आज
मुझे इंदिरा याद आ रही हैं।
71 की जंग से पहले
पूरी दुनिया इंदिरा के खिलाफ
थी। शांतिवादी कबूतरों ने
शांति पाठ पढ़ना शुरू कर दिया
था जैसे एक वर्ग अब कर रहा है।
नवम्बर 71 में इंदिरा
अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन
से मिली थीं। निक्सन ने साफ
चेतावनी दी थी कि अगर भारत पाक
पर सैन्य कार्रवाई करता है
तो नतीजे खतरनाक होंगे। इंदिरा
लौटीं और जंग शुरू हो गई। दो
हफ्ते में जंग खत्म हो गई।
90000 पाकिस्तानी
सैनिको को युद्धबंदी बना लिया
गया था।
राष्ट्रपति निक्सन दुखी था। उसने अपने मुख्य सलाहाकार हेनरी किसिंजर से कहा -हमने उस धूर्त और दुष्ट औरत को चेतावनी थी फिर भी उसने ऐसा किया। क्या हमने उससे कुछ ज्यादा सख्ती से बर्ताव किया था। उस चालक बूढ़ी औरत की बातों में आकर हमने भारी गलती कर दी। दरअसल अमेरिका भारतीय फौज की सैन्य शक्ति का सही आकलन नही कर पाई थी। उनकी रिपोर्ट थी कि भारतीय ऐसे खराब पायलट होते हैं जो बमवर्षक जहाज उड़ा नही सकते। लेकिन वे गलत साबित हुए। तब हमें पाक की अक्ल ठिकाने लगाने के सिर्फ बारह दिन लगे थे। पाक सैनिकों ने रेंगते हुए आत्मसम्पर्ण किया था। यह जग एक नासूर है जिसे पाकिस्तान कभी नहीं भूल पाया।
राष्ट्रपति निक्सन दुखी था। उसने अपने मुख्य सलाहाकार हेनरी किसिंजर से कहा -हमने उस धूर्त और दुष्ट औरत को चेतावनी थी फिर भी उसने ऐसा किया। क्या हमने उससे कुछ ज्यादा सख्ती से बर्ताव किया था। उस चालक बूढ़ी औरत की बातों में आकर हमने भारी गलती कर दी। दरअसल अमेरिका भारतीय फौज की सैन्य शक्ति का सही आकलन नही कर पाई थी। उनकी रिपोर्ट थी कि भारतीय ऐसे खराब पायलट होते हैं जो बमवर्षक जहाज उड़ा नही सकते। लेकिन वे गलत साबित हुए। तब हमें पाक की अक्ल ठिकाने लगाने के सिर्फ बारह दिन लगे थे। पाक सैनिकों ने रेंगते हुए आत्मसम्पर्ण किया था। यह जग एक नासूर है जिसे पाकिस्तान कभी नहीं भूल पाया।
लेकिन
पिछले तीन चार दशकों में से
हमारी ना की बहुत उपेक्षा हुई।
मनमोहन सरकार ने रक्षा खर्च
में जबरदस्त कटौतियां कीं।
रक्षा मंत्रायल में बैठे
बाबुओं ने अच्छी क्वालटी के
जूतों तक के लिए सेना को रुला
डाला। सालों साल सैनिकों को
ट्रेनिंग के लिए कारतूस तक
नहीं दिए गए। मोदी सरकार में
सेना पर बजट बढ़ा लेकिन वह भी
नाकाफी है।
अब आज की ही घटना को
देखें। काफी चीजें साफ हो
जाएंगी। कश्मीर में हमारे
जवानों ने 32 घंटों
के अंदर पुलवामा हमले के तीन
आतंकियों को खोज के मार डाला।
हमले की घटना के तुरंत बाद ही
इस पूरे इलाके को कार्डन आफ
कर लिया गया था। इसलिए ये आतंकी
पुलवामा से बाहर नहीं निकल
पाए। आज की मुठभेड़ में एक
मेजर समेत हमारे भी तीन जवान
शहीद रहे। यह हैरत की बात थी
क्योंकि यह मुठभेड़ सरहद पर
नहीं चल रही थी। दूसरी तरफ
सिर्फ तीन से पांच आतंकी छुपे
थे। सुरक्षा बलों ने पूरे गांव
को घेर रखा है। फिर एनकाउंटर
में हमारे चार जवान कैसे शहीद
हो गए? पता
किया तो मालूम चला भोर में
धुंध बहुत थी। दो मीटर से ज्याद
दृश्यता नहीं थी। हमारी टीम
के पास एंटी फॉग बाइनोकुलर
टेलीस्कोप तक नहीं थे जिससे
धुंध और कोहरे में भी साफ दिखाई
देता है। कई और अत्याधुनिक
उपकरण नहीं हैं जो दूसरी तरफ
मुहैया हैं। सामने से एक घर
में छुपे आतंकियों ने अचानक
अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी
थी। जिसकी चपेट में ये सब आ
गए।
तो आप ऐसे जंग लड़ेंगे।
ऐसे पाकिस्तान से बदला लेंगे?