दयाशंकर शुक्ल सागर

Sunday, December 8, 2019

घर लौटते फिल्मी परिंदे


 मकाऊ डायरी 4


और अब घर वापसी का वक्त आ गया है। किसी को दिल्ली  की फ्लाइट पकड़नी है तो किसी को मुंबई की। लेकिन इसके लिए पानी के छोटे समुद्री जहाज फैरी से हांगकांग एयरपोर्ट तक जाना होगा। सब फैरी पकड़ने की हड़बड़ी में हैं। इन सब में वह सैलानी नहीं हैं जो आईफा के बहाने मकाऊ  घूमने  आए थे। इसमें केवल वे हैं जो सिर्फ आइफा अवार्ड के लिए यहां आए थे। सब यानी एक टूटा हाथ लिए  शाहरुख  खान नई फिल्म 'गुलाबी गैंग' के साथ फिल्मों में  वापस आ रही माधुरी दीक्षित, पूरे अवार्ड फंक्शन में शाहरुख के साथ चिपकी रही अनुष्का शर्मा, बिना ऐश्वर्या के अभिषेक बच्चन, कामयाबी की आधी अधूरी खुशी लिए शुक्राणुओं के नए दानवीर विक्की डोनर उर्फ आयुष्मान खुरान, अपने स्‍मार्ट शौहर सिद्धार्थ की बांहें थामे विद्या बालन, खूबसूरत दिया मिर्जा, हारे हुए खिलाड़ी शाहिद कपूर, फिल्मों के बोझा की गठरी से दबे अनुपम खेर, शबाना को मिस करते जावेद अख्तर, दक्षिण भारतीय डांसर प्रभुदेवा, प्रियंका की चंचल बहन परिणीति  चोपड़ा  आइफा के 14 अवार्ड का दांव जीते बर्फी के निर्देशक अनुराग बसु और मैं।
इत्तेफाक से हम सबकी टिकटें फैरी के स्पेशल क्लास में उपर के डैक पर थी। मै समझ गया कि अब मजा आने वाला है। अब जो होगा उसकी स्क्रिप्ट जावेद अखतर नहीं, मैं लिखूंगा और ये फिल्मी कहानी नहीं बल्कि एक रिएलिटी शो होगा। और बिलकुल यहीं हुआ। शाहरुख, अनुष्का और माधुरी के साथ वीआईपी केबिन में बंद हो गए। ये सब खुद को सुपर स्टार की श्रेणी में रखना ज्यादा पसंद करते हैं। आईफा अवार्ड में यह लोग अलग-अलग रहे। इन लोगों ने अपने साथ बाडीगार्ड रख छोड़े थे। इनके बाडीगार्ड सलमान खान की तरह शालीन नहीं थे। वह फैन्स को इनके पास फटकने तक नहीं दे रहे थे। जाहिर है, उनकी गलती नहीं क्योंकि वे अपनी ड्यूटी पूरी कर रहे थे।
लेकिन बाकी सब डैक पर पहुंचते ही मस्ती के मूड में आ गए। यह तय हुआ कि अब डम्ब शॅराड्स खेला जाएगा। दो टीमें बनेंगी। एक टीम का कोई सदस्य एक्टिंग कर इशारों से किसी फिल्म का टाइटल बताएगा। दूसरी टीम  को उस फिल्म का सही नाम बताना होगा। पर किस टीम में कौन होगा। अनुपन ने कहा ब्वायज वर्सेज गर्ल्स की टीम बन जाए। दीया ने कहा नहीं प्लीज वी आर नॉट  स्कूल गोइंड किड्स। यानी हम स्कूल जाते बच्चे नहीं हैं। जावेद ने कहा ठीक है मैं गर्ल्स  की टीम में हो जाता हूं। खेर ने कहा हां आप उसी साइड के हैं। सब हंसने लगते हैं। और खेल शुरू हो गया और साथ में शोर भी। जैसे सकूली बच्चे खेल रहें हों। हंसी-मजाक, किस्से कहानियां सब साथ-साथ चल रहे थे। खेर किसी के बारे में बता रहे थे। ओके विक्की डोनर हो गया अब वार्सिलोना। उसने कहा क्या बाहर से लो ना। मैनो कहा नहीं वार्सिलोना। सब हंसने लगे।
खेर और सिद्धार्थ आयुष्मान खुराना को लेकर डैक के कोने में चले जाते हैं। वहां एक फिल्म का नाम तय होता है। फिल्म का नाम बंदिनी है। खुराना डिब्बा बंद करने का इशारा करते हैं। लड़कियां बंद तक पहुंच जाती हैं। खुराना कहते हैं इसके आगे छोटा सा वर्ड है। दीया कहती हैं बंदना। पर ये कोई फिल्म नहीं। लेकिन बंद से बंदिनी समझाना उन्हें मुश्किल पड़ता है। अंत में झल्लाकर उनके मुंह बंदिनी निकल जाता हैं। लड़कियां चिल्लाती हैं बंदिनी बंदिनी। खेर कहते हैं, चिटिंग चिटिंग। इसने बता दिया था। परिणीति कहती है नहीं बताया था। लड़कियां कहती हैं  हे हे हे हम जीत गए। खेर कहते हैं मैंने पहली बार किसी हारी हुई टीम को इतना खुश देखा है। सब हंसने लगते हैं। शहिद कहते हैं अब मैं जा रहा हूं। और वहा दूसरी ओर खड़े हो जाते हैं। अब जावेद साहब 'पार' फिल्म का  समझाने की कोशिश करते हैं। लड़कियां नहीं समझा पा रहीं। काफी देर हो गई खेर कहते हैं, भई मैं तो अब सोने जा रहा हूं।
खेल काफी देर तक चलता रहा। बीच-बीच में राजनीति भी चल रहीं हैं। चीन में बर्फी को आईफा के चैदह अवार्ड लड्डू मिले। शुगर ज्यादा हो गई। जावेद मेरे बगल में खड़े अनुपम खेर के कान में  कुछ फुसफुसाते हैं- 'डोंट टेल मी यार कि अनुराग बसु को अंग्रेजी  नहीं आती। अगर नहीं आती तो वह हालीवुड की फिल्में कैसे देखता।' फिर दोनों को जोर से हंसने लगते हैं। बताते चलें कि बालीवुड में चर्चा हैं कि अनुराग की फिल्म बर्फी के कुछ सीन हालीवुड की फिल्म 'द नोटबुक' से उड़ाए गए हैं। बहरहाल जो भी इतना तो समझ में आ गया कि  आईपीएल के मैचों की तरह फिल्‍मों के सारे अवार्ड फिक्‍स होते हैं। बर्फी में शानदार अदाकारी के बावजूद प्रियंका चोपडा को बेस्‍ट हीरोइन का अवार्ड नहीं मिलना था सो वह नहीं आईं। उनकी बहन परिणित चोपडा आईं उन्‍हें परफार्म करना था। विद़या बालन आईं क्‍योंकि उन्‍हें बेस्‍ट एक्‍टेस का अवार्ड लेना था। जिन्‍हें पता था कि उन्‍हें अवार्ड मिलना है वो आते हैं। या फिर वे आते हैं जिन्‍हें अवार्ड फंकशन में पैसे लेकर नाचना गाना है।
  किनारा आ गया। और सफर खत्म हुआ। अब हम सबको अपने-अपने जहाज पकड़ने हैं। फिल्म वालों को पहली बार इतने करीब देखा है। मुझे न जाने क्यों लगा ये बेचारे दोहरा जीवन जीने के लिए अभिशप्त हैं।
सार्वजनिक जीवन में ये चमकते सितारे हैं। पर इनकी प्राइवेट लाइफ हमारी आप की तरह है। कभी खुशी कभी गम, कभी हंसी मजाक तो कभी जलन और ईर्ष्या। उस दिन ग्रीन कारपेट पर चलते वक्त अनुपप खेर को देखकर भीड़ खुशी के मारे चीखी थी। खेर ने अपने सभी फैन्स से हाथ जरूर मिलाया लेकिन उनका चेहरा भाव शून्य था। वह  थोड़ा  आगे बढ़े तो मैंने उनसे अकेले में पूछा था- उनसे हाथ मिलाते वक्त कम से कम एक मुस्कुराहत तो आप के चेहरे पर ला सकते थे। मेरे सवाल पर खेर नाराज हो गए थे शायद। कहने लगे खुशी अंदर होती है, जरूरी नहीं कि वह दिखई जाए। मैंने कहा रहने दीजिए, ये कहने की बातें हैं। खेर ने चिढ़ कहा आप कुछ भी सोचिए। और वह आगे बढ़ गए।
सच पूछिए तो तब मुझे बुरा नहीं लगा  था। खेर के अभिनय का मैं कायल हूं। खेर ही नहीं हर सफल कलाकार के अंदर कुछ ऐसा होता है जो उसे असाधारण बनाता है। और एक पूरी टीम होती है जो सुपर मैन या सुपर वुमन बना देती है। वर्ना बिना मेकअप के रूप रंग से ये सारे कलाकार उतने ही साधारण हैं जितने कि हम और आप। यह रहस्य न खुल जाए इसलिए वे हमसे दूरी बनाकर रहते हैं। खैर शाम ढल गई है। परिंदे घर लौट रहे हैं। मेरा भी मन भर गया। अब घर लौटने का वक्‍त आ गया है। अलविदा मकाउ।

अतृप्त सपनों के शहर में


 मकाऊ डायरी 1


नई दिल्ली से हांगकांग एयरपोर्ट तक आने में केवल पांच घंटे लगे। अंतर्राष्ट्रीय विमान आमतौर पर 750 और 950 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ़्तार का चलते हैं। एक लम्बी झपकी लेने के बाद पता ही नहीं चलता कि कब तकरीबन पूरा चीन पार करके आप उसकी अंतिम सीमा तक आ गए। और मजा देखिए आप प्लेन में रात एक बजे सोते हैं और पांच घंटे के सफ़र के बाद आँख खुलने पर पता चलता है कि हांगकांग में सूरज को निकले चार घंटे बीत चुके हैं। लेकिन हर तरफ से पहाडियों से घिरा और चकाचौंध से भरा हांगकांग उस वक्त आकर्षित नहीं करता जब आपको सपनों का कोई और दूसरा शहर बुला रहा हो।

दफ़तर की तरफ से  मकाऊ जाने का जब न्‍यौता मिला तो सच जानिए इस शहर के बारे में कुछ जानकारी नहीं थी सिवाए इसके कि वहां जबरदस्‍त तरीके से जुआ खेला जाता है। लेकिन जुए में मेरी कोई दिलचस्‍पी नहीं थी क्‍योंकि फ़लश के सिवा मुझे जुए का कोई खेल नहीं आता। ये जुआ भी मैं सिर्फ दीपावली की रातों में खेलता हूं वह भी ज्‍यादातर अपने भाई और बहनोई के साथ जिन्‍हें लूटने और जिनसे लुटने में खूब मजा आता है। हारे तो गम नहीं और जीते तो मजा ही मजा। खैर मकाऊ में बालीवुड के फिल्‍मी सितारों का मेला जुटने वाला था और मुझे आईफा अवार्ड का आंखों देखा हाल लिखना था। मैं जानता था इस काम में मजा आने वाला है। पर मन में थोडी घबराहट थी कि मेरे पास  मकाऊ का वीजा नहीं है।     
हालांकि मुझे बार बार बताया गया कि चिन्‍ता की कोई जरूरत नहीं क्‍योंकि मकाऊ घूमने के लिए बीजा की आवश्‍यक नहीं। लेकिन बिना वीजा के देश की सीमा लांघना डरावना जोखिम है। पर जोखिम उठाने का भी तो अपना मजा है। बताया गया था कि हांगकांग एयरपोर्ट तक हवाई जहाज से जाना है। इसके आगे का सफ़र आपको छोटी-सी फैरी पूरा कराएगी। फैरी यानी समंदर में चलने वाला एक छोटा जहाज। इस जहाज का बंदरगाह ठीक हांगकांग का एयरपोर्ट से जुडा है। हांगकांग का इमिग्रशन बिना पार किये आप एक भूमिगत शटल से ठीक फैरी के अन्दर तक पहुँच जायंगे। पर शर्त यह है की आपको फैरी का टिकट भारत में ही नेट के जरिये ख़रीदना होगा। ये टिकट ही वीजा का काम करता है। एअरपोर्ट से मकाऊ का रास्ता  एक घंटे का है। मकाऊ एक प्रायदीप है। पहाडियों से घिरी खाड़ी के नीले पानी पर फैरी फिसलती हुई चलती है। इस पानी से धोड़ा ही ऊपर उड़ान भरते या एअरपोर्ट पर हवाई जहाज गजब का कौतुक पैदा करता है।



सपनों का शहर यानी मकाऊ दक्षिणी चीन सागर के किनारे बसे सारे देश मकाऊ को 'सिटी ऑफ़ ड्रीम्स' के नाम से ही जानते हैं। मकाऊ और हांगकांग अलग देश नहीं है। ये दोनों चीनी जनवादी गणराज्य का हिस्सा है। इन्हें सन 2000 शुरू होने से थोडा ही पहले  चीन ने विशेष प्रसाशनिक क्षेत्र का दर्जा दिया। एक ज़माने में मकाऊ पुर्तगाल का उपनिवेश हुआ करता था। जैसे कभी हमारा गोवा था। 16 वी सदी के शुरू में ही पुर्तगालियो ने गोवा और मकाऊ जैसे समंदर के किनारे बसे इलाको को व्यापारिक ठिकाना बनाया और धीरे से इन इलाको की हूकुमत अपने कब्जे में ले ली। गोवा को तो पुर्तगालियो ने सीधे फतह किया था लेकिन मकाऊ पर कब्ज़ा बड़ी चालाकी से किया। 1513 में जार्ज एलबर्स पहला पुर्तगाली था जिसने चीन की धरती पर कदम रखा। फिर पुर्तगाली व्यापारियों ने मकाऊ के समुद्री किनारे को एक बंदरगाह के रूप में विकसित किया। उन्होंने 20 किलोग्राम सालाना चांदी के बदले मकाऊ बंदरगाह को किराये पर ले लिया। 1863 तक ये सिलसिला जरी रहा। तब तक कई पुर्तगाली यहाँ के वाशिंदे बन चुके थे। वह सत्ता में प्रशासनिक दखल चाहने लगे। 1883 में पुर्तगाली तानाशाहों का दौर ख़त्म हुआ। ये सीनेट सिर्फ सामाजिक और आर्थिक मामले देखने के लिए बनी थी वह भी एक चीनी प्राधिकारी की निगरानी में। लेकिन एक शुरुआत तो हो गई। अफीम युद्ध के बाद मकाऊ अधिकारिक रूप से पुर्तगाल के कब्जे वाला इलाका हो गया। 70 के दशक में पुर्तगाली तानाशाह का दौर ख़त्म हुआ। और 1974 में नई पुर्तगाली सरकार या अपने उपनिवेशों को मुक्त करने का फैसला लिया। पुर्तगाल ने पहली बार मकाऊ को चीन का एक हिस्सा माना। और उसे चीनी जनवादी गणराज्य का एक विशेष प्रशासनिक क्षेत्र माना। चीन-पुर्तगाल के संयुक्त समझौते के तहत मकाऊ 1999 में अगले 50 साल के लिए चीनी गणराज्य का हिस्सा हो गया। लेकिन यहाँ एक देश और दो प्रणाली के सिद्धान्त की शुरुआत हुई। यानि विदेश मामले और रक्षा को छोड़ हांगकांग और मकाऊ पर चीन का कई दखल नहीं है। दोनों की अपनी अलग करेंसी है अलग पुलिस और अलग इमिग्रेशन व्यवस्था है। उनकी अर्थव्यवस्था स्वतंत्र है और जीवन शैली पूरी तरह का आजाद। यहाँ की 90 प्रतिशत आबादी चीनी है लेकिन चीन के लड़ाका अंदाज़ का अलग एक अनोखे तरह की संप्रभुता का मजा ले रही है। सरकार के मुखिया के नाम पर यहाँ एक चीफ है जिसकी कैबिनेट में पाँच नीति सचिव हैं। ये सचिव एक 11 सदस्यों की कमेटी की सलाह पर कम करते हैं। यहां के  स्थानीय निवासियों ने अपनी पूरी राजनीतिक सम्पभुता न कभी पुर्तगालियो को दी न दबंग चीन को। और समंदर के किनारे एक खुबसूरत सा देश बसा लिया जहां सपनो के इन्द्रधनुष में रंग भरे जाते हैं। 


जारी