दयाशंकर शुक्ल सागर

Friday, April 29, 2016

कृपया संस्कृत का मजाक न उड़ाएं

आप संस्कृत का मजाक उड़ा रहे हैं। शौक से उड़ाइए। लेकिन इससे आप इंकार नहीं कर पाएंगे कि इसी संस्कृति की बदलौत भारत दुनिया में गणित गुरू है। जो दशमलव पद्धति decimal system आज आधुनिक गणित का आधार है। वह संस्कृत ने दिया। शून्य संस्कृत की देन है जिसके जरिए आज आप बड़ी से बड़ी गिनती लिख सकते हैं। संस्कृत में रेखागणित की खोज भी दिलचस्प ढंग से हुई। वैदिक युग में यज्ञ के लिए वेदियां बनती थीं। उन पर विभिन्न आकृतियों की सही-सही नाप बनाने के कारण इस युग में रेखागणित के सूत्रों का विकास हुआजो शुल्व सूत्रों के रूप में जाना गया है। शुल्व का अर्थ उस रस्सी से है जो यज्ञ की वेदी बनाने में माप के काम आती थी। बोधयान शुल्व सूत्र यानी पाइथागोरस थ्योरम संस्कृत ने दिया। दुनिया को दर्शनभाषा शास्‍त्रतुलनात्मक धर्म अध्ययनविचार विज्ञानप्राचीन आख्यायिकका विज्ञान संस्कृत ने सिखाया।
बाइबिल और कुरान जल प्रलय की कहानी से शुरू होती है। जल प्रलय की मौलिक कथा संस्कृत ने दी। बाइबिल पहली सदी में लिखी गई और कुरान सातवीं सदी में। लेकिन जल प्रलय की कहानी आपको अथर्ववेद और शतपथ ब्राह्मण में मिल जाएगी। ये ग्रंथ निर्विवाद रूप से ईसा मसीह के जन्म से हजारों साल पहले लिखे गए। जल प्रलय की कहानी भारत से मिस्‍त्र गई। फिर ग्रीक आई और उसके बाद बाइबिल में आई। कहानी में थोड़ा बदलाव जरूर हुआ पर महाप्रलय कथा किवदंती बन गई। यह कहानी ईसा के जन्म से दस हजार साल पहले की है। प्रलय के बाद मनु ने सृष्टि की। मनु की पत्नी मानवी थी जो आगे चलकर एडम और ईव फिर कुरान में आदम और हौव्वा के नाम से जाने गए। तब इस सृष्टि में सिर्फ दो लोग थे-उन्हें मनु और मानवी कहें या आदम और ईव। यह वही जल प्रलय था जिसने दुनिया को हिला दिया। कुछ विद्वान मानते हैं कि तभी हिमालय निकला। लेकिन यह असंगत है क्योंकि संस्कृत साहित्य का हिमालय से गहरा संबंध रहा है। संस्कृत का इतिहास कहता हैजल प्रलय से पहले मनु थे और जल प्रलय के बाद भी न जाने कितने मनु हुए। फिर मनु स्मृति किसने लिखी ये ईश्वर जाने। हमारे विद्वान बुद्धिजीवि ये माने बैठे हैं कि जो मनु स्मृति में लिखा है वही हिन्दुत्व है। जबकि मनु की महान परम्परा और संस्कृत साहित्य के महासागर में मनु स्मृति एक मामूली किताब है जिसे शायद ही किसे ने मान्यता दी हो। संस्कृत की तमाम अन्य दंतकथाएं आपको लेटिन और फारसी में मिल जाएंगी।
हमारी बदकिस्मती है कि आधुनिक युग में संस्कृत का वैज्ञानिक अध्ययन नहीं हुआ। 19सवीं सदी में मैक्समूलरकीथवेबरविंटरनित्स जैसे पश्चिमी विद्वान पहली बार इस भाषा को दुनिया के नक्‍शे पर लाए। इसके बाद रामानुजम जैसे महान गणितज्ञ ने इसी संस्कृत के बल पर आधुनिक गणित को विश्लेषण एवं संख्या सिद्धांत दिए। अब जब आईआईटी में संस्कृत के अध्ययन की बात हो रही है तो आप संस्कृत मजाक उड़ा रहे हैं। दरअसल आप खुद दया और उपहास के पात्र हैं। और क्या कहूं?

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