दयाशंकर शुक्ल सागर

Tuesday, May 22, 2018

कश्मीर में बिना फौज के आतंक को गहरी शिकस्त दे रहे सैलानी



कश्मीर डायरी 6


श्रीनगर/पहलगाम। कश्मीर में आतंकवाद को अगर कोई ‌शिकस्त दे रहा है तो वे इस देश के बहादुर सैलानी है। आतंकवाद की तमाम घटनाओं के बावजूद कश्मीर की खूबसूरत वादियां हिन्दुस्तान के पर्यटकों को अपनी तरफ खींचती हैं। कश्मीरी ये सच जानता है इसलिए कश्मीरी के लिए सैलानी किसी मसीहा से कम नहीं। उसे खरोंच भी आ जाए तो कश्मीर अंदर तक हिल जाता है। आतंकी ये सच जानते हैं इसलिए वह सैलानियों के रास्ते में कभी नहीं आते। सैलानियों को नुकसान पहुंचा कर वे कश्मीर में एक दिन नहीं टिक सकते। इसीलिए पिछले दिनों पत्‍थरबाजी की चपेट में आए पर्यटक की मौत से पूरा कश्मीर सदमें में आ गया। ऐसे कश्मीर में पहले कभी नहीं हुआ। ये सिर्फ एक इत्तेफाक था।
दरअसल कश्मीर के दो चेहरे हैं। टूरिस्टों के लिए कुछ और सुरक्षाबलों के लिए कुछ और। गर्मियों में हमेशा से ही कश्मीर टूरिस्टों की पहली पसंद रहा है। घाटी की कमाई का अकेला सबसे बड़ा जरिया है। यही वजह है कि कश्मीर के लोग किसी भी पर्यटन स्‍थल से ज्यादा मे‌हमान नवाज और खुशदिल हैं। यहां आतंकियों का निशाना केवल सुरक्षा बल हैं टूरिस्ट नहीं। लेकिन  पत्‍थरबाजी के नए ट्रैंड ने अब सबको डरा दिया है। बीती 7 मई को श्रीनगर से गुलमर्ग जा रहे चेन्नई के सैलानी की पत्‍थरबाजी में चेन्नई मौत हो गई थी। उस दिन बंद की कॉल थी और सड़क के किनारे खड़े पत्‍थरबाजों ने लोकल टैक्सियों को निशाना बनाया। आज भी इस इलाके में सीआरपीएफ लगी है। इलके में सन्नाटा है। घटनास्‍थल से दस कदम की दूरी पर ही पुलिस चौकी है। हमने वहां के एसएचओ से बात की। वह खुद हैरत में थे। बोले-ये सिर्फ एक हादसा था। लड़कों को नहीं पता था कि टैक्सी में टूरिस्ट हैं। ये सब कैसे हो गया किसी को नहीं मालूम। इस घटना से सीमए महबूबा से लेकर डल झील का शिकारे वाला भी सहम गया था।

लेकिन कुछ दिनों सुस्ती के बाद पर्यटन फिर परवान चढ़ने लगा है। गर्मी की छुट्टियां शुरू होते ही पर्यटक घाटी की तरफ निकल आए हैं। गुलमर्ग, पहलगाम और श्रीनगर में चहलपहल बढ़ गई है। पहलगाम के होटल लाल कोठी के मैनेजर फयाज अहमद बताते हैं कि ये वकाई टूरिस्टों के लिए हिम्मत का काम है। सारा खौफ तब तक है जब तक आप जवाहर टनल पार नहीं करते। टूरिस्ट हमसे कहते हैं- अनंतनाग से पहलगाम आने की सड़क पर आते ही सारा डर खत्म हो जाता है। वे कहते हैं कि जो एक बार हिम्मत करके कश्मीर आ गया, उसके सारे भ्रम टूट जाते हैं। वह फिर आता है और अपने साथ नए टूरिस्ट लाता है।
हमारी पहलगाम के खच्चरवालों से भी बात हुई। उमर खच्चरों से सैलानियों को पहलगाम से कश्मीर वैली, वॉटर फॉल, टूलियन लेक घुमाता है। मुम्बई और बंगाल के टूरिस्ट आए हुए हैं। दूसरे खच्चर वाले इमरान ने अपना नाम मजाक में आतंकी टाइगर की तर्ज पर इमरान टाइगर रख लिया है। वह कहता है पहलगाम अमन का शहर है, यहां कभी कुछ नहीं होता।
श्रीनगर की डल झील में शिकारा चलाने वाले सलीम कहते हैं -“ये डल लेक श्रीनगर की तारीख का गवाह रही है। चाहे कितने बुरे हालात हो जाएं ये लेक टूरिस्टों को अपने पास बुला लेती है। ऐसे रहमदिल टूरिस्टों पर पत्‍थर फेंकने वाले कश्मीरी नहीं हो सकते।” 

श्रीनगर और कश्मीर में हमारी जितने भी टूरिस्टों से बात हुई उन सबका कहना था कि कश्मीर को जितना डरावना दिखाया जाता है उतना है नहीं। सब यहां की मेहमान नवाजी की तारीफ करते हैं और यहां अगले साल फिर आना चाहते हैं।


हम सबसे कहेंगे कश्मीर आओ
श्रीनगर। महाराष्ट्र थाणे से आए दस परिवारों का ग्रुप कश्मीर के पर्यटन के सच की पूरी कहानी बयान करता है। थाणे के हरीश ने कश्मीर घूमने का प्लान अप्रैल में बनाया था। 7 मई को पत्‍‌थरबाजी में एक टूरिस्ट की मौत हो गई इसके बाद की कहानी खुद हरीश भाई की जुबानी सुनिए- “यहां आने से पहले लोगों ने बहुत सवाल उठाए साहब। टूरिस्ट की मौत की खबर सुनकर सब हिल गए। आधे लोगों ने तो कहा हमारा टूर कैंसिल कर दो। हम नहीं जाएंगे। लेकिन मैंने सबको कन्विंस किया। मैंने कहा हम गारंटी लेते हैं कुछ नहीं होगा। मेरे साथ मेरी वाइफ भी है। हम गारंटी लेते हैं। लेकिन सब पेरेंटस हैं। सबके साथ चार से चौदह साल के बच्चे हैं। सब बहुत टेंस थे, बहुत टेंस थे। फिर सब मेरे पर भरोसा कर के यहां आए।”
“फिर आपको यहां आकर अब कैसा लग रहा है ‍?” हमारे श्रीनगर संवाददाता अमृतपाल सिंह बाली ने जब ये सवाल हरीश भाई से पूछा तो उन्होंने गहरी सांस ली-“एकदम सेफ। सब कह रहे हैं मुम्बई में चैनल वाले कश्मीर के बारे में इतनी गलत न्यूज क्यों चला रहे हैं? यहां तो ऐसा कुछ नहीं दिख रहा।”
अंत में हरीश कहते हैं-“अफवाहे मत फैलाओ, लोगों को इस जन्नत में आने दो। यहां हर सड़क को मिलेट्री ने कवर कर रखा है। लोकल लोग इतने अच्छे हैं। सबको आने दो। ”
मुम्बई से आई शांति मुम्बई से आई हैं। कहती हैं कि हमें बहुत डराया गया। प्लीज डोंट गो। वहां टेरेरिस्ट हैं। इट्स नाट सेफ। लेकिन हम फिर भी आए। हम बहुत खुश हैं यहां आकर। ये सचमुच जन्नत है। यहां के लोग बहुत फ्रेंडली हैं।
गुजरात से आए राजीव भाई पहलगाम में घूम रहे हैं। वे कहते हैं कि ऐसा नहीं कि यहां आने पर डर नहीं लगा। लेकिन सोचा देखें होता है वहां। पर यहां आके लगा कि डरने की कोई बात नहीं है।






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