मकाऊ
डायरी 1
नई दिल्ली से हांगकांग एयरपोर्ट तक आने
में केवल पांच घंटे लगे। अंतर्राष्ट्रीय विमान आमतौर पर 750 और 950 किलोमीटर प्रतिघंटा
की रफ़्तार का चलते हैं। एक लम्बी झपकी लेने के बाद पता ही नहीं चलता कि कब तकरीबन
पूरा चीन पार करके आप उसकी अंतिम सीमा तक आ गए। और मजा देखिए आप प्लेन में रात एक
बजे सोते हैं और पांच घंटे के सफ़र के बाद आँख खुलने पर पता चलता है कि हांगकांग में
सूरज को निकले चार घंटे बीत चुके हैं। लेकिन हर तरफ से पहाडियों से घिरा और
चकाचौंध से भरा हांगकांग उस वक्त आकर्षित नहीं करता जब आपको सपनों का कोई और दूसरा
शहर बुला रहा हो।
दफ़तर की तरफ से मकाऊ जाने का जब न्यौता मिला तो सच जानिए इस शहर के
बारे में कुछ जानकारी नहीं थी सिवाए इसके कि वहां जबरदस्त तरीके से जुआ खेला जाता
है। लेकिन जुए में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं थी क्योंकि फ़लश के सिवा मुझे जुए का
कोई खेल नहीं आता। ये जुआ भी मैं सिर्फ दीपावली की रातों में खेलता हूं वह भी ज्यादातर
अपने भाई और बहनोई के साथ जिन्हें लूटने और जिनसे लुटने में खूब मजा आता है। हारे
तो गम नहीं और जीते तो मजा ही मजा। खैर मकाऊ
में बालीवुड के फिल्मी सितारों का मेला जुटने वाला था और मुझे आईफा
अवार्ड का आंखों देखा हाल लिखना था। मैं जानता था इस काम में मजा आने वाला है। पर
मन में थोडी घबराहट थी कि मेरे पास मकाऊ
का वीजा नहीं है।
हालांकि मुझे बार बार बताया गया कि चिन्ता की कोई
जरूरत नहीं क्योंकि मकाऊ घूमने के लिए बीजा की आवश्यक नहीं। लेकिन बिना वीजा के
देश की सीमा लांघना डरावना जोखिम है। पर जोखिम उठाने का भी तो अपना मजा है। बताया
गया था कि हांगकांग
एयरपोर्ट तक हवाई जहाज से जाना है। इसके आगे का सफ़र आपको छोटी-सी फैरी पूरा
कराएगी। फैरी यानी समंदर में चलने वाला एक छोटा जहाज। इस जहाज का बंदरगाह ठीक
हांगकांग का एयरपोर्ट से जुडा है। हांगकांग का इमिग्रशन बिना पार किये आप एक
भूमिगत शटल से ठीक फैरी के अन्दर तक पहुँच जायंगे। पर शर्त यह है की आपको फैरी का
टिकट भारत में ही नेट के जरिये ख़रीदना होगा। ये टिकट ही वीजा का काम करता है। एअरपोर्ट
से मकाऊ का रास्ता एक घंटे का है। मकाऊ एक प्रायदीप है। पहाडियों से घिरी खाड़ी
के नीले पानी पर फैरी फिसलती हुई चलती है। इस पानी से धोड़ा ही ऊपर उड़ान भरते या
एअरपोर्ट पर हवाई जहाज गजब का कौतुक पैदा करता है। सपनों का शहर यानी मकाऊ दक्षिणी चीन सागर के किनारे बसे सारे देश मकाऊ को 'सिटी ऑफ़ ड्रीम्स' के नाम से ही जानते हैं। मकाऊ और हांगकांग अलग देश नहीं है। ये दोनों चीनी जनवादी गणराज्य का हिस्सा है। इन्हें सन 2000 शुरू होने से थोडा ही पहले चीन ने विशेष प्रसाशनिक क्षेत्र का दर्जा दिया। एक ज़माने में मकाऊ पुर्तगाल का उपनिवेश हुआ करता था। जैसे कभी हमारा गोवा था। 16 वी सदी के शुरू में ही पुर्तगालियो ने गोवा और मकाऊ जैसे समंदर के किनारे बसे इलाको को व्यापारिक ठिकाना बनाया और धीरे से इन इलाको की हूकुमत अपने कब्जे में ले ली। गोवा को तो पुर्तगालियो ने सीधे फतह किया था लेकिन मकाऊ पर कब्ज़ा बड़ी चालाकी से किया। 1513 में जार्ज एलबर्स पहला पुर्तगाली था जिसने चीन की धरती पर कदम रखा। फिर पुर्तगाली व्यापारियों ने मकाऊ के समुद्री किनारे को एक बंदरगाह के रूप में विकसित किया। उन्होंने 20 किलोग्राम सालाना चांदी के बदले मकाऊ बंदरगाह को किराये पर ले लिया। 1863 तक ये सिलसिला जरी रहा। तब तक कई पुर्तगाली यहाँ के वाशिंदे बन चुके थे। वह सत्ता में प्रशासनिक दखल चाहने लगे। 1883 में पुर्तगाली तानाशाहों का दौर ख़त्म हुआ। ये सीनेट सिर्फ सामाजिक और आर्थिक मामले देखने के लिए बनी थी वह भी एक चीनी प्राधिकारी की निगरानी में। लेकिन एक शुरुआत तो हो गई। अफीम युद्ध के बाद मकाऊ अधिकारिक रूप से पुर्तगाल के कब्जे वाला इलाका हो गया। 70 के दशक में पुर्तगाली तानाशाह का दौर ख़त्म हुआ। और 1974 में नई पुर्तगाली सरकार या अपने उपनिवेशों को मुक्त करने का फैसला लिया। पुर्तगाल ने पहली बार मकाऊ को चीन का एक हिस्सा माना। और उसे चीनी जनवादी गणराज्य का एक विशेष प्रशासनिक क्षेत्र माना। चीन-पुर्तगाल के संयुक्त समझौते के तहत मकाऊ 1999 में अगले 50 साल के लिए चीनी गणराज्य का हिस्सा हो गया। लेकिन यहाँ एक देश और दो प्रणाली के सिद्धान्त की शुरुआत हुई। यानि विदेश मामले और रक्षा को छोड़ हांगकांग और मकाऊ पर चीन का कई दखल नहीं है। दोनों की अपनी अलग करेंसी है अलग पुलिस और अलग इमिग्रेशन व्यवस्था है। उनकी अर्थव्यवस्था स्वतंत्र है और जीवन शैली पूरी तरह का आजाद। यहाँ की 90 प्रतिशत आबादी चीनी है लेकिन चीन के लड़ाका अंदाज़ का अलग एक अनोखे तरह की संप्रभुता का मजा ले रही है। सरकार के मुखिया के नाम पर यहाँ एक चीफ है जिसकी कैबिनेट में पाँच नीति सचिव हैं। ये सचिव एक 11 सदस्यों की कमेटी की सलाह पर कम करते हैं। यहां के स्थानीय निवासियों ने अपनी पूरी राजनीतिक सम्पभुता न कभी पुर्तगालियो को दी न दबंग चीन को। और समंदर के किनारे एक खुबसूरत सा देश बसा लिया जहां सपनो के इन्द्रधनुष में रंग भरे जाते हैं।
जारी
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