दयाशंकर शुक्ल सागर

Monday, January 27, 2014

लेक दा जिनेवा के किनारे एक शाम

मेरी यूरोप डायरी-3




रात में पहाड़ों पर बर्फ पड़ी थी और नीचे भी। पहाड़ जिनेवा शहर से बस थोड़ी दूरी पर हैं। उसकी बर्फ से ढकी सफेद चादरें साफ दिखती है। हवा में ठंडक बढ़ गई है। बर्फ के कुछ फाहे अभी तक पेड़ों की टहनियों पर अटके हैं। उन घोसलों पर भी बर्फ जमी है जो स्विट्जरलैंड के लोगों ने अपने पक्षियों के रहने के लिए शाखों पर बनाए हैं। चिड़ियों के ये कृत्रिम घरोंदे बहुत सुंदर हैं।  आज कान्फ्रेंस नहीं थी। सुबह होटल के कमरे से तैयार होकर निकला तो पूरे शहर में हैरतनाक ढंग से सन्नाटा पसरा था। इस सन्नाटे की वजह पूछने पर पता चला संडे़ को पूरा स्विट्जरलैंड बंद रहता है। रेस्त्रां को छोड़कर कोई दुकान नहीं खुलती।
दिन में घूमने के लिए हम ‘लेक दा जिनेवा’ की तरफ आ गए हैं। पूरा जिनेवा शहर इस नीली खूबसूरत झील के किनारे बसा है। शहर में आकर ये विश्व प्रसिद्ध झील बड़ी नजाकत से नदी में तबदील हो जाती है। इस नदी के दोनों तरफ 17वीं व 18वीं सदी की खूबसूरत और विशालकाय इमारतें। हर इमारत यूरोपियी वास्तुशिल्प का एक अद्वितीय नमूना है।
 पाकिस्तान दोस्त डॉ. असलम फुआद साथ हैं। कराची में डब्लूएचओ के लिए काम करते हैं। एक और दोस्त प्रणय भी साथ में हैं जो अक्सर जिनेवा आते रहते हैं। करीब 50 किलोमीटर लम्बी इस झील का कहीं छोर नहीं दिखता। किनारे पक्की सड़क बनी है। झील के समानंतर एक अंतहीन पार्क। झील के किनारे बसे इस पार्क में सबकुछ है। पुरानी खूबसूरत इमारतें, म्यूजियम, मूर्तियां, स्क्लपचर सब कुछ। झील के किनारे एक स्विस महिला की पत्थर की मूर्ति है। जो
 घुटने के बल बैठकर पीछे जिनेवा शहर की ऊंची इमारतों की तरफ देख रही है। उस निर्वस्त्र मूर्ति में जरा भी अश्लीलता नहीं दिखती। कोलम्बिया की दो लड़कियां मूर्ति के साथ अपनी तस्वीरें खिंचवाना चाहती हैं। वह कैमरा आगे बढ़ाते हुए फोटो खींचने का आग्रह करती हैं। उनके कैमरे से उनकी फोटो खीचता हूं। उनमें से एक कहती है- आर यू इंडियन? मेरे ‘हां’ कहने का इंतजार किए बिना वह कहती
 हैं-‘नमस्ते’। फिर खिलखिला कर हंसने लगती हैं। गैलेडिया बताती है कि वह हिन्दी फिल्मों की शौकीन है। शाहरुख खान उसे बहुत पसंद है। कोलम्बिया में हिन्दुस्तानी संगीत बहुत पसंद है। खासकर गानों की धुनें। हम आगे बढ़ते हैं। एक स्विज दम्पति अपने नन्हें बच्चों के साथ झील के किनारे बैठे हैं। दूध से सफेद तीन बच्चे। रंग बिरंगे गर्म कपड़ों में तीनों बच्चों की उम्र एक-सी है। शायद दो साल के रहे होंगे।
 दम्पति की इजाजत लेकर हम इन बच्चों की तस्वीरें लेने लगते हैं। उन्हें बताता हूं कि मैं भारत से हूं और डा. असलम पाकिस्तान से। अपने बच्चों के साथ खेलती वह युवती हैरत भरे स्वर में पूछती है-‘यू बोथ ऑर टुगैदर।’ यानी आप दोनों एक साथ। हम बताते हैं कि यही सच है। दूरियां दो मुल्कों में है दिलों में नहीं। उन्हें यह सुनकर अच्छा लगता है। पर उन्हें अभी तक यकीन नहीं कि असलमपाकिस्तानी है।शाम ढलने लगी है। सेहत के लिए फिक्रमंद कई लड़कियां उस शांत पार्क में दौड़ रही हे। एक दूसरे में गुम प्रेमी जोड़े बैंचों पर बैठे हैं। ठंड में वह थोड़ा और सिमट गए हैं। हमें शहर लौटना है। वापसी ‌के लिए सिटी बस पकड़नी है। एक खम्बे पर लगी हरे रंग तख्ती पर बस स्टाप लिखा है। उसी पर एक टाइम टेबिल भी लगा है। इस स्टाप पर अगली बस का वक्त शाम 6.24 मिनट है। मैं घड़ी देखता हूं
 जिस पर मैंने स्विस टाइम सेट किया है। घड़ी ठीक 6.24 बता रही है और तभी सिटी बस स्टाप पर आकर रुक जाती है। हम दंग हैं। एकदम सही टाइमिंग। क्या महज इत्तेफाक है। एक स्‍थानीय मित्र बताते हैं कि नहीं...शहर की हर रेड लाइट पर सेंसर लगे हैँ। इसलिए रेड लाइट बस का साथ देती है। ठीक वक्त पर बस अपने नियत स्टाप पर आकर ब्रेक लगाती है। हम बस में बैठ गए हैँ। दूर से देखता हूं दुकानों की शो विंडों रोशनी से जगमगाने लगे हैं। महंगी स्वीज घड़ियां शो केस में सजी है। एक शो रूम में ऐश्वर्य राय बच्चन का एक आदमकद पोस्टर किसी स्विस घड़ी का प्रचार करता दिख रहा है। दुकानों के दरवाजे तक शीशे के हैं। अंदर की तेज चमकदार रोशनी से लगता है कि हर दुकान खुली है। पर ऐसा नहीं है। दुकानों के अंदर यह रोशनियां हमेशा जलती रहती हैं। चाहे दुकान खुली हो बंद। यानी विंडों शापिंग के लिए चौबीस घंटें का आमंत्रण। अब हम सड़क पर तेजी से झील को पीछे छोड़ते जा रहे हैं। दूर घुटने के बल बैठी महिला की मूर्ति हमें अब तक देख रही है। उदास निगाहों से। कह रही है अलविदा जिनेवा लेक फिर मिलेंगे कभी इस झील के किनारे।
 जारी

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