दयाशंकर शुक्ल सागर

Tuesday, June 7, 2016

कौन नहीं चाहता कि गो हत्या पर रोक लगे



गो हत्या से जुड़ी मेरी पोस्ट पर अच्छी बहस हो गई। ये मुद्दा संवेदनशील है इसलिए इसे ढंग से समझने की जरूरत है। जल्दबाजी में आप कोई नतीजा नहीं निकाल पाएंगे। हमारा संविधान गो हत्या पर पूर्ण प्रतिबंध के मसले पर बड़ी चालक तरह से खामोश है। कोई भी राज्य गो हत्या पर रोक लगाने के लिए पूरी तरह आजाद है। लेकिन संविधान में यह नीतिगत निर्देश के रूप में नहीं आता। आजादी से पहले साम्प्रदायिक दंगे के पीछे अमूमन एक ही वजह होती थी- गो हत्या। संविधानसभा में सेठ गोविंद दास और पंडित ठाकुर दास भार्गव गो हत्या पर पूर्ण प्रतिबंध लाने के लिए प्रस्ताव लेकर आए। यूनाइटेड प्रोविसंस के मुस्लिम प्रतिनिधि एचएस लारी भी चाहते थे कि इस मसले पर संविधान में साफ तौर पर कुछ कहा जाए ताकि देश को साम्प्रदायिक दंगों से निजात मिले। खुद डा. अम्बेडकर इसे राज्य नीति के दिशा निर्देशक सिद्धान्तों में शामिल करने को तैयार हो गए थे। लेकिन कांग्रेस की तरफ से इसका विरोध किया टीटी कृष्‍णामचारी ने किया था। वे चेन्नई के ब्राह्मण थे। वे स्वतंत्र भारत के वित्त मंत्री भी रहे। कांग्रेस में घोटालों की शुरूआत का श्रेय इन्हीं महोदय को जाता। इन्हें स्कैम में फंस कर इस्तीफा देने वाले भारत के पहले केन्द्रीय मंत्री का दर्जा प्राप्त है। तो इन पंड़ितजी का कहना था कि इस मसले पर संविधानसभा को दखल देने का कोई अधिकार नही है। गो हत्या पर प्रतिबंध के बारे में अंग्रेजों की नीति जारी रखी जाए। इसे अलग से नीति निर्देशक सिद्धान्तों में जोड़ने की कोई जरूरत नहीं है। संबंधित सरकार अपने विवेक से जो चाहे वह फैसला करे। जो गो हत्या पर देश में एक कानून की बात हमेशा के लिए खत्म हो गई।
इसके बाद इस मसले पर राजनीति हुई और हो रही है। और आज त्रासदी देखिए गाय को अपनी माता मानने वाला भारत आज बीफ का निर्यात करने वाला दुनिया का सबसे बड़ा देश है। कम्युनिस्टों ने अपने राज्यों में गो हत्या पर प्रतिबंध नहीं लगाया वह केरल हो या पश्चिम बंगाल। अब आप देखिए जम्मू कश्मीर मुस्लिम बहुल प्रान्त है और यहां के कानून में गो हत्या पर रोक है। गोवा में भाजपा की सरकार है और वहां गो हत्या पर पूर्ण रोक नहीं है। नागालैंड में भी लम्बे अरसे तक भाजपा के सहयोग से सरकार रही और वहां भी गो हत्या पर रोक नहीं है। गोवा का तर्क है कि यह राज्य अन्तराष्ट्रीय पर्यटन का केन्द्र है। और हम अपने मेहमानों को गाय का गोश्त परोसने से मना नहीं कर सकते। नगालैंड का तर्क है कि नगा जनता के लिए गो मांस दाल चावल की तरह है। उस पर हम रोक कैसे लगा सकते हैं। जैसा कि मैंने अपनी पिछली पोस्ट में बताया था कि किस तरह मोदी सरकार ने हिमाचल हाईकोर्ट के सवाल पर दो टूक जवाब दिया कि उनके हाथ में कुछ नहीं।

तो आप देखिए संघ परिवार का सारा गो-प्रेम सिर्फ नारों में है। और आप बेवजह भावुक हुए जाते हैँ।

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