दयाशंकर शुक्ल सागर

Friday, September 13, 2013

भूमिका 3 :कस्तूर का कसूर


 

हर कामयाब इंसान के पीछे एक औरत होती है। महात्मा गांधी के संदर्भ में यह कहावत सही है या नहीं यह अपने आप में शोध का विषय है। लेकिन यह सच है कि महात्मा के ब्रह्मचर्य व्रत के पीछे कहीं दूर उनकी पत्नी कस्तूरबा गांधी भी खड़ी थीं। शरीर के धरातल पर महात्मा कस्तूर के कई बार करीब आए लेकिन मन की एक दूरी दोनों के बीच हमेशा एक दीवार बनकर खड़ी रही। कस्तूरबा एक विशुद्ध घरेलू औरत थीं। वह सही अर्थों में सह - धर्मचारिणी थीं। महात्मा प्रयोगधर्मी थे और उनकी प्रयोगधर्मिता उनके दाम्पत्य - जीवन में जहर घोलने वाली साबित हुई। महात्मा की काम वासना के चलते कस्तूरबा सारी जिंदगी अनपढ़ रह गई। यह बात महात्मा नेआत्मकथामें स्वीकार की है। कस्तूरबा के अनुभव लिखित रूप में दुनिया के सामने नहीं आए। लेकिन जिन लोगों ने कस्तूरबा को करीब से देखा और समझा उन्होंने कस्तूरबा को असहाय पाया। वह उस वातावरण के लिए नहीं बनी थीं जो वातावरण महात्मा ने अपने इर्द - गिर्द तैयार किया था।

    काम वासना से बेतरह घृणा करने वाले महात्मा गांधी का वैवाहिक जीवन कभी सुखी नहीं रहा। महात्मा कस्तूरबा से संतुष्ट नहीं थे। उनमें अकसर झगड़े होते थे। दक्षिण अफ्रीका में तो उन्होंने कस्तूरबा को घर से निकलने के लिए कह दिया था। गुस्से में वह कस्तूरबा को दरवाजे तक खींच कर ले आए थे। तब कस्तूरबा ने उनसे रोते हुए कहा था -  तुम्हें तो शर्म नहीं है। लेकिन मुझे है। जरा तो शरमाओ।6

    दुल्हन बनकर मोहनदास के घर आई कस्तूर बहुत सुंदर थीं। छोटा कद होने के बावजूद नाक नक्श आकर्षक थे। बाल चमकीले और त्वचा स्निग्ध थी।  शुरू के दिनों में महात्मा गांधी अपनी पत्नी कस्तूरबा के चरित्र पर संदेह करते थे लेकिन बाद में स्थिति उलट हो गई। गुजरात छोड़ने के बाद दूसरी स्त्रियों के प्रति महात्मा का सहज खिंचाव देख कस्तूरबा महात्मा पर संदेह करने लगी थीं। उन्हें लगता कि अगर वह मर गईं तो महात्मा दूसरी शादी कर लेंगे।  लेकिन महात्मा उन्हें भरोसा दिलाते - ‘मैं तुमसे विश्वासपूर्वक कहता हूं कि यदि तुम चली ही जाओगी तो मैं तुम्हारे पीछे दूसरी शादी नहीं करूंगा। ऐसा मैं कई बार कह भी चुका हूं। तुम ईश्वर में आस्था रख कर प्राण त्यागना।7

    दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह संघर्ष के दौरान महात्मा फोक्सरस्ट जेल में थे। कस्तूरबा रक्तस्राव से पीड़ित थीं और उनकी हालत चिंताजनक थी। तब महात्मा ने जेल से बा को लिखा - ‘ ...फिर भी मेरी बदनसीबी से कहीं ऐसा हो कि तुम चल बसो, तो मैं इतना ही कहूंगा कि मेरे जीते - जी तुम मेरे वियोग में भी मर जाओ तो इसमें कुछ बुरा नहीं है। तुम पर मेरा इतना स्नेह है कि तुम मरकर भी मेरे मन में जीवित रहोगी। तुम्हारी आत्मा तो अमर है।8

    आत्मा सिर्फ कस्तूरबा की अमर नहीं थी। सबकी आत्माएं अमर होती हैं। ऐसा हर धार्मिक हिंदू का ख्याल है। मिलन और वियोग के तमाम उतार - चढ़ाव के बावजूद पति - पत्नी में खूब झगड़े होते थे। पति पर संकट के समय भारतीय नारी होने के कारण कस्तूरबा भलेदेवदूतबन जाती हों लेकिन सामान्यतः दोनों एक - दूसरेको फूटी आंख नहीं सुहाते थे। हिंदुस्तान वापस लौटने से एक साल पहले 1914 में भी गांधीजी की अपनी पत्नी के बारे में राय थी किवह ऐसी जहर उगलने वाली महिला है जैसी मैंने अपने पूरे जीवन में कभी नहीं देखी। वह कभी नहीं भूलती, मुझे कभी माफ नहीं करती।वे कहते कस्तूरबा मेंअत्यंत सूक्ष्म रूप में राक्षस और देवता की भावनाएं निवास करती हैं।9 बदले में कस्तूरबा गांधीजी कोफुंफकारते हुए सांप जैसाबतातीं।

    हिंदुस्तान लौटने पर भी महात्मा के अपनी पत्नी से संबंध अच्छे नहीं हो सके थे। झगड़े खत्म नहीं हुए बल्कि बढ़ गए। महात्मा के लड़कियों और महिलाओं का सम्पर्क भी कस्तूरबा को पसंद नहीं था। बाद के वर्षों में कस्तूरबा अपना सारा गुस्सा उन लड़कियों पर उतारतीं जो महात्मा के सान्निध्य में रहने लगी थीं या उनके प्रयोग का हिस्सा बन गई थीं। कस्तूरबा का स्वभाव और कठोर और रुखा हो गया था। महात्मा अपनी महिला मित्रों को बा के बारे में पहले ही सचेत करते किउसका व्यवहार बराबर मीठा नहीं होता। कभी - कभी तो वह अपने व्यवहार में क्षुद्रता का संकेत भी दे सकती हैं।10

    जैसा कि महात्मा ने अपनी मित्र डेनिश कन्या एस्थर फैरिंग, जिसे वहमेरी प्यारी बिटियाकहते थे, को 51 साल की अपनी पत्नी कस्तूरबा के बारे में लिखा - ‘...यह स्त्री सत्य को क्यों नहीं देखती, या मेरे स्नेह का प्रतिदान क्यों नहीं देती। जिस प्रकार एक तेंदुआ अपने (खाल के) धब्बे नहीं बदल सकता उसी तरह वह अपने स्वभाव के प्रतिकूल नहीं जा सकती।11

    आगे चलकर बा का यही बर्ताव मीरा के साथ हुआ। मीरा ने अपने प्रिय लेखक रोमां रोला को आश्रम के बारे में सब कुछ बताया था। इसी बातचीत के आधार पर रोमां रोला ने अपनी फ्रेंच डायरी इंदेमें कस्तूरबा का एकदम सटीक चित्र खींचा। उन्होंने लिखा - ‘...गांधीजी की पत्नी साध्वी महिला हैं, वे आत्मत्याग स्वीकार करके पति के महान व्रत की अनुगामिनी बनीं। लेकिन उन्होंने कभी पति का विशेष समर्थन नहीं किया। सबसे बड़ी बात वह अंतःपुर की गृहणी हैं। आश्रम के विराट परिवार की आबोहवा में वह बहुत प्रसन्न नहीं रहतीं। इसी से गांधीजी की पत्नी असहाय की तरह अपने को रसोईघर में ही कैद रखती हैं। यह सोचकर प्रसन्न होती हैं कि कम से कम यहां तो उनका एकछत्र राज्य है। आश्रम में विदेशियों का आना वे अच्छी नजरों से नहीं देखतीं और शुरू में उनके चलते मीरा को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। अपना खाना बनाने के लिए मीरा को जब रसोई में जाना पड़ता तो वे जान बूझ कर ऐसी तमाम चीजें आगे डाल देतीं जिससे मीरा को बुरा लगे बिना रहे। यह सब गांधीजी की पत्नी करती थीं ताकि मीरा आश्रम छोड़कर भागने को लाचार हो जाए।12

    सच तो यह था कि कस्तूरबा को आश्रम जीवन से घृणा थी विदेशी लोगों से। दक्षिण अफ्रीका में वह आश्रम जीवन का लंबा अनुभव ले चुकी थीं। वहां कई विदेशी उनके साथ रहे थे। मिली पोलक जैसी विदेशी महिलाएं तो उनके घर पर ही रही थीं। बा को असल दिक्कत इन महिलाओं के महात्मा के साथ होने वाले अंतरंग संबंधों से थी। सामान्य हिंदू महिलाओं की तरह बा को भी नहीं पसंद था कि अन्य महिलाएं उनके पति की सेवा में रहें। इसलिए बा का स्वभाव रूखा और कठोर होता जा रहा था। उनके इस स्वभाव से महात्मा हमेशा भयभीत रहते। जैसा कि महात्मा के जीवनीकार लुई फिशर ने लिखा - ‘गांधीजी मनुष्य से डरते थे, सरकार से, जेल से या गरीबी से, मृत्यु से। लेकिन वह अपनी पत्नी से जरूर डरते थे।13

    वह कुछ भी कह सकती थीं कुछ भी कर सकती थीं। सबको अपने आगे झुकाने वाले महात्मा बा के सामने फीके पड़ जाते थे क्योंकि बा से बेहतर शायद उन्हें कोई नहीं जानता था। बा को लेकर महात्मा सारी जिंदगी अपराध बोध से ग्रस्त रहे। जहां - तहां महात्मा ने माना कि उन्होंने बा के साथ न्याय नहीं किया। बा की मौत 22 फरवरी, 1944 को आगा खां महल जेल में हुई। वहीं उनका अंतिम संस्कार भी हुआ। देह जलने के लिए लकड़ी कम पड़ गई।बा के शरीर से बहुत पानी निकला था। दहन क्रिया पूरी होते - होते शाम के चार बज गए। महात्मा बा की चिता के पास ही बैठे थे। बापू के मित्रों ने उन्हें कई बार समझाया कि आप थक जाएंगे। लेकिन बापू ने वहां हटने से इंकार किया। उन्होंने हंस कर जवाब दिया -  ‘62 वर्ष के साथी को क्या अब इस तरह छोड़ सकता हूं। इसके लिए तो बा मुझे माफ करेगी।14

    खुद महात्मा ने अपनी पत्नी कस्तूरबा के साथ एक बिस्तर पर सोना बहुत पहले छोड़ दिया था। महात्मा ने ब्रह्मचर्य व्रत लेने के बाद बा के साथ 38 साल का वैवाहिक जीवन जिया। कस्तूरबा को वह अपनी बहन मानने लगे थे। वैसे महात्मा 1901 से ही ब्रह्मचर्य साधने में लगे थे लेकिन सफल नहीं हो पा रहे थे। संयम बरतने के लिए उन्होंने कस्तूरबा से अलग सोना शुरू कर दिया। रात में वह तब तक काम करते जब तक थक कर सीधे सो जाएं। लेकिन इसके बावजूद वह खुद को संयमित नहीं रख पाए। ब्रह्मचर्य का निश्चय करने के बाद उन्हें एक संतान और हुई। ब्रह्मचर्य का अंतिम संकल्प उन्होंने 1906 में लिया। इस पूरे निश्चय में कस्तूरबा कहीं नहीं थीं। ब्रह्मचर्य का अंतिम संकल्प लेने से पहले उन्होंने बा से सलाह तक लेने की जरूरत नहीं समझी। उन्होंने बा को केवल जानकारी दी। बा ने उनके व्रत का समर्थन किया और विरोध। तटस्थ भाव से वह उनके ब्रह्मचर्य व्रत और आगे चल कर ब्रह्मचर्य के कथित प्रयोगों की साक्षी बनी रहीं तब तक जब तक उन्होंने 22 फरवरी, 1944 को आगा खां महल में अंतिम सांस नहीं ली। 

    कस्तूरबा के साथ एक बिस्तर पर सोना महात्मा ने भले छोड़ दिया हो लेकिन बाद में ब्रह्मचर्य के अपने प्रयोगों के दौरान वह कई लड़कियों के साथ एक ही बिस्तर पर सोए। इस प्रयोग की अंतिम परिणति तब हुई जब वह अपने जीवन के अंतिम कुछ वर्षों में अपनी बीस वर्षीय पोती समेत आधा दर्जन लड़कियों के साथ एक ही बिस्तर पर निर्वस्त्र होकर सोने लगे। थर्स्टन को पढ़ते वक्त महात्मा को शायद यह अंदाजा नहीं रहा होगा कि आत्मसंयम का प्रयोग करते - करते वह इतना आगे निकल जाएंगे।
जारी 

 

No comments: