दयाशंकर शुक्ल सागर

Tuesday, January 31, 2023

कन्यादान-2 एक रोमांचक सफर

 

कन्यादान 2


नरिया राम नाम हैं उनका। चेहरे की झुरियां गिन कर आप अंदाजा लगा सकते हैं कि उनकी उम्र 90 साल की ही होगी और पत्नी की उम्र 85 साल। इस वयोवृद्ध दंपती के विवाह के कोई सत्तर साल हो गए। 70 साल के सफल दांपत्य जीवन में दोनों आज भी उतने ही फुर्तीले और जोश से भरे हैं। इस दंपती की सात संतानें हैं। देसराज सबसे छोटा है और अब उसकी भी शादी हो गई। तत्तापानी से बीस किलोमीटर ऊपर सबसे ऊंची पहाड़ी पर इनका छोटा-सा गांव है। कुछ घर मिट्टी और स्लेट की खपरैल के बने हैं और कुछ पक्के साफ सुथरे मकान। घर के नीचे दूर तक सीढ़ीदार खेत हैं जिनमें ये लोग मौसमी सब्जियां उगाते हैं। घर में एक जर्सी गाय है और कुछ बकरियां। संयुक्त परिवार है और घर में साझा चूल्हा जलता है। घर में तीन दिन से शादी का उत्सव चल रहा है। विदाई के वक्त परिवार का विशष आग्रह था कि कल हम उनके घर आएं। घर में धाम का आयोजन है और जिसमें आस पास करीब पचास गांवों के लोग मेहमान होंगे। नई रिश्तेदारी है और आग्रह इतना आत्मीय था कि मना करते नहीं बना। सोचा दोपहर एक दो घंटे के लिए चले जाएं फिर सांझ तक शिमला वापसी हो जाएगी। तत्तापानी से आगे टाटा नेक्सान से गोल गोल पहाड़ की ऊंचाई नापते हम ऊपर आकाश की तरफ बढ़ते जा रहे थे।

चटकली धूप और ठंडी हवा में एक अजीब सा नशा था। रास्ता भटक गए। सड़क के किनारे एक मास्टर जी मिल गए जिन्होंने बताया कि आपके पास दो विकल्प हैं। एक बीस किलोमीटर पहाड़ पर वापस लौटिए या आगे इसी सड़क पर आठ किलोमीटर आगे जाकर नीचे उतरिए। ये शार्टकट रास्ता है। बस एक दिक्कत है कि पहाड़ से उतरते वक्त आपको पक्की सड़क नहीं मिलेगी। कच्ची सड़क पर गाड़ी चला सकते हों तो यही रास्ता आपको जल्द उस गांव तक पहुंच देगा। उन्होंने एक कागज पर झट से पूरे रास्ते का नक्शा खींच दिया। दूसरा विकल्प ज्यादा रोमांचक लगा। पीछे लौटने से आगे बढ़ना हमेशा बेहतर विकल्प होता है। भले आगे चुनौतियों का पहाड़ हो। आठ किलोमीटर तक पहाड़ पर नई नई बनी पक्की सड़क पर आगे बढ़ते चले गए। चारों ओर विशालकाय पहाड़, हरियाली और दो दिनकी बारिश के बाद चटकदार धूप। भीड़ शोर। सिर्फ पहाडों की शांति। इतना सुंदर और मोहक पहाडों का सफर पहले कभी नहीं किया था। आठ किलोमीटर बाद एक कच्चा रास्ता नीचे की तरफ कटा था। रास्ता इतना सकरा की उस पर एक मोटरआसानी से चल सकती है बशर्ते ड्राइवर पारांगत हो। क्योंकि इस सकरे रास्ते के एक तरह हजारों फीट गहरी खाई थी। आगे रास्ता कहां और सकरा हो जाए कहना मुश्किल है। दूर दूर तक कोई इंसान जात नहीं जिससे उस रास्ते के बारे में पूछा जा सके। कार रोक कर खड़ा हो गया। चौदह साल की छोटी बिटिया और पत्नी ने कहा कि लौट चल‌ए सीधे रास्ते से ही चलते हैं। थोड़ी देर होगी तो कोई बात नहीं। मेरा दिमाग रास्ते की लंबाई और जोखिम के बीच गुणा भाग करने लगा। मैं अपने आत्मविश्वास को टटोलने लगा। वह अपनी जगह मजबूत से डटा था। जरा भी हिला नहीं। दूर एक चरवाहा अपने भेड़ बकरियां चराते दिखा। मैंने जोर आवाज में उससे रास्ते के बारे में पूछने लगा। उसने बताया कि इस रास्ते पर सड़क बनाने वाले ट्रक भी आते जाते हैं। बस मैंने कार उस कच्चे रास्ते पर उतार दी। एकाग्रता के लिए कार में चल रहा म्यूजिक बंद कर दिया। कार के अंदर और बाहर भयानक सन्नाटा था। माहौल सामान्य करने के लिए मैंने अपनी बिटिया से वही कहा जो हमेशा कहता था-"डर के आगे...."वह आगे वाक्य पूरा करती- "जीत है।" लेकिन इस बार उसने बड़ी मासूमियत से कहा-"डर के आगे और डर है पापा।" मैं हंसा। ये जोखिम मैंने उस छोटी बच्ची को अंदर से मजबूत बनाने के लिए लिया था। वह सीखे कि चुनौतियों से घबरा वापस लौटने के बजाए आगे कैसे बढ़ा जाए। ये ऐसा एडवेंचेर था जिसके बारे में  मैं सिर्फ किताबों में पढ़ा और टीवी में देखा करता था। सड़क तीखी ढलानदार और घुमादार थी। गनीमत थी कि खाई केवल एक तरफ थी। दूसरी और पहाड़ था। मुझे उस पहाड़ के किनारे किनारे पहियों से बनी लीक पर आगे बढ़ना था। करीब चार किलोमीटर का कच्चा रास्ता पार करके हम फिर पक्की सड़क पर गए। सबने राहत की सांस ली। .

....जारी

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