दयाशंकर शुक्ल सागर

Tuesday, January 3, 2023

चिड़ियों दा चम्बा

 

चिड़ियों दा चम्बा

कहते हैं बिटिया की शादी करना पहाड़ चढ़ने जैसा है। मुझे तो सचमुच पहाड़ चढ़ना पड़ गया। कोई दो किलोमीटर सीधी चढ़ाई। बीच में थक कर कई बार हॉफते हुए चट्टानों पर बैठना पड़ा। पहाडों पर चढ़ाई का सीधा सिद्धान्त है- मजबूती से कदम धीरे-धीरे आगे बढ़ाएं। मैदानी इलाकों की तरह तेज चलेंगे तो बहुत जल्द हाँफते हुए थक जाएंगे। लड़के का घर-बार देखने के उत्साह में मैं ये सामान्य-सा सिद्धान्त भूल गया। हमारे साथ शिमला के मेरे मित्र मशहूर पत्रकार केएस तोमर साहब भी थे जो साठ पार होने के बावजूद बिना थके पहाड़ चढ़ रहे थे। पहाड़ पर मैं रहा जरूर हूं लेकिन कभी इस तरह ट्रैकिंग करने की हिम्मत कर सका। लेकिन सुमंती के लिए लड़के के घर परिवार से मिलने जाना था। शिमला से करीब पचास किलोमीटर दूर एक पहाड़ी गांव में। तत्तापानी के आगे कार का रास्ता नहीं था सो एक सुनसान पहाड़ी पर कार खड़ी कर पैदल ही आगे बढ़ना पड़ा। 


सुमंती बारला के बारे में मैंने कभी लिखा नहीं। वो हमारे परिवार से पिछले कोई पन्द्रह साल से जुड़ी है। असम के चाय बगानों में काम करने वाले जब घर आई थी तो केवल बारह तेरह साल की दुबली लड़की थी। तब हमारे बहनोई सिक्किम के नजदीक एक चाय बगान में मैनेजर हुआ करते थे। उनके जरिए सुमंती के मां बाप ने उसे काम सीखने हमारे साथ शहर भेज दिया। तब से वह लगातार हमारे संग ही है। इन पन्द्रह साल में वह पिछले साल केवल एक बार हमारे साथ सिलीगुड़ी के पास अपने गांव गई। इन पन्द्रह साल में उसने बहुत कुछ सीखा। आज वो एक बेहतरीन कुक है। चाऊमीन से मोमो और चावल दाल से निमोना तक। उससे बेहतर कोई नहीं। जाहिर है उसे ऐसा बनाने और उसकी परवरिश में उसकी मां यानी हमारी पत्नी का गहरा योगदान है। अन्नपूर्णना देवी की साक्षात अवतार सुमंती मेरी दो बेटियों के साथ सयानी हुई और कब वो मेरी तीसरीबिटिया बन गई मुझे पता चला उसे। शुरू में साहब बोलती थी बाद में जाने कब से पापा बोलने लगी। घर में तीनों बहने आपस में खूब लड़ती झगड़ती हैं। लेकिन ये झगड़ना हमेशा किसी पेड़ की शाख पर बने घोसले में चिड़ियों के चहकने का अभास ज्यादा देता था। बाकी दो बहनों की हमसे हमेशा शिकायत रहती है कि हम हमेशा सुमंती का ही फेवर करते हैं। सच पूछिए तो हमारे इस फेवर के पीछे अपने पराए की कोई भावना नहीं रहती क्योंकि हमें पूरा यकीन रहता है कि सुमंती ऐसी गऊ है कि वो कभी झगड़े की पहल नहीं कर सकती। मजे की बात ये कि हर बार ऐसा होता भी नहीं था। लेकिन परशेप्शन यानी धराणा ऐसी चीज है जो बन गई सो बन गई। दरअसल धारणा और कुछ नहीं बल्कि बाहरी दुनिया और आपकी आंतरिक दुनिया का प्रतिबिंब है। हर इंसान के बारे में हम अपने मन में एक प्रतिबिंब बना लेते हैं जो लंबे वक्त तक एक सी बनी रहने के कारण धारणा का रूप ले लेती है। 







 शिमला में हमारे सभी जानने वालों को पता है कि वह हमारी बेटी है। जब कभी कोई उससे सवाल करता है कि ....लेकिन शक्ल तो तुम्हारी उनके घर के लोगों से मिलती नहीं तो वो बेसाख्ता बोल देती है.."शकल नहीं मिलती तो मैं क्या करूं।" 22 पार करते ही हमें उसके विवाह की चिन्ता शुरू हो गई जैसे कि हर मां बाप का होती है। हर बाप की ख्वाइश होती है कि वक्त रहते बिटिया का विवाह हो जाए, उसका अपना घरबार हो, उसकी संतान हो। वह सुखी-सुहागन गृहस्थिन बन कर जिन्दगी बसर करे। सच तो ये है कि वह इतनी गुणी है कि उसके लिए हमें अच्छे लड़के की चिन्ता तो कभी रही ही नहीं। हम उसके लिए दो तीन जगह बात चला ही रहे थे कि सुदर्शना सुमंती को शिमला के ही एक युवक ने पसंद कर लिया और मेरी प्रोफेसर पत्नी से सुमंती का सीधे हाथ मांग लिया। दरअसल पत्नी ने एक दो स्थानीय लोगों से कह रखा था कि कोई अच्छा लड़का हो तो बताना। हमारे देश में रिश्ते ऐसे ही खोजे जो हैं। ये बात उस लड़के तक पहुंची तो उसने पत्नी की एक सहयोगी के जरिए उससे विवाह करने की इच्छा जाहिर कर दी। सुमंती को ये थोड़ा अटपटा भी लगा। क्योंकि उस लड़के का कालेज में आना जाना था और उसने कभी कोई ऐसा इशारा नहीं दिया था। और अचानक शादी का प्रस्ताव। और हम बतौर गार्जियन उस लड़के

की शराफत पर फिदा थे। उसने अपने बड़े भाई को रिश्ता मांगने हमारे घर भेजा। हिंदुओं में अमूमन ये परंपरा नहीं है। इस्लाम में ये अच्छी रिवायत है कि लड़केवाले लड़की के घर उसका हाथ मांगने जाते हैं। ये वाकई प्रभावित करने वाली बात थी कि इससे पहले हम उनके घर जाते वे हमारे घर आए।  बात बढ़ी और कई पर्वत पार कर उस युवक का घरबार देखने हम निकल पड़े। हरी पहाडी वादियों के बीच दूर से उसका गांव था। पहले उतराई फिर चढ़ाई।


उस परिवार ने हम सबका इतनी श्रद्धा-भक्ति से स्वागत किया कि सच में आंखें भर आईं। उसके भावी ससुर को हिमाचली टोपी पहना कर मैंने उनके प्रति अपना सम्मान प्रकट किया। सुमंती की किस्मत के लिए ईश्वर को धन्यवाद देने पर मजबूर हो गया। इस महीने के अंत में उसकी शादी की तारीख तय हो गई है। आप सब मित्र भी सुमंती के सुखमय वैवाहिक जीवन के लिए दुआ कीजिए।


 

 

 

          

3 comments:

Anonymous said...

बहुत आनंदप्रद और प्रेरक आलेख !आप सब को बधाई और हार्दिक शुभकामनाएं !

राकेश ओझा said...

बहुत आनंदप्रद और प्रेरक आलेख ! आप सब को बधाई और हार्दिक शुभकामनाएं !

Anonymous said...

सर आपकीं क़लम ऐसा लिखती है जिससे भाव आंखों के सामने नज़र आने लगते है यह आपकीं बेहतर मानवता की सोच को दर्शाती है , आप सदैव खुश रहे और भगवान आपको सारी कायनात की खुशियों से नवाज़े ।आप जैसी सोच वाले लोग बहुत कम है