सुमंति का ब्याह आज सकुशल सम्पन्न हो गया। मेरे मित्र और स्वजन नहीं आ पाए लेकिन अग्नि और विवाह मंडप को चारों ओर से घेरे विशालकाय पर्वत इस ब्रह्म विवाह के साक्षी बने। सुन्नी के इस नवग्रह मंदिर के तमाम देव भी इस बात के गवाह बने कि बेटी को विदा करने के लिए कैसा पहाड़ जैसा कलेजा चाहिए होता है। हिंदू शास्त्र कितनी आसानी से कन्यादान की व्याख्या करते हैं और बताते हैं कि कन्यादान का पुण्य अक्षय और अपरिमेय है। कन्या के शरीर में जितने रोम हैं कन्यादाता पिता उतने सहस्त्र वर्ष रुद्रलोक में निवास करता है। लेकिन शास्त्र कन्यादान के इन आध्यात्मिक और नैतिक फायदे गिनाते वक्त पिता-पुत्री क भावनात्मक संबंधों को तकरीबन भूल जाते हैं। जिस बेटी को हम कितने नाजों से पालते हैं, बड़ा करते हैं, उसे किसी निपट अनजान व्यक्ति के हाथों में सौंप देते हैं। लेकिन ईश्वर ने भी बेटियों को जाने किस मिट्टी का बनाया है इतनी जल्दी नई जगह में रच बस जाती हैं जैसे शर्बत में पानी। इस सादगी भरे उत्साव में मेरे लिए सबसे नई चीज पहाड़ के लोगों की विवाह पद्धति रही। कितने सादे और बेफिक्र बाराती थे। लड़की वालों की तरफ से मैं और मेरा छोटा सा परिवार था। कुछ पुराने परिचितों ने यहां शादी का इंतजाम करने में मदद की थी। दुल्हे देशराज के बुजुर्ग पिता और भाई मोतीराम की सरलता देख मन भर आया। लड़केवालों जैसा कोई भाव नहीं जैसा कि आम तौर पर उत्तर भारत की बारातों में देखने मिलता है। पहाड़ पार करके बारात सुबह करीब छह बजे निकली थी। उनका पूरा गांव विवाह सामारोह में शिरकत करने आया। दो दिन के खराब मौसम के बाद आज अच्छी धूप खिली थी। सब मस्त मगन बैंड की धुन पर नाटी डाल रहे है। नाटी यहां का पारंपरिक नृत्य है जिसमें महिला पुरुष सब हिस्सा लेते हैं। यहां प्रतिभोज को धाम कहते हैं। धाम में तमाम तरह के पहाड़ी व्यंज्जन बनते हैं। हम सबने इन स्वादिष्ट व्यंज्जनों को लुत्फ उठाया।
एक वक्त आता है जब आप सिर्फ शब्दों के बाजीगर बन जाते हैं. आप एक मायने में कायर और ढोंगी हो जाते हैं. आप नि:शब्द रहना चाहते हैं पर उसके लिए भी शब्द तलाशते हैं. चेतन और अवचेतन मन के किसी कोने में चल रहे इसी अंतर कलह को लेकर हाज़िर है मेरा नया ब्लॉग-शब्द नि:शब्द
Tuesday, January 31, 2023
कन्यादान 1 विदा हो गई प्यारी बिटिया
शाम को विदाई का वक्त आया जो हमारे पूरे परिवार के लिए एक मुश्किल घड़ी थी। कुछ रिश्ते खून के नहीं होते लेकिन उससे कहीं गहरे होते हैं। सुमंति से रिश्ता भी ऐसा था। वह सुबह से ही बहुत खुश थी। खुशी उसके चेहरे पर अलग से चमक रही थी। उसकी हर तस्वीर में उसके आत्मविश्वास की चमक की एक लकीर देखी जा सकती है। लेकिन विदाई केवक्त वो उदास हो गई। इतने सालों में मैंने उसे कभी रोते हुए नहीं देखा। कभी भी नहीं। मेरी छोटी बेटी जब उससे गले लग कर रोने लगी तो उसकी आंखें भर आईं। पर वो रोई नहीं। आंसू की कुछ बूंदे उसकी पलकों से ढलकते हुए उसके गालों पर आकर ठहर गईं- फिर धूप की हजारवीं किरण के साथ वो किसी मोती की सी चमक उठी। सदा खुश रहना सुमंति।
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