दयाशंकर शुक्ल सागर

Saturday, January 17, 2015

क्या आप सूफी संत सरमद को जानते हैं


आज संत सरमद शहीद के बारे में पढ़ रहा हूं। अद्भुत आदमी था ये। वह सूफी था और औरंगजेब के हुक्‍म से मस्‍जिद में उसका कत्‍ल किया गया। उसका कसूर सिर्फ इतना था कि वह आधा कलमा पढ़ता था। आधा कलमा था-अल्‍लाह ही एक मात्र परमात्‍मा है। वह कलमा का अगला हिस्सा मानने को तैयार नहीं था जिसमें कहा गया है सिर्फ मुहम्‍मद ही अल्‍लाह के पैगंबर है।
वह मानता था कोई भी अकेला पैगंबर नहीं हो सकता। कोई भी आदमी—फिर से जीसस हो या मोहम्‍मद या मोज़ेज या बुद्ध, एकमात्र नहीं हो सकता। सरमद का कत्‍ल कर दिया गया मुगल बादशाह औरंगजेब के हुक्‍म से। उसने मुल्लाओं के साथ साजिश की थी। लेकिन सरमद हंसता रहा। उसने कहा, मरने के बाद भी मैं यही कहूंगा।
एक दफा औरंगजेब की बेटी जेबुनिशा ने महल की खिड़की से देखा कि एक नग्न फकीर कीचड़ में खेल रहा है। उसने पूछा क्या कर रहे हो। सरमद ने कहा-जन्नत बना रहा हूं। जेबुनिशा का कहा -मुझे बेचोगे? सरमद ने कहा -जरूर। कितने में? सरमद बोले-हुक्के के तम्बाकू की कीमत में। जेबुनिशा ने जन्नत खरीद ली। सरमद ने तख्ती लगा दी -ये जन्नत जेबुनिशा की मलकियत है। एक दिन औरंगजेब ने ये देखा तो चौंक गया। बेटी से पूछा-ये क्या तमाशा है? बेटी ने सरमद के बारे में बताया। औरंगजेब सरमद से मिलने गया। कहा मेरे लिए एक ऐसी ही जन्नत महल में बना दो। सरमद बोला-ये मुमकिन नहीं। ऐसे चमत्कार रोज नहीं होते।
दिल्‍ली के मौलवी सरमद से किसी तरह छुटकारा पाना चाहते थे। लेकिन उन दिनों सरमद का जादू दिल्‍ली के लोगों पर तारी था। उसे कुछ हो जाता तो बवाल खड़ा हो सकता था। लोगों में यक अफवाह जड़ जमा चुकी थी कि सरमद दारा को एक सिंहासन देना चाहता था। औरंगज़ेब ने सरमद को बुलवा कर इस बारे में सफाई पेश करने के लिए कहा।
सरमद ने बताया कि वह किसी मिट्टी के सिंहसन की बात नहीं कर रहा था, वह तो स्‍वर्ग के सिंहासन की और इशारा कर रहा था। जब औरंगज़ेब को भरोसा न हुआ तो सरमद ने उसे कहा, ‘’आंखे बंद करो और खुद देख लो।‘’
औरंगज़ेब ने आंखे बंद कीं तो उसे यह नज़ारा दिखाई दिया कि दारा स्‍वर्ग में एक सिंहासन पर बैठा है। और औरंगज़ेब उसके सामने एक भिखारी की तरह खड़ा है। यह देखकर औरंगज़ेब आगबबूला हुआ। और तबसे सरमद उसकी आंखो की किरकिरी हो गया। उसे दहशत पैदा हुई कि यह नज़ारा सरमद कहीं और लोगों को न दिखाये।

दिल्‍ली की विशाल जामा मस्‍जिद, जहां सरमद का कत्‍ल किया गया। इस महान व्‍यक्‍ति की स्‍मृति लिये खड़ी है। बड़ी बेरहमी से, अमानवीय तरीके से उसका कत्‍ल हुआ। उसका कटा हुआ सिर मस्‍जिद की सीढ़ियों पर लुढ़कता हुआ चिल्‍ला रहा था: ‘’ला इल्‍लाही इल अल्‍लाहा।‘’ वहां खड़े हजारों लोग इस वाकये को देख रहे थे।
दिल्‍ली की मशहूर जामा मस्‍जिद से कुछ ही दूर, बल्‍कि बहुत करीब, एक मज़ार है जिस पर आज भी हजारों मुरीद फूल चढ़ाते, चादर उढ़ाने आते है। इत्र की बोतलों और लोबान की खुशबू से महक उठता है उसका परिवेश। वह मज़ार है हज़रत  सरमद की। अब जब मैं  दिल्ली गया तो वहां जरूर जाउंगा। आप भी कभी जरूर जा‌इए।



1 comment:

Unknown said...

Bilkul jhoot hai aurangzeb bohot aala darje ke musalman the