता गया तो और बातें भी सच निकलती चली गई. अपने शुरूआती अध्ययन में जितना मैं ज्योतिष विज्ञान समझ पाया वह ये कि जिस वक्त हम जन्म लेते हैं ठीक उसी वक्त ब्रह्मांड में मौजूद ग्रह नक्षत्र हमारे जीवन की पूरी कहानी लिख देते हैं. ठीक उसकी वक्त तय हो जाता है कि हम अपने जीवन में क्या काम करने के लिए पैदा हुए हैं? हमारा जीवन कैसा होगा? हम परिवार कैसा होगा? हमारा चरित्र कैसा होगा‍‍? हमारा जीवन कितना होगा? इसी को जन्म कुंडली कहते हैं. ये सब उतना ही सटीक और वैज्ञानिक है जितना 2+2=4. लेकिन दिक्कत ये है कि हूबहू भविष्य बताने वाली इस गणित के मास्टर बहुत कम हैं. आप मुझे बस अपने जन्म का सही समय दिन, घंटे, मिनट और सेकेंड बता दें और ये बता दें कि आपका जन्म दुनिया के किस कोने में हुआ है. मैं या कोई और भी बहुत आसानी से कंप्यूटर से गणना करके बता देगा कि आपके के जन्म के समय ग्रह‌ और नक्षत्र कितने आकांक्ष पर थे और उन्होंने आपके जीवन पर क्या असर डाला जिसकी वजह से आप आज इस स्थिति में हैं. मैं आपके व्यक्तित्व के बारे में जो बातें बताऊंगा वह 90 फीसदी सही होंगी. अगर सही नहीं हैं तो इसका सिर्फ एक मतलब है कि आपके जन्म के समय के बारे में जानकारी कहीं गलत होगी. वर्ना ये गणना 100 फीसदी सही बैठती है. मजे की बात ये है कि इसमें कोई विवाद नहीं है. 

तो पहली बात जन्म कुंडली एक सेटालाइट पिक्चर की एक तरह है. ये आपके जीवन का फोटोग्राफ है. आपके जन्म के समय आसमान के ग्रह नक्षत्रों की जो तस्वीर खिंच गई उसे कोई नहीं बदल सकता. वो तस्वीर आपके जीवन से जुड़ गई जो आपकी मौत तक आपको पीछा नहीं छोड़ने वाली.  दूसरी बात ज्योतिष शास्‍त्र कहता है कि आपके जीवन में सुख दुख, अच्छे और बुरे दिन, यश अपयश ये सब जो आते जाते हैं उसकी वजह वर्तमान के ग्रह नक्षत्रों के मूवमेंट हैं जो आपके जीवन पर तात्कालिक असर डालते हैं. क्योंकि आपका जन्म एक खास ग्रह नक्षत्र के डिजाइन में हुआ है तो मौजूदा ग्रह नक्षत्रों की बदलती लोकेशन उस पर निरन्तर असर डालती रहती है. तो जीवन में कभी खुशी कभी गम के पीछे की थ्योरी की वजह यही है. 

तो अब तक जो बातें मैंने बताईं उससे साफ है कि आपका जीवन आपके नियंत्रण में बिलकुल नहीं है. आपके नियंत्रण में सिर्फ कर्म है. हो सकता है कि आप बहुत योग्य हैं, बहुत काबिल हैं बहुत कर्म करते हैं लेकिन फिर भी आप कामयाब नहीं हैं.तो इसके पीछे वजह आप नहीं है. आपके ग्रह नक्षत्र हैं जो आपके सारे कर्म के बावजूद आपको आगे नहीं बढ़ने देते. जबकि आपसे कहीं मूर्ख इंसान तरक्की की सीढ़ियां चढ़ते जाता है. माफ कीजिए आप पाएंगे कि उसकी जन्म कुंडली में यही लिखा है. इसी को किस्मत या डेस्टनी कहते हैं. लेकिन इससे आप निराश कतई न हो. अपना कर्म जारी रखें. उससे आप भले आपको मनचाहा नतीजा न हासिल हो लेकिन अगर आपने थक कर किस्मत से हार मान ली और कर्म छोड़ दिया तो यकीन जानिए आपकी हालत बद से बद्तर हो जाएगी. और मजे की बात ये कि ये बात भी आपकी जन्म कुंडली में कहीं जरूर लिखी होगी.  

मेरी अब तक की बनी समझ से ज्योतिषी का काम बस यही खत्म हो जाना चाहिए. वो इसके आगे आपकी कोई मदद नहीं कर सकता. क्योंकि वो किसी भी कीमत पर आपकी किस्मत नहीं बदल सकता. हां वो अपनी जेब भरने के लिए आपसे ग्रह शांति के लिए पूजा-यज्ञ-हवन आदि करने की सलाह दे सकता है. या फिर आपको कोई खास पत्‍थर सा रत्न पहनने की सलाह दे दे. लेकिन मुझे नहीं लगता इससे कोई बहुत असर पड़ता होगा. कुछ लोगों को पत्‍थर पहनने से कोई फायदा मिला भी होगा लेकिन ये सिर्फ संयोग या इत्तेफाक है. इसके पीछे कोई सांइस होगी ऐसा नहीं है. या अगर हो तो उसका आविष्कार अभी तक तो नहीं हुआ है. लेकिन आप ये मानिए कि ज्योतिष एक विज्ञान है लेकिन इसके जानकार चंद ऊंगलियों पर गिने जाने वाले लोग हैं. मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि 99 फीसदी ज्योतिषी फ्राड हैं. उनका ज्योतिष का ज्ञान बहुत सीमित है. लेकिन उसी से उनका काम खूब अच्छे से चल जाता है. क्योंकि लोगों को अपना भविष्य जानने में रूचि है. जिसका कोई मतलब नहीं. अपना भविष्य जानना निरी बेवकूफी है खास तौर से तब जब आप जानते हैं कि उस भविष्य को दुरुस्त करने के लिए आप या कोई और कुछ नहीं कर सकता. ये बात निराशाजनक जरूर है लेकिन जो है सो है. क्या कीजिएगा आप?  



Wednesday, September 9, 2020

अंधेर नगरी चौपट राजा

 



बनारस में एक है ठठेरी बाजार. लॉकडाउन से थोड़ा पहले ही मैं वहां गया था. बनारस के संगीतज्ञ मर्मज्ञ और काशी संगीत समाज के संयोजक कृष्णकुमार रस्तोगी के निधन पर. वे भी ठठेरी बाजार में रहते थे. गजब प्रतिभाशाली व्यक्तित्व थे लेकिन उन पर फिर कभी. तो ये ठठेरी बाजार पतली से एक गली है जहां कभी ठठेरे रहे होंगे. लेकिन आज कल तो इस गली के दोनों तरफ तरह तरह की मिठाई, नमकीन, अचार, पापड़ और न जाने कितनी चटपटी चीजों की दर्जनों दुकानें हैं. इसी गली में बनारस का मशहूर राम भंडार है. बाबा काशी विश्वनाथ के दर्शन के बाद जहां की पूड़ी कचौड़ी खाए बिना बनारस दर्शन अधूरा है. इसी गली में चौखंबा के पास हिंदी के प्रसिद्व साहित्यकार भारतेंदु हरिश्चंद्र का घर हुआ करता था, जो आज भी भारतेंदु भवन के नाम से उपेक्षित पड़ा है. उनके पोते पर पोते आज भी वहां रहते हैं. आज इन्हीं भारतेंदु जी की जयंती है. भारतेंदु जी मुझे बचपन से याद रहे हैं अपने प्रसिद्ध नाटक 'अंधेर नगरी' के कारण. उनका अंधेर नगरी चौपट राजा का मशहूर नाटक हर युग में प्रासंगिक है, जिसमें एक विवेकहीन और निरंकुश शासन व्यवस्था पर करारा व्यंग्य करते हुए राजा को अपने ही कर्मों द्वारा नष्ट होते दिखाया गया है. कहते हैं भारतेंदु ने इसकी रचना बनारस के हिंदू नेशनल थियेटर के लिए एक ही दिन में की थी. इस नौजवान ने केवल 35 साल में दुनिया छोड़ दी लेकिन उससे पहले उन्होंने इस देश को एक भाषा दी जिसे आधुनिक हिंदी कहते हैं. क्योंकि उससे पहले हिन्दी अलग अलग बोलियों में बोली और लिखी जाती थी. खड़ी बोली जिसे मैं लिख रहा हूं और आप पढ़ रहे हैं वो भारतेंदु जी की ही देन है. तो आप समझ सकते हैं कि हिंदी में ये कितना बड़ा योगदान है उनका. बचपन में बहुत कम उम्र में माता-पिता के गुजर जाने के बावजूद वे बहुत खुश मिजाज थे. पैसेवाले परिवार के खाते पीते आदमी थे. लेकिन उनमें अंग्रेजों के खिलाफ एक गहरा व्यंग्य और गुस्सा भी था. 1857 की क्रान्ति के बाद तब भारत नया नया ब्रिटेन की रानी के कब्जे में आया था. कोई 1877 का किस्सा है. इंग्लैंड का एक बड़ा अफसर एडवर्ड काशी आया था. काशी के कलेक्टर ने उनसे मिलने के लिए 500 रू की फीस रख दी. ये रकम बहुत ज्यादा थी. उस जमाने में बिजली तो थी नहीं मशाल जलाई जाती थी इसके लिए बाकायदा मशालची होते थे. तो भारतेंदु जी ने अपने मशालची को 500 रू देकर एडवर्ड के पास यह सिखा कर भेजा कि जब उनसे मिलना तो अंग्रेजी में बोलना-आई एम मशालची ऑफ मिस्टर भारतेंदु हरिश्चन्द्र. मशालची अफसर एडवर्ड को यही कह कर लौट आया. एडवर्ड का अहंकार टूट गया और वो मशालची को हैरत से बस देखे जा रहे थे. कलेक्टर शर्म से पानी पानी हो गया.                                                                                                                                                                                                                                                                                                               तो ये कहानी उन लोगों के लिए है जो मुझे कहते हैं- काहें #टेंशन लेकर बैठे हैं.. #मिडिया अपना काम कर रही हैं आप अपना करें.. हर समय आपके अनुसार थोड़ी चलेगी दुनिया.