दयाशंकर शुक्ल सागर

Tuesday, May 22, 2018

राजनीतिक दगाबाजी से बिगड़ते चले गए कश्मीर के हालात


कश्मीर लाइव रिपोर्ट-5




अनंतनाग। अचानक क्या हुआ कि हालात इस कदर बिगड़ गए? इधर दो साल में घाटी में आतंकी गतिविधियां एकदम से बढ़ गईं। पाकिस्तानी संगठन लश्कर-ए-तैय्यबा की हमेशा से कोशिश थी कि कश्मीर में आतंक की कमान स्थानीय हाथों में हो। उन्होंने कश्मीरी युवाओं को बहका कर अपने संगठन में शामिल कर लिया। आपरेशन ऑल आउट की कार्रवाई में सबसे ज्यादा कश्मीरी आतंकी शिकार हुए। इसका सबसे डरावना असर ये हुआ कि लोगों ने सड़क पत्थर उठा लिए। इस सबके लिए नेशनल कांफ्रेंस महबूबा सरकार को जिम्मेदार ठहरा रही है, जबकि पीपल डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) का कहना है कि इस पत्थरबाजी के पीछे नेशनल कांफ्रेंस हैं, और कोई नहीं।
अनंतनाग कस्बे की एक पुरानी कोठी में होमशाली बुग से नेकां विधायक अब्दुल माजिद लारमी खिड़की के किनारे कुर्सी पर बाकायदा पालथी मार के बैठे हैं।  उनके घर पर न कोई सुरक्षा गारद है, न उनके नाम का कोई बोर्ड। आमतौर पर दक्षिण कश्मीर मुफ्ती परिवार का इलाका माना जाता है। महबूबा का विधानसभा क्षेत्र अनंतनाग सर्वाधिक प्रभावित जिले शोपियां और पुलवामा से सटा है। महबूबा इस पूरे इलाके से लोकसभा चुनाव जीत चुकी हैं। फिर भी लारमी ने उनके गढ़ में सेंध लगाई।
लारमी कहते हैं कि, ‘विधानसभा चुनाव से पहले महबूबा की पार्टी ने भाजपा के विरोध की सारी हदें पार कर दी थीं। जनता से वादा किया था कि वह भाजपा को जवाहर टनल पार नहीं करने देगी। चुनाव के बाद वही पार्टी भाजपा से गठबंधन कर उसे ससम्मान श्रीनगर तक ले आई। ऐसा पहली बार हुआ जब जम्मू कश्मीर की हुकूमत भाजपा के हाथ में आई। ये वोटरों के लिए एक बड़ा धोखा था।’
लारमी कहते हैं रियासत में पत्थरबाजी पीडीपी की देन है।  जब उमर अब्दुल्ला की सरकार थी तो पब्लिक को पत्थरबाजी पीडीपी ने ही सिखाई थी। हमने लारमी से पूछा कि ‘पीडीपी कहती है कि अब आप के लोग पत्थरबाजी कर रहे हैं ताकि सरकार बदनाम हो, अस्थिर हो।’ जवाब में वे कहते हैं. ‘ये सफेद झूठ है।’ काफी देर इधर-उधर की बातें होती रहीं। हमने उनसे फिर पूछा. ‘आप अपने दिल पर हाथ रख कर कह सकते हैं कि इस पत्थरबाजी में आपका कोई हाथ नहीं।’ लारमी बोले, ‘दिल पे नहीं मैं कुरान पे हाथ रख कर कह सकता हूं कि इस पत्थरबाजी के पीछे हमारा कोई हाथ नहीं है। आप इन्क्वायरी करा लीजिए, अगर नेशनल कान्फ्रेंस का नाम आया तो मैं इस पार्टी को अभी छोड़ दूंगा।’

पीडीपी भी इस बात से इंकार नहीं करती कि घाटी के लोग भाजपा से हाथ मिलाने से नाराज हैं। कश्मीर के पीडीपी प्रवक्ता रफी मीर कहते हैं कि ये सच है कि 2014 के चुनाव में हमने भाजपा के खिलाफ  वोट मांगा था। लेकिन हालात ऐसे बन गए कि हमें भाजपा के साथ सरकार बनानी पड़ी। हमने जम्मू के जनादेश का सम्मान किया ताकि जम्मू-कश्मीर में खाई और न बढ़े। फिर दिल्ली में मोदी की सरकार थी। हमें लगा गठबंधन हुआ तो हम कश्मीर का मसला सुलझा लेंगे। फिर दिक्कत कहां है?  इस सवाल के जवाब में मीर कहते हैं कि इन सब चीजों में वक्त लगता है।

मोदी उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे: भट
गुस्से का असली शिकार शोपियां के पीडीपी विधायक मोहम्मद यूसुफ  भट को बनना पड़ा।  हाल में ही उनके घर ग्रेनेड से हमला हुआ। भट कहते हैं कि हमने इस उम्मीद से मोदी का साथ दिया था कि वह कश्मीर के मसले को सुलझाएंगे। पर ये नहीं हुआ। शोपियां के जो लोग मेरे घर की इबादत करते थे, उन्होंने मेरा घर जला दिया।  ये राजनीतिक मसला है, परवो इसे लॉ एंड आर्डर का मसला मानते हैं। उन्हें पाक से बात करनी चाहिए। हुर्रियत नेताओं से बात कर मसला सुलझाना चाहिए। हमने पूछा, ‘लेकिन आपकी नेता महबूबा कहती हैं कि मोदी जी उनकी किसी बात से इंकार नहीं करते? इस पर भट बोले-फिर वे पाकिस्तान से बात क्यों नहीं कर रहे? जबकि महबूबा कई बार ये बात उठा चुकी हैं। पर पाकिस्तान भी तो बात करने को तैयार हो? इस सवाल का भट कोई जवाब नहीं दे पाए।



1 comment:

nantalelaatsch said...

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