दयाशंकर शुक्ल सागर

Wednesday, July 23, 2014

तुम निर्भया हो तो क्या हुआ



तुम निर्भया हो तो क्या हुआ
रहती हो
दरिंदों के शहर में
यहां 170 फीट गहरे हैंडपम्प से
पानी की जगह निकलता है लाल खून
तुम निर्भया हो तो क्या हुआ
21 करोड़ की आबादी में
किसी अस्पताल
किसी स्कूल की चहारदीवारी में
किसी भूखे भेड़िए की तरह
दरिंदे तुम्हारे जिस्म को नोचेंगे
चीखती रहोगी तुम
रात के सन्नाटे में
तुम्हें कोई बचाने नहीं आएगा
तुम निर्भया हो तो क्या हुआ
तुम डरोगी जब तक तुम्हारी आत्मा
तहस नहस न हो जाए
वो तुम्हारी नंगी लाश पर चादर डालने से पहले
तस्वीरें खींचेंगे फिर
फेसबुक पर शेयर करेंगे
तुम्हें झूठे नाम देंगे
तुम्हें दूसरी निर्भया कहेंगे
चौराहे पर तुम्हारी मुस्कुराती तस्वीर रखकर
सूखी मोमबत्तियां जलाएंगे
तुम निर्भया हो तो क्या हुआ
भेडियों के इस शहर में
तुम्हें डरना होगा
डर कर रहना होगा
तुम अकेली हो
तुम निर्भया हो तो क्या हुआ
वो कल तुम्हें भूल जाएंगे
और अपने गुस्से को समेट कर
रख लेंगे
किसी तीसरी निर्भया के लिए !


 

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