दयाशंकर शुक्ल सागर

Tuesday, May 19, 2020

एक इंसान जो तितलियों के लिए घर बनाता है



जैव विविधता के प्रयोग -2


ऐसा आदमी सच में आपको अजीब लगेगा जो दीमक और चूहों के लिए घर बनाता हो। या तितलियों को अपने फार्म हाउस में रहने का निमंत्रण देता हो और मधु मक्खियों को अपने खेतों में बुलाता हो ताकि उनके परागण से खेतों में उसकी फसलें लहलहा उठें। आप खामोशी से कितने बड़े काम कर गुजरते हैं। न प्रचार की लालसा न प्रसिद्ध की अभिलाषा। बस एक निष्काम कर्मयोगी की तरह प्रकृति से अंतरसंबंध बनाने की साधना। Akhilesh Kumar Mishra जी का फार्म हाउस उनके जिस पैतृक खेतों के बीच बना उसे गांव वाले भुतहा कहते थे। पंडितजी के पिता खुद दारोगा थे और उनका बेटा भी जब पुलिस में चला गया तो गांव वालों ने सोचा कि अब ये परिवार गांव लौटने वाला नहीं। शहरों में नौकरी करने वालों के साथ प्रायः ऐसी ही धारणा जुड़ी हुई है। जमीन से उजड़े लोग कहां वापस लौटते हैं। शहर उनको निगल लेता है या उन्हें अपना गुलाम बना लेता है। मजदूर सिर्फ वे नहीं जो ईंट सिमेंट उठाते हैं। सफेद कमीज पहने भी बहुत से मजदूर हैं जो भले मरसडीज से चलते हैं लेकिन दफ्तरों में मालिकों की गुलामी करते हैं। भले गांव में उनके बाप दादाओं की सैकडों एकड़ जमीन परती यानी बेकार पड़ी है। पंडित जी अपने बाप दादाओं की इस जमीन को 'ईश्वर का उपहार' मानते हैं। जब वे यहां आए तो उन्होंने देखा कि उनके बागों के पेडों के तनों पर दीमक लग गए हैं। उनकी जडों में खेतों में चूहों ने बिल बना लिए थे। ठीक वैसे ही जैसे मेरे लखनऊ के घर पर लगे आम्रपाली पेड़ पर दीमक लग गए थे। और किसी की सलाह पर मैंने पेड़ के तने पर कीटनाशक छिड़क कर कितनी आसानी से उन दीमकों से निजात पा ली थी। लेकिन मिश्रजी ने ऐसा नहीं किया। दरअसल दीमक अपने भोजन के लिए सूखी चीजों पर आक्रमण करते हैं और लकड़ी खोखली होने लगती है। लेकिन उन्होंने दीमकों और चूहों के खाने के लिए अलग ब्लाक बना दिए। थोड़ी सी सूखी घास और मिट्टी का ढेर। फिर मदर टरमाइट वहां आ गई। इनकी कालोनी अरबों खरबों की आबादी वाली होती है। और देखते देखते असंख्य दीमकों का परिवार वहां बस गया। ऐसे ही फंफूद हैं। वे भी एक तरह से कीट है जो प्रायः 80 फीसदी फसलों को नष्ट कर देते हैं। अक्सर किसान इन फफूंद को कीटनाशकों से इन्हें खत्म कर देते हैं। लेकिन पंडितजी ऐसा नहीं करते। वे इन्हें भी बचाते हैं। इसी को हम जैव विविधता या बायो डायवरसिर्टी कहते हैं। यानी प्रकृति को नष्ट किए बिना उसके साथ रहना। और इसके पीछे एक रहस्यमय विज्ञान है। खेतों में इन दीमकों, फफूंदियों का रहना बेहद जरूरी है। दरअसल हमारे खेतों में दो तरह के कीटाणु होते हैं। मित्र कीट और शत्रु कीट।  मित्र कीट मिट्टी के कल्चर को क्रिएट करते हैं। वे शत्रु कीट से लड़ते हैं। उन्हें विकसित नहीं होने देते। जब हम खेतों में कीटनाशक का इस्तेमाल करते हैं तो वे मित्र कीटों को भी मार डालते हैं।     
 उनके बाग में फूल तो खिल गए। लेकिन उस बियाबान इलाके में तितलियां कहां से आएं? तो उन्होंने अपनी बगियां में ऐसे फूल लगाए जिनसे तितलियां प्यार करती हैं। कहते हैं तितलियों का दिमाग़ बहुत तेज़ होता है। देखने, सूंघने, स्वाद चखने व उड़ने के अलावा जगह को पहचानने की इनमें अद्भुत क्षमता होती है। दिन के समय जब यह एक फूल से दूसरे फूल पर उड़ती है और मधुपान करती है तब इसके रंग-बिरंगे पंख बाहर दिखाई पड़ते हैं। पंडितजी ठीक इसी वक्त उनकी तस्वीरें अपने मोबाइल कैमरे में कैद कर लेते हैं। वयस्क होने पर ये तितलियां आमतौर पर ये उस पौधे या पेड़ के तने पर वापस आती हैं, जहां इन्होंने अपना शुरूआती वक्त बिताया होता है। इसी तरह 'हनी लविंग फ्लावर' का लालच देकर वे मधु मक्खियों को अपने यहां ले आए। फूल तो लगा लिए अब इन मधु मक्खियां  रोका कैसे जाए? उन्होंने इसका भी अध्ययन किया। दरअसल मधु मक्खियां बहुत लम्बी लम्बी यात्राएं करती हैं। इससे उनके शरीर का तापमान बहुत बढ़ जाता है। इसके लिए उन्होंने फार्म हाउस में एक छोटा सा तालाब बनाया।
तालाब के ऊपर उड़ कर मधु मक्खियां पानी के वाष्प से ठंडक पाती हैं और उनका तापमान सामान्य हो जाता है। ऐसी जगह रहना कौन नहीं चाहेगा जहां उनके लिए हर सुविधा मौजूद हो। सुबह ध्यान के वक्त ये तितलियां और मधु मक्खियां उनके इर्द गिर्द होती हैं। पंडितजी कहते हैं कुछ मेरी आंतरिक प्रज्ञा और कुछ इनकी आंतरिक प्रज्ञा मिलकर हम दोनों को शहर के कोलाहल से दूर इस शांत वातावरण में एक साथ रहने पर मजबूर करती है। अब हम दोनों एक दूसरे को नहीं छोड़ सकते। और वे अपनी श्रीमतीजी की तरफ देखकर मुस्कुरा कर कहते हैं-'और इनको इलाहाबाद जाना है तो जाएं।'