दयाशंकर शुक्ल सागर

Tuesday, January 31, 2023

कन्यादान-3 पहाड़ी गांव का यादगार विवाह उत्सव





 

कन्यादान-3


थोड़ी
ही देर में हम चौलोक में थे। यहां से देशराज का गांव ऊपर पहाड़ पर साफ दिखता है। गांव तक सड़क नहीं बनी इसलिए हमें अपनी कार यही खड़ी करके आगे पैदल बढ़ना होगा। धाम में आए कुछ मेहमानों की कारें मोटर साइकिलें वहां पहले से पार्क थीं। इसके आगे पहाड़ पर पैदल करीब दो किलोमीटर सीधी चढ़ाई थी। पहाड़ चढ़ना हमेशा कठिन होता है और उतरना हमेशा आसान। चढ़ना इसलिए कठिन होता है क्योंकि हर अगला कदम बढ़ाते वक्त आप पिछले कई कदमों, अपनी फूली हुई सांसों का वजन और थकान लिए आगे बढ़ते हैं। इस चढ़ाई ने पिछली दफा मुझे थका दिया था। लेकिन मैं जानता हूं इस बार ऐसा नहीं होगा। छोटे कदम और रफ्तार धीमी। केवल नीचे जमीन को देखिए जहां अगला कदम रखना है। ऊपर मत देखिए कि अभी कितना और चढ़ना है। हर तीस कदम के बाद रुक कर थोड़ा सुस्ता लीजिए फिर आगे बढ़िए। और मंजिल बैंड बाजे के साथ आपका इंतजार करती मिलेगी। कम से कम हमारे साथ तो ऐसा ही हुआ। सुमंति के ससुराल वालों ने हमारे स्वागत के लिए बैँडबाजे का इंतजाम किया था। बेशक ये मंडियानी शादी की परम्परा होगी वर्ना लड़की वालों की भला कौन इतनी आवभगत करता है। बैंडवाले हमें देसराज के घर के दरवाजे तक ले गए। देसराज के नब्बे वर्ष के पिता ने हार पहना

और गले लगाकर स्वागत किया। घर की महिलाओं ने पत्नी और बेटी को टीका लगाया। घर के प्रांगण में उत्सव चल रहा था। डीजे के पहाड़ी गीतों पर युवा लड़के लड़कियां नाटी डाल रह थे। नाटी मूलतः किन्नौर-रामपुर यानी अपर शिमला का नृत्य है लेकिन पूरा हिमाचल इसकी धुनों पर नाचता है। बूढ़े जवान सब एक खास अंदाज में हाथों और ऊंगलियो को नचाते हुए नीचे से ऊपर की तरफ हिलते हैं। ये नृत्य धीमी गति से शुरू होता है फिर इसकी रफ्तार तेज होती जाती है। ये नृत्य समूह में होता है। स्वच्छंदता और स्वभाविकता इस नृत्य की विशेषता है। इसलिए कोई भी इस नृत्य में शामिल हो सका है।   हम नीचे कमरे की तरफ चले गए जहां चाय नाश्ते का इंतजाम था। मैंने आग्रह पूर्वक कहा कि हमारे तरफ कन्यादान के बाद लड़की के घर पानी तक नहीं पिया जाता। देसराज के सबसे बड़े भाई मोती राम ने कहा कि ये संभव नहीं है। बिना धाम खाए हम आपको जाने नहीं देंगे। उन्होंने बताया कि उनकी तरफ ऐसी कोई परंपरा नहीं है लेकिन शिमला वाले इस परंपरा को निभाते हैं। हम पास के गांव के एक पंड़ितजी को बुलाते हैं। वह एक छोटी सी पूजा करेंगे उसके बाद आप हमारे यहां खानापीना कर सकते हैं। दस मिनट में पास के गांव के पंड़ितजी गए। मुझे मालूम चला इन्हीं पंड़ित जी ने चार दिन पहले यहां इसके लिए पूजा की थी कि शादी के दिन मौसम खराब हो। सच में तीन दिन के बारिश के बाद अगले दो दिन मौसम बहुत साफ रहा।  उन्होंने घर के कुलदेवी स्थान पर पूजा कराई।  जिसमें कुलदेवी से बेटी के घर में खानपान की इजाजत ली गई। इजाजत मिलने के बाद अगला चरण यह था कि लड़की के माता पिता घर के सभी सदस्यों को धाम में बना खाना प्रतीकात्मक तौर पर खिलाएं। सब कतार में बैठ गए। हमने उन्हें पत्तल पर थोड़े से चावल और एक सब्जी परोसी। फिर उनका हाथ धुला कर उन्हें पानी पिलाया। उनके लिए लाए गए उपहार बांटे। मजे की बात यह सारा खटकर्म खुद यहां खाने के लिए क्वालीफाई होने का था। घर के नीचे एक सीढ़ीदार खेत में पीतल या शायद फूल के बड़ी-बड़ी हांडियों में धाम के लिए खाना पक रहा था। यह हंडियां आसपास के गांवों से मंगाई गई थी। पहाड़ी व्यंज्जनों की सुगंध मझे वहां खींच ले गई। मैंने रसोई का मुआयना किया। एक हांडी में राजमा, दूसरी में मटर पनीर, तीसरी में खट्टी मीठी  कद्दू की दाल, चौथे हांडी में कढ़ी। एक कढ़ाई में मीठा बना रखा था। चाशनी में डूबी रंग बिरंगी बूंदियां जिसमें गरी के टुकड़े और सूखे पड़े मेवे थे। उबले हुए चावल अलग बने रखे थे। पहाड़ की चढ़ाई ने भूख पहले से बढ़ा रखी थी। और इन लजीज व्यंज्जनों की खुशबू ने तो कन्यादान के बाद बेटी के घर खाना खाने के संकल्प को हिला दिया था। हालांकि  पंडित जी पूजा कराके हमें सभी दोषों से मुक्त करा चुके थे।   नीचे रसाई के साथ सीढ़ीदार खेत में नीचे कतार में बैठे कई गांव के मेहमान धाम का लुत्फ उठा रहे थे। ऊपर डीजे की धुन पर नाटी जारी थी। वैवाहिक उत्सव तीसरे दिन भी जारी था। देसराज ने बताया ये आज भी देर रात तक जारी रहेगा। शहरों में मैंने कितनी शादियां देखीं। कितना बनावटीपन और दिखावा होता है उनमें इसका अहसास आज हुआ। ये छोटा सा गरीब पहाड़ी किसान परिवार है। लेकिन इनका जीवन उत्सवधर्मिता से भरापुरा है। किसी तरह की आकांक्षा, अहंकार और ही कोई पाखंड। सादगी और सहजता जैसे इन पहाडों ने इन्हें विरासत में दी है। चमक दमक से भरे बड़े शहरों की भीड़ में हम अपना ही चेहरा ढूंढते फिरते हैं। उदास शक्लों और फीकी मुस्कानों के साथ हमने जीना सीख लिया है। रुटीन जिन्दगी से अब हम बोर नहीं होते बल्कि उसे अपनी किस्मत का हिस्सा बना बैठे हैं। प्रकृति, पहाड़, जंगल, समंदर और झरने की आवाजें जरा सा भी अभिभूत नहीं करतीं। ये सब इस बात से तय होता है कि आप कैसा जीवन जीना चाहते हैं। हर जिंदगी का एक अधिकतम समय होता है। नरिया राम जैसे 90 के पड़ाव तक पहुंचना सबके लिए आसान नहीं। जीवन की उस अधिकतम सीमा के आगे आप एक सांस भी फालतू नहीं ले सकते। तो आपकों अपने की जीवन की प्राथमिकताएं तय करनी होंगी। खूब पैसा कमाना, खाना पीना और ऐश की जिन्दगी जीना। एक बेहतर विकल्प हो सकता है। लेकिन क्या ये सब आपको आत्मिक शांति दे रहा है? असल सवाल ये है? आप कहेंगे ये आत्मिक शांति क्या बला है? मैं कहूंगा किसी मायूस चेहरे पर मुस्कान लाइए। मांगिए मत सिर्फ बांटिए। 90 साल के नरिया राम से प्रेरणा लीजिए‌जिन्होंने मुझे सख्ती से कहा था कि हमें सिर्फ दो जोड़े में लाडी चाहिए। आर उन्होंने हमें अपना बेटा दे दिया। इसलिए मांगिए मत सिर्फ बांटिए। जो कुछ भी आपके पास है जो आपने अपने लिए सहेज कर रखा है। धन, सम्पत्ति, ज्ञान, खुशी, हंसी, मुस्कान और ढेर सारा सुख। सब अपने अंत से पहले बांट दीजिए। क्योंकि आप बखूबी जानते हैं अंत में आपको खाली हाथ ही जाना है।

 










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