दयाशंकर शुक्ल सागर

Tuesday, October 7, 2014

अच्छे दिन


यूरोप में 100 लोगों का एक इलीट क्लब हुआ करता था। इसमें केवल यूरोप के महान लोग सदस्य बन सकते थे। महान यानी नोबल पुरस्कार विजेता, मशहूर पेंटर, मशहूर लेखक, वैज्ञानिक आदि। इस क्लब की सदस्यता मिलना  वाकई सम्मान की बात थी। क्योंकि इस क्लब में 100 से ज्यादा सदस्य किसी कीमत पर नहीं हो सकते थे। सिर्फ किसी के मरने पर जगह खाली होती थी और उसकी जगह भरने के लिए आमंत्रण भेजा जाता था। एक सदस्य की मौत के बाद नोबल जीतने वाले जार्ज बनार्ड शॉ के पास भी आमंत्रण गया। क्लब ने आमंत्रण पत्र में लिखा कि  अगर आप हमारे क्लब के सदस्य बनते हैं तो यह क्लब गौरवान्वित होगा। मैंने सुना है शॉ ने इस आमंत्रण को ठुकरा दिया। कहा-जो क्लब मेरे आने से गौरवान्वित होता हो उसमें मेरा क्या काम। ऐसा क्लब मेरे लिए तुच्छ है। मैं ऐसे क्लब में शामिल होना चाहूंगा जो मुझे लेने से इंकार करता हो।
अमेरिका के प्रतिष्ठित अखबार न्यूयार्क टाइम्स में भारत के मंगलयान अभियान का मजाक उड़ाने  वाले कार्टून को देखकर मुझे शॉ से जुड़ी ये घटना याद आ गई। सिंगापुर के कार्टूनिस्ट ने दिखाया है कि इलीट स्पेस क्लब के लोग अखबार में भारत की इस कामयाबी की खबर पढ़ रहे हैं और बाहर भारत का एक गंवई प्रतिनिधि गाय लेकर खड़ा है और दरवाजा खटखटा रहा है। बेशक इरादा भारत का मजाक उड़ाने का है। जिसके लिए अखबार के भले संपादक ने भारतवासियों से माफी भी  मांग ली। लेकिन सच तो यही है कि मंगल पर करोडों डालर फूंक कर पहुंचने वाले देश हमारी इस कामयाबी को हजम नहीं कर पा रहे। मोदी गलत नहीं है कि दुनिया में आज भी हमारे देश की छवि सपरों और तमाशबीनों के देश की है।  लेकिन मेरी तकलीफ इस बात की है कि हमारे देश में ही कई कथित बुद्धिजीवी, महान और इलीट क्लब के लोग हमारी कामयाबियों का मजाक उड़ाते नहीं थकते। फेसबुक पर दीवारें रंगी हुई हैं। विवेकहीनता का भी एक तार्किक आधार होता है। इसलिए मित्रों से निवेदन है कि वह अपनी भावनाओं और भाषा पर नियंत्रण रखें। इंतजार करें और उम्मीद रखें अच्छे दिन जरूर आएंगे। मोदी नहीं ला पाए तो कोई और लाएगा। पर अच्छे दिन जरूर आएंगे।

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