दयाशंकर शुक्ल सागर

Wednesday, January 29, 2014

खुद को मुर्दा कहने लगे थे महात्‍मा गांधी

महात्‍मा गांधी का अंतिम दिन-1
 30 जनवरी 1948 को महात्मा की गोली मार कर हत्या कर दी गई थी। गांधीजी पर अध्ययन के दौरान उनके जीवन के कई अनझुए पहलुओं से दो चार हुआ। इस दौरान यह बात भी सामने आई कि महात्मा गांधी के अंतिम शब्द 'हे राम' नहीं थे।  इस प्रसंग को मैंने अपनी किताब 'महात्मा गांधीः किताब ब्रह्मचर्य के प्रयोग' में कलमबंद किया है। किताब आने पर इसे लेकर काफी विवाद भी उठा जिसकी खबरें गुगल पर मौजूद हैं। महात्मा के अंतिम दिनों के बारे में यदि आपके पास कुछ तथ्य हों तो साझा कीजिए। पढ़िए हत्या के दिन का घटनाक्रम-
 
अपनी मौत से एक महीना पहले तक महात्मा अकेले और अलग-थलग पड़ गए थे। इस दौर में उनके निजी सचिव प्यारेलाल ने उन्हें सबसे ज्यादा दुखी पाया। महात्मा ने किसी को पत्र लिखा कि ‘आलीशान भवन में मैं प्रेमी मित्रों के बीच घिरा हूं परंतु मेरे भीतर शांति नहीं है।’ महात्मा के पुराने मित्रों ने उनसे किनारा कर लिया था। उनकी जी हुजूरी में लगे रहने वाले सभी कांग्रेस नेता राजसत्ता की मद में डूब चुके थे। वे उनकी सुनते नहीं थे। महात्मा को डर था कि वह किसी भी दिन उनसे आकर कहेंगे - ‘इस बूढ़े की बात हमने बहुत रखी, अब वह हमें अपना काम क्यों नहीं करने देता।’ उनके रास्ते पर चलने वाले सीमांत गांधी और विनोबा जैसे कुछ संत रह गए थे। महात्मा देख रहे थे कि ‘कांग्रेस के भवन की एक के बाद दूसरी ईंट ढीली होकर गिर रही है। कांग्रेस निस्तेज हो गई है।’ देश सेवा के नाम पर तमाशा चल रहा है। दिल्ली की फैशनपरस्त अमीर औरतें बन - संवर कर निराश्रितों के कैंप में स्वयंसेवा करतीं। महात्मा उन्हें उलाहना देते - ‘निराश्रित कैसे आप का विश्वास और आदर कर सकते हैं। जबकि आप रेशमी साड़ियां पहने इंद्र की परियां बनकर उनके बीच आती हैं।’ वह कहते कि ये आजादी नहीं है। भारत स्वाधीन नहीं हुआ। राजधानी मुर्दों की नगरी दिखाई देती है। हर आदमी दूसरे के खून का प्यासा है। हिंदुस्तानी अपने हिंदुस्तानी भाई से डरता है। इसे आप स्वाधीनता कहेंगे? अपने अंतिम वक्त में महात्मा चिड़चिड़े हो चले थे। बात - बात पर कहते - ‘देखते नहीं मैं अपनी चिता पर बैठा हूं।’ कभी कहते - ‘तुम्हें मालूम होना चाहिए कि एक मुर्दा तुमसे यह कह रहा है।’
30 जनवरी, 1948 को जीवन के अंतिम क्षणों में मनु और आभा महात्मा के साथ थीं। प्रार्थना सभा जाते वक्त महात्मा का हाथ दो नवयुवतियों के कंधे पर था। महात्मा इन लड़कियों से बात कर रहे थे। यह अंतिम बातचीत कुछ इस तरह थी।
आभा ने कहा : ‘बापू आपकी घड़ी को जरूर यह लगता होगा कि आप उसकी परवाह नहीं करते। आप उसकी तरफ देखते ही नहीं।’
मैं क्यों देखूं, जब दोनों मुझे ठीक समय बता देती हो?
दोनों लड़कियों में से एक ने पूछा : ‘लेकिन आप तो समय बताने वाली लड़कियों की तरफ देखते ही नहीं।’ बापू फिर हंसे। प्रार्थना स्थल की सीढ़ियों तक पहुंचते हुए उन्होंने अंतिम बात कही : प्रार्थना में दस मिनट देर से पहुंचा हूं इसमें तुम्हारी गलती है। नर्सों का यह धर्म है कि यदि साक्षात् ईश्वर भी बैठा हो तो भी उन्हें अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए। यदि किसी मरीज को दवा देने का समय हो और उसमें हिचकिचाहट हो तो मरीज तो मर जाएगा। यहां भी यही बात है। प्रार्थना में एक मिनट भी देर से आने से मुझे तकलीफ होती है।
और तभी नाथू राम गोडसे ने उन पर गोलियां बरसा दीं। जैसा कि बाद में मनु गांधी ने अपने बयान में कहा - ‘प्रार्थना सभा के बीच रस्सियों से घिरे रास्ते से जाते वक्त महात्मा ने जनता के नमस्कारों का जवाब देने के लिए लड़कियों के कंधों से हाथ उठा लिए। एकाएक भीड़ में से कोई भीड़ को चीरता हुआ उनकी ओर आया। मनु गांधी ने सोचा कि वह आदमी गांधीजी के पांव छूने के लिए आगे बढ़ रहा है। इसलिए उसने उसे वैसा करने के लिए झिड़का क्योंकि प्रार्थना को पहले ही देर हो चुकी थी। मनु ने उस आदमी का हाथ पकड़कर उसे रोकने की कोशिश की लेकिन उसने जोर से मनु को धक्का दिया जिससे उसके हाथ की ‘भजनावली’, माला और गांधीजी का पीकदान नीचे गिर गया। ज्यों ही वह बिखरी चीजों को उठाने के लिए झुकी, वह आदमी गांधीजी के बिलकुल सामने खड़ा हो गया और पिस्तौल से जल्दी - जल्दी तीन गोलियां दाग दीं। ‘गांधीजी के मुंह से जो अंतिम शब्द निकले, वे थे ‘हे रा...।’
जारी

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