दयाशंकर शुक्ल सागर

Wednesday, July 16, 2014

चर्चिल के गाल पर बेटियों का तमाचा


शिमला का ऐतिहासिक पीटरहाफ कभी ब्रिटिश वायसरायों और गर्वनर जनरलों का शानदार घर हुआ करता था। वे यहां गर्मियां बिताते थे। आजादी के बाद यह महल पंजाब हाईकोर्ट में तब्दील हो गया। कहते हैं महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे पर मुकदमा यहीं चला था। हिमाचल जब अलग राज्य बना तो इस भवन को राजभवन बना दिया गया। लेकिन यह भवन इतना बड़ा था कि बाद के देसी गर्वनरों ने इसमें रहने से ही इंकार कर दिया। कुछ लोग कहते हैं कि एक गर्वनर को तो यहां रात में वायसराय का भूत सताने लगा था। इसी दहशत में यहां बड़ी भारी आग लग गई थी। और तब इस महल को ठीक ठाक करके हिमाचल के पर्यटन विभाग ने महंगे होटल में तब्दील कर दिया। जिस घर में कभी भारत के गर्वनर जनरल रहते हों उस घर में रात बिताने का अपना अलग और रोमांचक अनुभव है। होटल में दाखिल होते ही आपको इसकी भव्यता का अंदाजा आसानी से हो जाएगा जो बेशक दुनिया के बड़े से बड़े सात सितारा होटल में संभव नहीं है।
खैर इस आलीशान महल में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं। मेरी दिलचस्पी सिर्फ उन बच्चों में थी जिन्होंने रात दिन मेहनत कर मेरिट में अपनी जगह बनाई। मुझे शिमला आकर पता चला कि देश में प्रतिभाओं को सम्मानित करने की परम्परा सबसे पहले 2002 में जिस अखबार ने शुरू की, वह अमर उजाला था। बाद में इसी आइडिया को दूसरे अखबारों ने यूपी व अन्य राज्यों में अपनाया। खैर यह भी ज्यादा महत्वपूर्ण बात नहीं। अहम बात यह है कि मीडिया समूह इन आयोजनों के जरिए सामाजिक सरोकारों से सीधे जुड़ रहे हैं। यह एक अच्छी पहल है। बिनोवा भावे ने प्रतिभा की बड़ी सटीक व्याख्या की है। प्रतिभा का मायने है बुद्धि में नयी नयी कोपलों का फूटते रहना। नई कल्पना, नया उत्साह, नई खोज और नई स्फूर्ति। ये सब प्रतिभा के लक्षण हैं। मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के हाथों मैडल पा कर हिमाचल के सुदूर गांवों से आए बच्चों के चेहरों पर मैंने आज प्रतिभा की यही चमक, यही उत्साह और स्फूर्ति देखी। एक गरीब बच्ची ने तो मुख्यमंत्री  को बीच रास्ते में रोक लिया। अपने असहाय पिता की ओर इशारा करते हुए बोली-देखिए मेरे पापा चल फिर नहीं सकते। उनके पास मुझे आगे पढ़ाने के लिए पैसे नहीं है। मुख्यमंत्री ने अपने सक्रेट्री से कहा कि इस बच्ची और उसके पिता को सचिवालय ले आओ। मुख्यमंत्री के काफिले में ही ये बिटिया सचिवालय गई। मुख्यमंत्री ने फौरी राहत के लिए उसे दस हजार रुपए दिए और उसकी आगे की पढ़ाई की निजी तौर पर जिम्मेदारी ले ली।  यह सब मेरी आंखों के सामने हुआ। मैं गांव की उस बहादुर लड़की का हौसला देखकर दंग था। आज देश की हर लड़की को इसी तरह के हौसले की जरूरत है। बेटियां पढ़ेंगी तभी आगे बढ़ेंगी। और अपना हक हासिल करेंगी।

लौटते वक्त में पीटरहाफ की शानदार इमारत को देख रहा था। बेशक इन बच्चों को सम्मानित करने के लिए हमने एकदम सटीक जगह का चुनाव किया था। आत्माओं में मुझे यकीन नहीं लेकिन वायसराय की अगर रुहें यहां होगी तो यह देखकर बेशक चकित होंगी कि उनके छोड़े भारत में दूध बेचने वाले, राजगीर, मजदूर और गरीब किसानों की बेटियां कामयाबी के किस शानदार सफर पर आगे बढ़ रही हैं। मुझे चर्चिल भी याद आया जो कहा करता था-भारत के लोग अभी इतने परिपक्व नहीं हुए हैं कि वे देश और आजादी को संभाल सकें। बेटियों की ये कामयाबी चर्चिल के मुंह पर एक करारा तमाचा है।


  

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