मकाऊ
डायरी 4
और अब घर वापसी का वक्त आ गया है। किसी को दिल्ली की फ्लाइट पकड़नी है तो किसी को मुंबई की। लेकिन इसके लिए पानी के छोटे समुद्री जहाज फैरी से हांगकांग एयरपोर्ट तक जाना होगा। सब फैरी पकड़ने की हड़बड़ी में हैं। इन सब में वह सैलानी नहीं हैं जो आईफा के बहाने मकाऊ घूमने आए थे। इसमें केवल वे हैं जो सिर्फ आइफा अवार्ड के लिए यहां आए थे। सब यानी एक टूटा हाथ लिए शाहरुख खान नई फिल्म 'गुलाबी गैंग' के साथ फिल्मों में वापस आ रही माधुरी दीक्षित, पूरे अवार्ड फंक्शन में शाहरुख के साथ चिपकी रही अनुष्का शर्मा, बिना ऐश्वर्या के अभिषेक बच्चन, कामयाबी की आधी अधूरी खुशी लिए शुक्राणुओं के नए दानवीर विक्की डोनर उर्फ आयुष्मान खुरान, अपने स्मार्ट शौहर सिद्धार्थ की बांहें थामे विद्या बालन, खूबसूरत दिया मिर्जा, हारे हुए खिलाड़ी शाहिद कपूर, फिल्मों के बोझा की गठरी से दबे अनुपम खेर, शबाना को मिस करते जावेद अख्तर, दक्षिण भारतीय डांसर प्रभुदेवा, प्रियंका की चंचल बहन परिणीति चोपड़ा आइफा के 14 अवार्ड का दांव जीते बर्फी के निर्देशक अनुराग बसु और मैं। इत्तेफाक से हम सबकी टिकटें फैरी के स्पेशल क्लास में उपर के डैक पर थी। मै समझ गया कि अब मजा आने वाला है। अब जो होगा उसकी स्क्रिप्ट जावेद अखतर नहीं, मैं लिखूंगा और ये फिल्मी कहानी नहीं बल्कि एक रिएलिटी शो होगा। और बिलकुल यहीं हुआ। शाहरुख, अनुष्का और माधुरी के साथ वीआईपी केबिन में बंद हो गए। ये सब खुद को सुपर स्टार की श्रेणी में रखना ज्यादा पसंद करते हैं। आईफा अवार्ड में यह लोग अलग-अलग रहे। इन लोगों ने अपने साथ बाडीगार्ड रख छोड़े थे। इनके बाडीगार्ड सलमान खान की तरह शालीन नहीं थे। वह फैन्स को इनके पास फटकने तक नहीं दे रहे थे। जाहिर है, उनकी गलती नहीं क्योंकि वे अपनी ड्यूटी पूरी कर रहे थे। लेकिन बाकी सब डैक पर पहुंचते ही मस्ती के मूड में आ गए। यह तय हुआ कि अब डम्ब शॅराड्स खेला जाएगा। दो टीमें बनेंगी। एक टीम का कोई सदस्य एक्टिंग कर इशारों से किसी फिल्म का टाइटल बताएगा। दूसरी टीम को उस फिल्म का सही नाम बताना होगा। पर किस टीम में कौन होगा। अनुपन ने कहा ब्वायज वर्सेज गर्ल्स की टीम बन जाए। दीया ने कहा नहीं प्लीज वी आर नॉट स्कूल गोइंड किड्स। यानी हम स्कूल जाते बच्चे नहीं हैं। जावेद ने कहा ठीक है मैं गर्ल्स की टीम में हो जाता हूं। खेर ने कहा हां आप उसी साइड के हैं। सब हंसने लगते हैं। और खेल शुरू हो गया और साथ में शोर भी। जैसे सकूली बच्चे खेल रहें हों। हंसी-मजाक, किस्से कहानियां सब साथ-साथ चल रहे थे। खेर किसी के बारे में बता रहे थे। ओके विक्की डोनर हो गया अब वार्सिलोना। उसने कहा क्या बाहर से लो ना। मैनो कहा नहीं वार्सिलोना। सब हंसने लगे। खेर और सिद्धार्थ आयुष्मान खुराना को लेकर डैक के कोने में चले जाते हैं। वहां एक फिल्म का नाम तय होता है। फिल्म का नाम बंदिनी है। खुराना डिब्बा बंद करने का इशारा करते हैं। लड़कियां बंद तक पहुंच जाती हैं। खुराना कहते हैं इसके आगे छोटा सा वर्ड है। दीया कहती हैं बंदना। पर ये कोई फिल्म नहीं। लेकिन बंद से बंदिनी समझाना उन्हें मुश्किल पड़ता है। अंत में झल्लाकर उनके मुंह बंदिनी निकल जाता हैं। लड़कियां चिल्लाती हैं बंदिनी बंदिनी। खेर कहते हैं, चिटिंग चिटिंग। इसने बता दिया था। परिणीति कहती है नहीं बताया था। लड़कियां कहती हैं हे हे हे हम जीत गए। खेर कहते हैं मैंने पहली बार किसी हारी हुई टीम को इतना खुश देखा है। सब हंसने लगते हैं। शहिद कहते हैं अब मैं जा रहा हूं। और वहा दूसरी ओर खड़े हो जाते हैं। अब जावेद साहब 'पार' फिल्म का समझाने की कोशिश करते हैं। लड़कियां नहीं समझा पा रहीं। काफी देर हो गई खेर कहते हैं, भई मैं तो अब सोने जा रहा हूं। खेल काफी देर तक चलता रहा। बीच-बीच में राजनीति भी चल रहीं हैं। चीन में बर्फी को आईफा के चैदह अवार्ड लड्डू मिले। शुगर ज्यादा हो गई। जावेद मेरे बगल में खड़े अनुपम खेर के कान में कुछ फुसफुसाते हैं- 'डोंट टेल मी यार कि अनुराग बसु को अंग्रेजी नहीं आती। अगर नहीं आती तो वह हालीवुड की फिल्में कैसे देखता।' फिर दोनों को जोर से हंसने लगते हैं। बताते चलें कि बालीवुड में चर्चा हैं कि अनुराग की फिल्म बर्फी के कुछ सीन हालीवुड की फिल्म 'द नोटबुक' से उड़ाए गए हैं। बहरहाल जो भी इतना तो समझ में आ गया कि आईपीएल के मैचों की तरह फिल्मों के सारे अवार्ड फिक्स होते हैं। बर्फी में शानदार अदाकारी के बावजूद प्रियंका चोपडा को बेस्ट हीरोइन का अवार्ड नहीं मिलना था सो वह नहीं आईं। उनकी बहन परिणित चोपडा आईं उन्हें परफार्म करना था। विद़या बालन आईं क्योंकि उन्हें बेस्ट एक्टेस का अवार्ड लेना था। जिन्हें पता था कि उन्हें अवार्ड मिलना है वो आते हैं। या फिर वे आते हैं जिन्हें अवार्ड फंकशन में पैसे लेकर नाचना गाना है। सार्वजनिक जीवन में ये चमकते सितारे हैं। पर इनकी प्राइवेट लाइफ हमारी आप की तरह है। कभी खुशी कभी गम, कभी हंसी मजाक तो कभी जलन और ईर्ष्या। उस दिन ग्रीन कारपेट पर चलते वक्त अनुपप खेर को देखकर भीड़ खुशी के मारे चीखी थी। खेर ने अपने सभी फैन्स से हाथ जरूर मिलाया लेकिन उनका चेहरा भाव शून्य था। वह थोड़ा आगे बढ़े तो मैंने उनसे अकेले में पूछा था- उनसे हाथ मिलाते वक्त कम से कम एक मुस्कुराहत तो आप के चेहरे पर ला सकते थे। मेरे सवाल पर खेर नाराज हो गए थे शायद। कहने लगे खुशी अंदर होती है, जरूरी नहीं कि वह दिखई जाए। मैंने कहा रहने दीजिए, ये कहने की बातें हैं। खेर ने चिढ़ कहा आप कुछ भी सोचिए। और वह आगे बढ़ गए। सच पूछिए तो तब मुझे बुरा नहीं लगा था। खेर के अभिनय का मैं कायल हूं। खेर ही नहीं हर सफल कलाकार के अंदर कुछ ऐसा होता है जो उसे असाधारण बनाता है। और एक पूरी टीम होती है जो सुपर मैन या सुपर वुमन बना देती है। वर्ना बिना मेकअप के रूप रंग से ये सारे कलाकार उतने ही साधारण हैं जितने कि हम और आप। यह रहस्य न खुल जाए इसलिए वे हमसे दूरी बनाकर रहते हैं। खैर शाम ढल गई है। परिंदे घर लौट रहे हैं। मेरा भी मन भर गया। अब घर लौटने का वक्त आ गया है। अलविदा मकाउ। |
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