दयाशंकर शुक्ल सागर

Friday, September 22, 2017

इस्लाम और मूर्तिपूजा



हिन्‍दुओं में मूर्ति पूजा नहीं थी। प्राचीनतम उत्‍खनन में शिवलिंग जरूर मिले लेकिन उसके पूजन के प्रमाण नहीं मिले। भारत में मूर्ति पूजन बौद्धों के प्रभाव से शुरू हुआ। महात्मा बुद्ध सारी उम्र व्यक्ति पूजा व कर्मकाण्ड के विरोधी रहे। फिर भी सबसे ज्यादा बुत उन्हीं के बने। कुछ भाषाशास्‍त्री मानते हैं कि बुत लफ्ज बुद्ध शब्द से ही जन्मा और अरब में प्रचलित हुआ। ये अलग बहस का विषय है। अरब के कबिलों के बद्दू, बूत परस्त थे। उन्होंने पत्‍थर और लकड़ी के बने इन बुतों को ही खुदा मान लिया था। उनकी मान्यता थी कि इन बुतों में खुदा की रूहें बसती हैं। ये 600 ईसवी और इसके पहले का दौर था।
अरब के ये बुत दरअसल अरब के भोले भाले कबिलेवासियों से पैसा एंठने के जरिए थे। इन्हें मक्का के धर्म स्‍थल काबे में इकट्ठा किया गया था। तो आप देखें मक्का के सरदारों की ‌जिन्दगी का दारोमदार उन खुदाओं पर था, जो मक्के के काबा में रहते थे। हर साल अरब के सारे कबिले इनकी इबादत के लिए यहां आते थे और सरदारों से खरीद फरोख्त करते जिससे उनका कारोबार चलता था। मुहम्मद साहब की एक खुदा की बात तार्किक थी। ये सरदार भी समझते थे। इन सरदारों का तर्क था कि-हम भला 300 खुदाओं की जगह एक खुदा कैसे ला सकते हैं? वह भी ऐसा खुद जो कहीं दिखता नहीं। फिर भी हर जगह मौजूद है। मक्के में मदीने में सारे जहां में चांद में भी और आफताब में भी। तो हम ऐसे खुदा को कैसे मान लें। हमारे खुदा हमारी इबादत भी हैं और दौलत भी।
आप देखें मुहम्मद साहब का एक खुदा हमारे प्राचीनतम ग्रंथों के एकेश्वर वाद के सिद्धान्त के साथ खड़ा था। हिन्दुओं ने मूर्तियों की पूजा की लेकिन उन्हें कभी खुदा नहीं माना। हिन्दुओं का ईश्वर भी दिखता नहीं पर वह हर जगह मौजूद है। हर जगह है तो इन मूर्तियों में क्यों नहीं? ईश्वर सिर्फ मूर्तियों में है ये सोचना गलत है। इसलिए मूर्ति पूजा हिन्दुओं की कोरी नासमझी नहीं थीं। वह सिर्फ ईश्वर के प्रति ध्यान में डूबने का एक माध्यम थीं।
हिन्दुओं के सनातन धर्म में एक दूसरी धारा भी है जो ईश्वर को मूर्तियों में नहीं खोजती। वह मूर्ति विरोधी है। लेकिन इन दोनों धाराओं में कभी कोई टकराव नहीं दिखा। मुझे लगता है कि मुहम्मद साहब के फलसफे की उनके व्याख्याकारों व मौलानाओं ने गलत व्याख्या की। वे भूल गए कि कुरान में मूर्ति पूजा विरोध का मतलब बुतों को खुदा समझने वालों से है। आक्रान्ताओं ने मूर्ति पूजा विरोध को इस्लाम से जोड़ कर हिन्दुस्तान में लूट और खसोट का अपना मंसूबा पूरा किया।
त्योहारों और पर्वों के मौके पर आजकल दिमाग में यही सब चल रहा है सो लिख ‌दिया।

1 comment:

Unknown said...

बात सही लेकिन एक गुजारिश है कि इतने बड़े विषय को थोड़ा और विस्तार दीजिये