दयाशंकर शुक्ल सागर

Thursday, August 29, 2013

एक पण्डित का रोज़ा


 इलाहबाद मेडिकल कालेज के मेरे एक दोस्त प्रोफ़ेसर तारिक ने आज मुझे रोज़ा अफ़्तार के लिए बुलाया है. मैंने उनसे कल साफ़ कह दिया कि मेरी नज़र में बिना रोज़ा रखे अफ्तारी गुनाह है। सो आज मैं रोज़े से हूं. कल रात 3 बजे उठ कर खूब सारा पानी पी लिया था। मुझे बताया गया था की सहरी यानी सुबह करीब 4 बजे के बाद, शाम रोजा खोलने तक निराजल व्रत रखना होता है. ये सचमुच मुश्किल काम है. मैंने सुना है बाजवक्...त शैतान इस पवित्र काम में मुश्किलें डालता है. ये सही है. जैसे सहरी के वक्त मैं अपनी बीपी की दवा खाना भूल गया.दोपहर 12 बजे इसका अहसास हुआ. मैं समझ गया ये शैतान की शरारत है . जी में आया की दवा खा लूं. सूखे गले को भी थोड़ी राहत मिलेगी। फिर लगा रोज़ा तो टूट जायेगा। गला और खुश्क हो गया है .दोस्तो से सुनता आया हूं कि रोज़े में गले को राहत देने के लिए आप थूक भी वापस नहीं निगल सकते। बड़ी दिक्कत है. अभी ऑफिस ब्वाय चाय लेकर आया. सिर में दर्द है. जी में आया की चाय तो हो ही सकती है. पर इस ख्याल को तुरंत काबू कर मैंने शैतान पर लानत भेजी।
अभी अंडमान निकोबार में रह रहे मेरे एक दोस्त नासिर का वाट्स अप पर मैसेज आया है . मैसज फ्रेंड्स डे की बधाई का है . ये नया दोस्त कुछ दिन पहले मकाऊ में बना था . मैने उसे तुरंत जवाब दिया-आज मैने रोज़ा रखा है. उसका वापसी में जवाब आया - माशा अल्लाह बधाई हो . सच में ये सन्देश देख कर दिल ख़ुशी से झूम गया. 
अब सोच रहा हूं घर जाकर थोड़ा आराम कर लूं. चेम्बर से बाहर निकला तो देखा एचटी वालों की मेज़ पर पित्ज़े के कई डिब्बे रखे हैं . आफर भी मिला की- सर पित्ज़ा खाइए। मुझे लगा कि ये मासूम सी दिखने वाली लड़की जरुर शैतान की खाला होगी . फिर अपने इस ख्याल पर हंसी आ गई. और सच पूछिए तो उस वक्त यह कहते वक्त बड़ी शान महसूस हुई कि नहीं आज नहीं आज मेरा रोज़ा है.  
जिंदगी में पहली दफ़ा रोज़ा रखा है. वैसे भी मेरे लिए रोज़ा कोई धार्मिक कर्मकांड नहीं . मैं सिर्फ महसूस करना चाहता हूं कि ज़फर,तारिक,नासिर परवेज़ जैसे मेरे सैकड़ो मुस्लिम दोस्त कैसे रोज़ा रखते और खोलते हैं. वे कैसे इतना कठिन व्रत रख कर भी मुस्कुराते रहते हैं. लेकिन क्या सेहत का जोखिम उठा कर मुझे ऐसे प्रयोग करने चहिये. इस्लाम में इसके लिए जरुर कोई रास्ता होगा। क्या मैं कोई किताब पलटूं। या किसी मौलाना को फोन घुमाऊ।या अपने साथी नसीरूदीन से पूछूं। पर उससे क्या पूछूं। वह तो खुद कम्बखत कम्युनिस्ट है. ज़फर से पूछूं पर वो तो गज़ब का मुसलमान है. मोदी के आलावा वो किसी की चिंता नहीं करता। आज कल उसके दो ही शौक हैं जिम और जाम. पर इस तरह के ख्याल दिमाग में बार -बार क्यों आ रहे हैं. सोच रहा हूं कि कहीं शैतान ने अपना काम करना तो शुरू नहीं कर दिया है .वह ऐसे काफिरों की याद दिला कर मुझे बहका रहा है. मैंने इबलिस की दिलचस्प कहानी पढ़ी है. वह एक फ़रिश्ता था जो बाद में शैतान बन गया. खुदा ने जब आदम को बनाया तो सभी फरिश्तो से कहा कि वे आदम का सजदा करें। पर इबलिस ने इनकार कर दिया। कहा-मैं आग से बना हूँ मिट्टी से बने आदम का सजदा क्यों करूं। खुदा के सिवा किसी का सजदा नहीं करूँगा। खुदा ने नाराज़ होकर उसे जन्नत से बहार निकल दिया। तब से शैतान खुदा से नाराज़ हो गया. उसने तय किया की जिस आदम पर खुदा को इतना नाज़ है उसे मैं खुदा के खिलाफ कर दूंगा। उसकी औलाद को उसका हुकूम मानने से रोकूंगा। मुझे लगता है की वह शैतान आज तक हम इंसानों को तमाम बहानो से बहकाने की कोशिश करता है ताकि हम खुदाई फ़र्ज़ से पीछे हट जाएं। पर मैं जानता हूं इबलिस मुझे नहीं बहका सकता। वह कम्बखत मजबूत इरादों से बहुत डरता है.   
तो दोस्तों अब गज़ब की भूख लगी है और हलख सूख रहा है. सिर घूम रहा है. मगरिब की अज़ान होने में अभी काफी वक्त है. अब अफ्तारी का सच में शिद्दत से इंतज़ार है.

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