दयाशंकर शुक्ल सागर

Thursday, August 29, 2013

अमेरिका में कोई रिटायर नहीं होता


मेरी अमेरिका डायरी-2

 
 
अमेरिका के बाल्टीमोर शहर का हवाईअड्डा दुनिया के खूबसूरत एयरपोर्ट में से एक है। लाल कारपिट के गलियारे के दोनों तरफ तमाम रेस्त्रां और बॉर। विशालकाय कांच की दीवारों के उस पार रनवे पर धूप में खड़े तमाम हवाई जहाज। हवाई अड्डे से जॉन्स हापकिंस यूनिवर्सिटी कैम्पस का रास्ता केवल आधे घंटे का है। यूनिवर्सिटी जाने के लिए हम पांच लोगों ने एक प्री-पेड शटल कैब एयरपोर्ट से ही बुक करा ली है। सभी अपना भारी भरकम सामान लेकर सड़क के किनारे खड़ी शटल तक पहुंचते हैं। शटल एक सिक्स सीटर टैक्सी कैब की तरह है।
सामान रखने के लिए शटल के पीछे डिग्गी एक साठ पार की बुजुर्ग महिला खोलती है। आसमानी टी शर्ट पर नीली पतलून पहनी यह महिला तीस किलों के एयरबैग उठाकर डिग्गी में रख देती है। एक दो नहीं आठ वजनी लगेज। महिला की मदद करने के लिए आगे बढ़ता हूं तो गुस्से से देखती है और फिर अपने काम में जुट जाती है। हम सब शटल की सीटों पर बैठ जाते हैं। वह महिला भी आकर ड्राइविंग सीट पर बैठ जाती है।अरे, तो यह हमारी ड्राइवर भी हैं।ड्राइविंग सीट के पास खाली जगह में उस महिला ड्राइवर का पर्स, लैपटाप, मोबाइल फोन, पानी का थर्मस रखा हुआ है। वह अंग्रेजी में सभी यात्रियों को बताती है कि उनका गंतव्य कितनी दूर है और शटल कितनी देर में वहां पहुंच जाएगी। वह बताती है कि इस बीच कोई भी यात्री पानी या अन्य जरूरतों के बारे में बता सकता है। वह निर्देश देती है कि सभी यात्री अपनी सीट बैल्ट बांध लें। अमेरिका में कोई रिटायर नहीं होता।
कंटीनेटल एयरवेज के जिस जहाज से हम आए उसकी सारी एयर होस्टेस 50 पार की थी। एक दो तो 60 साल के करीब की होगी। लेकिन सब चुस्त दुरूस्त। युवा परिचायिकाओं की तरह सजी धजी। अपने ड्यूटी के प्रति सचेत सजग। न्यू दिल्ली से न्यू जर्सी तक का हवाई सफर 15 घंटे का था। हम रात 11 बजे दिल्ली से उड़े और अगले दिन सुबह पांच बजे न्यू जर्सी उतरे। उस वक्त भारत में शाम के सात बज गए थे। यानी वह रात हमारे लिए 15 घंटे की थी। प्लेन में जब सारे यात्री सो रहे थे तो बुजुर्ग हवाई परिचायिकाएं जहाज के पीछे कॉफी की चुस्कियों के साथ गपशप कर रही थीं। एक एयरहोस्टेस तो सोए हुए यात्रियों के सरके हुए कम्बल दुरूस्त कर रही थी।
शटल ड्राइव कर रही उस बुजुर्ग महिला ने बताया कि बाल्टीमोर को अमेरिका का महानतम शहर कहा जाता है। जगह-जगह ग्रेटेस्ट सिटी इन अमेरिकालिखी तख्तियां इसकी तस्दीक कर रही हैं। बाद में पता चला यह इस शहर का अधिकृत सूत्र वाक्य भी है। हवाई जहाज जब लैंड कर रहा था तो ऊपर आसमान पर लगा था जैसे हम किसी हरे भरे कानन वन में अपना विमान उतार रहे हैं। साफ सुथरी चौड़ी सड़कें। उनके दोनों ओर हरे भरे पेड़। ऊंची पुरानी इमारतें जिनकी दीवारों पर खास तरह की शिल्पकारी की गई है। सेंटर स्ट्रीट पर शहर की नई इमारतों के बीच 150 साल पुराना चर्च अपनी खास तरह की मौजूदगी दर्ज कराता है। उसके इर्द गिर्द सूखे हुए पेड़ पुराने अमेरिका के संघर्ष और बलिदान की महान गाथाओं और स्मृतियों को अपने भीतर समेटे हुए हैं।
मैरीलैंड राज्य के इस खूबसूरत शहर में खूबसूरत इमारतों की कमी नहीं। लेकिन जान्स हापकिंस यूनीवर्सिटी का कैम्पस शहर के बाहर है। 8 लेन सड़क पर कारें दौड़ रही हैं। बेशुमार कारें। हर तरह की कारें। हर मॉडल की। सड़कों के किनारे आबादी के बराबर है। पूरे शहर की आबादी आठ लाख से कम है इसलिए हर चीज साफ सुथरी और व्यवस्थित है। शटल कैब लाल ईंटों से बने एक नए शहर में दाखिल होती है। हर इमारत खास तरह के पतले ईंटों से बनी है ये ईंटें लखनऊ की लाखौरी ईंटों की याद दिलाती हैं। शटल ऐसी ही लाल ईंटों से निर्मित एक बड़ी इमारत के सामने आकर रुक जाती है।
चार्ल् कामन्स के नाम की यह ऊंची इमारत हमारा पहला पड़ाव है। वह ड्राइवर तेजी से उतरती है और डिग्गी के अंदर से यात्रियों का सामान उतनी ही फुर्ती से उतारने लगती है। हम सब उस वृद्ध किन्तु सिद्धहस्त महिला के कौशल को देखकर हतप्रभ हैं। हमारे चेहरे देखकर उसके होठों पर एक हल्की सी मुस्कुराहट आती है। वह कहती है-हमारा देश दुनिया का सबसे ताकतवर मुल्क है, वह इसलिए कि हम कभी थकते नहीं। हमें कोई रिटायर नहीं कर सकता जब तक हम खुद रिटायर होना चाहें। उसके चेहरे की त्वचा में पड़ चुकी उम्र की तमाम गहरी सिलवटों के बीच उसका आत्मगौरव साफ दमकने लगता है। यह अमेरिका है। तमाम बुराइयों के बावजूद आप उनसे अभिभूत हुए बिना नहीं रह सकते।

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