दयाशंकर शुक्ल सागर

Wednesday, September 9, 2020

अंधेर नगरी चौपट राजा

 



बनारस में एक है ठठेरी बाजार. लॉकडाउन से थोड़ा पहले ही मैं वहां गया था. बनारस के संगीतज्ञ मर्मज्ञ और काशी संगीत समाज के संयोजक कृष्णकुमार रस्तोगी के निधन पर. वे भी ठठेरी बाजार में रहते थे. गजब प्रतिभाशाली व्यक्तित्व थे लेकिन उन पर फिर कभी. तो ये ठठेरी बाजार पतली से एक गली है जहां कभी ठठेरे रहे होंगे. लेकिन आज कल तो इस गली के दोनों तरफ तरह तरह की मिठाई, नमकीन, अचार, पापड़ और न जाने कितनी चटपटी चीजों की दर्जनों दुकानें हैं. इसी गली में बनारस का मशहूर राम भंडार है. बाबा काशी विश्वनाथ के दर्शन के बाद जहां की पूड़ी कचौड़ी खाए बिना बनारस दर्शन अधूरा है. इसी गली में चौखंबा के पास हिंदी के प्रसिद्व साहित्यकार भारतेंदु हरिश्चंद्र का घर हुआ करता था, जो आज भी भारतेंदु भवन के नाम से उपेक्षित पड़ा है. उनके पोते पर पोते आज भी वहां रहते हैं. आज इन्हीं भारतेंदु जी की जयंती है. भारतेंदु जी मुझे बचपन से याद रहे हैं अपने प्रसिद्ध नाटक 'अंधेर नगरी' के कारण. उनका अंधेर नगरी चौपट राजा का मशहूर नाटक हर युग में प्रासंगिक है, जिसमें एक विवेकहीन और निरंकुश शासन व्यवस्था पर करारा व्यंग्य करते हुए राजा को अपने ही कर्मों द्वारा नष्ट होते दिखाया गया है. कहते हैं भारतेंदु ने इसकी रचना बनारस के हिंदू नेशनल थियेटर के लिए एक ही दिन में की थी. इस नौजवान ने केवल 35 साल में दुनिया छोड़ दी लेकिन उससे पहले उन्होंने इस देश को एक भाषा दी जिसे आधुनिक हिंदी कहते हैं. क्योंकि उससे पहले हिन्दी अलग अलग बोलियों में बोली और लिखी जाती थी. खड़ी बोली जिसे मैं लिख रहा हूं और आप पढ़ रहे हैं वो भारतेंदु जी की ही देन है. तो आप समझ सकते हैं कि हिंदी में ये कितना बड़ा योगदान है उनका. बचपन में बहुत कम उम्र में माता-पिता के गुजर जाने के बावजूद वे बहुत खुश मिजाज थे. पैसेवाले परिवार के खाते पीते आदमी थे. लेकिन उनमें अंग्रेजों के खिलाफ एक गहरा व्यंग्य और गुस्सा भी था. 1857 की क्रान्ति के बाद तब भारत नया नया ब्रिटेन की रानी के कब्जे में आया था. कोई 1877 का किस्सा है. इंग्लैंड का एक बड़ा अफसर एडवर्ड काशी आया था. काशी के कलेक्टर ने उनसे मिलने के लिए 500 रू की फीस रख दी. ये रकम बहुत ज्यादा थी. उस जमाने में बिजली तो थी नहीं मशाल जलाई जाती थी इसके लिए बाकायदा मशालची होते थे. तो भारतेंदु जी ने अपने मशालची को 500 रू देकर एडवर्ड के पास यह सिखा कर भेजा कि जब उनसे मिलना तो अंग्रेजी में बोलना-आई एम मशालची ऑफ मिस्टर भारतेंदु हरिश्चन्द्र. मशालची अफसर एडवर्ड को यही कह कर लौट आया. एडवर्ड का अहंकार टूट गया और वो मशालची को हैरत से बस देखे जा रहे थे. कलेक्टर शर्म से पानी पानी हो गया.                                                                                                                                                                                                                                                                                                               तो ये कहानी उन लोगों के लिए है जो मुझे कहते हैं- काहें #टेंशन लेकर बैठे हैं.. #मिडिया अपना काम कर रही हैं आप अपना करें.. हर समय आपके अनुसार थोड़ी चलेगी दुनिया.

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