दयाशंकर शुक्ल सागर

Friday, May 13, 2022

8वीं सदी का इश्क


 "मेरे प्यारे चच, तुम्हारी पलकों के बाणों ने मेरे दिल को निशाना बना कर उसे घायल कर दिया है. तुम से अलग होने का डर जंजीर की तरह मेरी गर्दन पर बंधा रहता है. इसलिए तुम्हारे राज्य में कोई ऐसा दवाखाना है जो मेरे रोग का इलाज कर सके? क्या तुम्हारे समाज के हाथ से मेरी गर्दन से लटकी नैतिकता की जंजीर हटा सकते हैं? मेरी गर्दन को अपने प्यार के हार और मेरे कानों को अपने स्नेह की बाली से सजाओ. अगर तुमने ये नहीं किया तो मैं जी के क्या करूंगी और खुद को खत्म कर लूंगी. मेरे प्रिय मेरे दिल को खुश कर दो और इसे अपने अलगाव के दर्द से आजाद कर दो. हे प्रिये, अगर तुमने मुझसे मुंह फेर लिया, तो मैं तुम पर  इल्जाम दूंगी, कि तुम मेरे साथ अन्याय कर रहे हो."  

क्या आप यकीन करेंगे ये खत 8वीं सदी में सिंध के राजा की पत्नी रानी सोहनन देवी ने अपने युवा वजीर चच को लिखा था. 8वीं सदी में लिखा गया- 'फतह-ए-नामा सिन्ध' उर्फ चचनामा दुनिया की अकेली ऐसी प्रमाणिक ऐतिहासिक किताब है जो हमें भारत में मुसलमानों के पहले हमले का आंखों देखा हाल बताती है. इस किताब का लेखक गुमनाम है. 13वीं में पहली बार इस मूल अरबी किताब का फारसी अनुवाद इल्तुतमिश के दरबारी अली कुफी ने किया. फिर 1900 में पहली बार इस फारसी किताब का अनुवाद सिंध के मशहूर साहित्यकार मिर्ज़ा कालिचबेग फ्रिडुनबेग ने अंग्रेजी में किया. 120 साल पुरानी ये दुलर्भ अंग्रेजी किताब अभी हाल में मेरे हाथ लगी. किताब का एक अंश मैंने हिन्दी में अनुवाद करके आपके सामने रखा है. युवा चच एक विद्वान ब्राह्मण था जिसके पिता मंदिर के पुजारी हुआ करते थे. चच सिंध के राजा राय सहिरस के दरबार में काम मांगने आया था. और उसकी विद्वता से प्रभावित होकर राजा के वजीर ने उसे अपने साथ रख लिया. "चचनामा" बताता है कि लंबे कद का ब्राह्मण चच सुंदर चेहरे और गोरे रंग का युवक था. रानी सोहनन देवी उसके व्यक्तित्व से प्रभावित हो गई. चच की कद-काठी पर रानी मोहित और मुग्ध थी, और उसे चच से पहली नजर में प्रेम हो गया. हालांकि उनकी उम्र में बड़ा फासला था. वह चोरी छुपे चच को प्रेम पत्र लिखने लगी. लेकिन चच बुद्धिमान ब्राह्मण था. चच ने रानी सोहनन को जवाब लिखा-"मैं राजा के प्रति वफादारी से बंधा हूं. राजाओं के हरम की ओर देखना जिन्दगी से हाथ थोने जैसा है. ये इस दुनिया में बदनामी और दूसरी अज्ञात दुनिया में पाप का सबब है. जब राजाओं का प्रकोप अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँच जाता है तो उसे रोकने का कोई उपाय नहीं, कोई दवा नहीं. इसके अलावा, मैं ब्राह्मण हैं और मेरे पिता और भाई तपस्वी हैं, और वे अभी भी अपने प्रार्थना स्‍थल पर बैठे हैं. अंत में हमें सब कुछ भगवान को ही सौंपना है. मुझे ऐसी बेवफाई मंजूर नहीं है. मैं राजा की सेवा में हूं. और मुझे हमेशा इसी उम्मीद और डर बीच रहना होगा. ये ऐसी बात है  जिसे कोई बुद्धिमान पुरुष स्वीकार नहीं कर सकता. चार चीजों में विश्वास नहीं रखना चाहिए- एक संप्रभु, अग्नि, वायु, और पानी. मैं अपने सिर ये तोहमत नहीं मढ़ सकता. तुम मुझसे यह चीज कभी नहीं पा सकती." 

विद्वान चच ने इस अधेड़ उम्र की रानी के इस प्रेम प्रस्ताव को ठुकरा दिया. उस जमाने में ये कोई मामूली बात नहीं थी. लेकिन रानी ने भी अपनी कोशिशें नहीं छोड़ीं. और जैसा कि ऐसे मामलों में प्रायः होता है चच के प्रति उसका प्‍यार और बढ़ गया. उसने जवाब लिखा- - "अगर तुम मुझे प्यार नहीं कर सकते तो कम से कम मुझे अपना चेहरा तो मुझे रोज दिखा सकते हो. कम से कम मेरा ये हक तो मुझसे मत छीनो. मौसम और कभी बे-मौसम मैं तुम्हारी सुंदरता के बारे में सोच सकूं तकि वो रूप मेरे दिलो दिमाग में ताजा रहे. और मैं तुमसे मिलने की उम्मीद कभी खोना नहीं चाहती. तुमसे मिलन के लिए खुद को दिलासा दूं. (आगे रानी ने एक कविता लिखी. )  मेरी खुशनसीबी/ मैं तुम्हें साल-दर-साल देखूं? या भले अपनी पूरी जिन्दगी में सिर्फ एक रात  तुम्हारा तसव्वुर करूं/ हे मेरे आदर्श ! /मैं तुम्हारे सोचकर कभी निराश न होऊं? मैं इंतजार करूंगी/कम से कम एक दिन तुम्हारे साथ मिलन की रात."

राजा वृद्ध था और कुछ ही सालों में उसकी स्वभाविक मृत्यु हो गई. राजा की कोई संतान नहीं थी सो रानी ने चच से शादी कर सिंध की कमान उसके हाथ सौंप दी. यहीं से चचवंश शुरू हुआ. बाद में इसी चच का बड़ा बेटा मशहूर राजा दाहिर बना. पहले मुस्लिम आक्रमणकर्ता के रूप में जाने गए मुहम्मद बिन कासिम ने जब भारत पर हमला किया तो वहां का राजा दाहिर था. दाहिर केवल सिंध का नहीं बल्कि कन्नौज से लेकर कश्मीर तक उसका राज था. तो इस तरह भारत में मुसलमानों से पहला मुचैटा ब्राह्मणों ने लिया था. आगे तो सब इतिहास है. 


  


1 comment:

Anonymous said...

यूँ ही इतिहास के पन्नों से गर्द हटाते रहिये ताकि सत्य ,,झूठ के बोझ तले दब ना जाये । बेहतरीन जानकारी 🙏🏻🙏🏻