दयाशंकर शुक्ल सागर

Friday, September 13, 2013

भूमिका 2 : ‘फिलासफी आफ मैरिज’


अपने व्यस्त राजनीतिक जीवन में भी महात्मा ने ब्रह्मचर्य पर विदेशी लेखकों की कई किताबें पढ़ डाली थीं। उन्हें वह विचार पसंद आते जिसमें ब्रह्मचर्य की जोरदार वकालत की जाती। इस मामले में सबसे दिलचस्प विलियम आर. थर्स्टन की किताबफिलासफी आफ मैरिजथी। यानीविवाह का तत्व ज्ञान इस छोटी सी किताब को सबसे पहले न्यूयार्क के स्टिफानी प्रेस ने छापी थी। यह किताब भारत तक गई। भारत में इसे मद्रास के गणेशन प्रकाशन ने छापा।

इस किताब के लेखक विलियम आर. थर्स्टन अमेरिका की सेना में मेजर थे। अमेरिकी सेना में उन्होंने करीब दस वर्ष तक काम किया। इस अवधि में उन्होंने दुनिया के अनेक भागों में यात्राएं कीं। अपने प्रवास के दौरान उन्होंने विवाह - सम्बन्धी कानूनों और रिवाजों के समाज पर पड़ने वाले असर का गहन अध्ययन किया। महात्मा खुद मानते थे कि इस अध्ययन के नतीजे चौंकाने वाले थे। यह नतीजे सचमुच बहुतबोल्डथे।

थर्स्टन ने पहला नतीजा निकाला कि प्रकृति का यह नियम कभी नहीं रहा कि स्त्री अपनी रोटी, निवास तथा संतान उत्पन्न करने के अपने प्राकृतिक अधिकार पर अमल करने के लिए किसी पुरुष के साथ जीवन - भर बंधी रहे और रोज रात कोएक ही बिस्तर पर उसके साथ सोने अथवा एक ही घर में उसके साथ रहने के लिए मजबूर हो।

थर्स्टन ने दूसरा नतीजा निकाला कि पुरुष और स्त्री का हर रात एक साथ सोना विवाह के वर्तमान नियमों और रिवाजों का परिणाम है। यह स्थिति अनियंत्रित विषय - भोग की प्रेरणा देती है। इससे पुरुष और स्त्री दोनों की सहज वृत्तियां विकृत हो जाती हैं और नब्बे प्रतिशत विवाहित स्त्रियां आंशिक रूप से वेश्याओं - जैसा जीवन बिताती हैं। अपनी छोटी - सी किताब में थर्स्टन नेबेलगाम सेक्सके खौफनाक नतीजों का भी विस्तार से जिक्र किया।

थर्स्टन ने निष्कर्ष निकाला कि अनियंत्रित संभोग से स्त्री में स्नायविक दुर्बलता जाती है। वह समय से पहले बूढ़ी हो जाती है। उसका शरीर रोग का घर बन जाता है। वह चिड़चिड़ी हो जाती है। उसका मन अशांत रहने लगता है। उसमें असंतोष की भावना पैदा हो जाती है और वह भलीभांति अपने बच्चों की भी सार - संभाल करने लायक नहीं रह जाती। इसी तरह अनियंत्रित संभोग पुरुष की वह शक्ति नष्ट कर देता है, जो अच्छी आजीविका कमाने के लिए जरूरी होती है। थर्स्टन ने आंकड़े दिए आज अमेरिका में विधुरों की अपेक्षा विधवाओं की संख्या बीस लाख अधिक है। इनमें से बहुत थोड़ी स्त्रियां युद्ध के कारण विधवा हुई होंगी। यानी अधिकांश विधवाओं के पति अनियंत्रित संभोग के कारण उम्र से पहले दिवंगत हो गए। कुल मिला कर बात यह किवैवाहिक जीवन की वर्तमान स्थिति से उत्पन्न अनियंत्रित विषय - भोग स्त्री और पुरुष दोनों में अपने जीवन की विफलता का बोध भरता है।

थर्स्टन नेयह भी बताया कि गरीब और अमीर वर्ग पर अनियंत्रित संभोग का क्या प्रभाव पड़ता है। उन्होंने नतीजा निकाला कि गरीब वर्गों में इससे बहुतेरे अनचाहे बच्चे पैदा होते हैं, जिनका पालन - पोषण असंभव हो जाता है। ऊंचे वर्ग के लोगों में अनियंत्रित विषय - भोग के कारण गर्भ निरोधक साधनों और गर्भपात के तरीकों को काम में लाया जाता है। अगर आम वर्ग की स्त्रियों को संतति - खंड निग्रह के नाम पर या और किसी नाम पर गर्भ - निरोधक तरीके सिखाए जाएंगे, तो समस्त जाति सामान्यतः रोगी, दुराचारी और भ्रष्ट हो जाएगी और अंत में नाश को प्राप्त होगी।

महात्मा ने इस पुस्तक के यह सभी अंश अपने लेख में उद्धृत किए। उन्होंने लिखा - ‘एक बात दुनिया - भर में सारे विवाहों पर समान रूप से लागू होती है। वह है, पति - पत्नी के लिए एक कमरे में और एक ही बिस्तर पर सोना। इसकी लेखक ने तीव्र निन्दा की है, जो मेरे विचार से सर्वथा उचित है। इसमें कोई शक नहीं कि पुरुष या स्त्री के स्वभाव में पाई जाने वाली अधिकतर काम - वासना इस धर्म - स्वीकृत अंधविश्वास का फल है कि विवाहित स्त्री - पुरुषों को अनिवार्यतः एक ही कमरे और एक ही बिस्तर का उपयोग करना चाहिए।

अंत में महात्मा ने अपने लेख के निष्कर्ष में लिखा - ‘परंतु प्रत्येक पति और पत्नी आज से ही यह दृढ़ निश्चय कर सकते हैं कि वे रात में कभी एक कमरे का या एक बिस्तर का उपयोग नहीं करेंगे और मनुष्य तथा पशु दोनों के लिए निर्धारित प्रजोत्पत्ति के एकमात्र उदात्त हेतु के सिवा दूसरे किसी हेतु से विषय - भोग नहीं करेंगे। पशु इस कानून का पालन निरपवाद रूप से करता है। मनुष्य को चुनाव की छूट होने से उसने गलत चुनाव करने की भयंकर भूल की है।3

महात्मा मानते थे कि पशुओं के मुकाबले मनुष्य जाति ने संभोग के चुनाव की छूट का बेजा इस्तेमाल किया। लेकिन पत्नी के साथ सो कर पति या पति के साथ सो कर पत्नी काम वासना से मुक्त तो नहीं हो सकते। महात्मा आत्मसंयम की बात करते थे। आत्म संयम का अर्थ था कि पति - पत्नी हमबिस्तर होकर भी निर्विकार रहें। पति - पत्नी संभोग तब करें जब उन्हें संतान की जरूरत महसूस हो। लेकिन यह बात व्यावहारिक नहीं थी। आम और सामान्य व्यक्तियों के लिए तो कतई नहीं। जैसा किफिलासफी आफ मैरिजपढ़ कर किसी विचारशील महिला ने थर्स्टन को लिखा किमान लें हम सभी संयमी बन गए। तो भी मोटे तौर पर हर दंपति को तीन से अधिक बच्चे हों तभी दुनिया की आबादी हद के अंदर रह सकती है। इसका अर्थ है कि सारी जिंदगी में उन्हें दो - चार बार ही संभोग सुख भोगने का अवसर मिल सकता है। इतना संयम क्या साधारण आदमी के वश की बात है? थर्स्टन इस सवाल का सीधा जवाब नहीं दे पाए थे।

दूसरी किताब जिसने महात्मा को प्रभावित किया वह थीटुवर्ड्स मॉरल बैंकरप्सीयानी नैतिक अराजकता। इसके लेखक थेपॉल ब्यूरो मूल पुस्तक फ्रांसीसी में थी लेकिन महात्मा ने इसका अंग्रेजी अनुवाद पढ़ा था। ब्रह्मचर्य के साथ कई और सवाल जुड़े थे। सबसे बड़ा सवाल संतति का था। अगर सारी दुनिया ब्रह्मचर्य व्रत ले और ईमानदारी से उसका पालन करे तो सृष्टि रुक जाएगी। वह संभोग से मिलने वाले आनंद के खिलाफ थे। उनका मानना था किस्त्री - पुरुष के मिलाप का हेतु आनंद भोग नहीं बल्कि सन्तानोत्पत्ति है। जब सन्तानोत्पत्ति की इच्छा हो तब संभोग करना अपराध है।जाहिर तौर पर वह संतति नियमन यानी बर्थ कंट्रोल के खिलाफ हो गए। उनकी नजर में संतान को जन्म देने से रोकने के लिए कृत्रिम साधनों का प्रयोग गलत था। कृत्रिम साधनों का प्रयोग यानी आनंद के लिए संभोग। और यह अपराध है।

महात्मा के ये विचार जब पहली बार प्रकाशित हुए तो हड़कंप मच गया। हिंदुस्तान में बुद्धिजीवियों का एक बड़ा तबका था जो महात्मा के इस विचार और चिंतन को केवल दकियानूसी बल्कि अवैज्ञानिक अप्रासंगिक मानता था। संतति नियमन से संबंधित लेख की प्रतिक्रिया में महात्मा के पास गुस्से से भरे पत्र आए। किसी ने उन्हें लिखा - ‘आप यह कहते हैं कि कृत्रिम - साधन हानिकारक हैं। जिसे सिद्ध करना है, आप उस बात को पहले से मानकर चलते हैं। संतति - नियमन सम्मेलन (लंदन, 1922) में यह प्रस्ताव 164 के विरुद्ध 3 मत से स्वीकार कर लिया गया था कि गर्भ - निरोध के स्वास्थ्यकर उपाय नीति, न्याय और शरीर - विज्ञान की दृष्टि से गर्भपात से बिलकुल ही भिन्न हैं और ऐसे उत्तम उपाय हानिकारक हों, यह बात किसी प्रमाण से साबित नहीं हो पाई है। मेरे खयाल से ऐसे विशाल चिकित्सक समुदाय का निर्णय सिर्फ कलम चला कर ही रद्द नहीं किया जा सकता।

एक अन्य पाठक ने लिखा - ‘आप फरमाते हैं समागम का उद्देश्य सुख प्राप्ति नहीं, संतानोत्पादन है। यह उद्देश्य किसका है? ईश्वर का? ऐसा है तो उसने कामवासना की सृष्टि किसलिए की?’ 4

लेकिन इन कठोर प्रतिक्रियाओं का महात्मा पर कोई असर नहीं पड़ा। ब्रह्मचर्य और संतति नियमन संबंधी महात्मा के लेख संकलित होकर तीन साल में ही एक पुस्तक का आकार ले चुके थे। पुस्तक का नाम उन्होंनेआत्मसंयम बनाम विषयासक्तिदिया। लोग ब्रह्मचर्य को लेकर महात्मा के क्रांतिकारी विचारों को जानना चाहते थे। पुस्तक का पहला संस्करण प्रकाशित होने के लगभग एक सप्ताह के भीतर हाथों - हाथ बिक गया।

महात्मा मानते थे कि ब्रह्मचर्य पर उनके विचार अभेद्य हैं। महात्मा खुद इसके लिए संघर्ष कर रहे थे। आत्मसंयम की लड़ाई लड़ रहे लोगों के मार्गदर्शन के लिए महात्मा ने कुछ नियम तैयार किए थे। उनका मानना था कि इन सूत्रों का पालन करके कोई भी आत्मसंयम की नौका पर बैठ सकता है। नियम कुछ इस प्रकार थे - ‘पति - पत्नी को अलग - अलग कमरों में रहना और एकान्त से बचना चाहिए। वासना जगाने वाले थिएटर, सिनेमा और नाच - तमाशे से बचना चाहिए।महात्मा ने यह भी बताया कि जब वासनाएं हावी हो जाएं तो क्या करना चाहिए। महात्मा के मुताबिक तबआप अपने घुटनों के बल बैठ जाएं और ईश्वर से सहायता के लिए प्रार्थना करें। मुझे राम नाम से सदा ही सहायता मिली है। बाहरी सहायता के रूप में आप कटिस्नान करें, इसके लिए आप अपनी टांगें बाहर करके ठंडे पानी के टब में बैठ जाएं। आप देखेंगे कि आपकी वासनाएं उसी क्षण शांत हो गई हैं। यदि आप कमजोर हों और आपको ठंड लगने का भय हो तो आप उसमें कुछ मिनट तक बैठे रहें।5
जारी

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