दयाशंकर शुक्ल सागर

Friday, September 13, 2013

भूमिका 5 : मगर सब चुप रहे

महात्मा के ब्रह्मचर्य के प्रयोगों की जानकारी आश्रमवासियों या महात्मा के बहुत करीब रहने वाले उनके शिष्यों और निकट मित्रों को ही थी। देश की आजादी से जुड़े पं. जवाहरलाल नेहरू जैसे बड़े नेता तो इस बारे में बापू से बात करने या पत्र व्यवहार करने की हिम्मत नहीं जुटा पाए। वह केवल राजनीतिक मसलों पर महात्मा से राय लेते थे। बाद में तो उन्होंने यह काम भी बंद कर दिया था। भारत की आजादी के इतिहास पर पं. जवाहरलाल नेहरू ने खूब लिखा। लेकिन महात्मा के ब्रह्मचर्य प्रयोग पर उन्होंने कभी कुछ नहीं कहा। अपनी जेल डायरी में उन्होंने एक दफा इस ओर केवल इशारा किया था। 30 अप्रैल 1935 को उन्होंने लिखा - ‘बापू भी - या तो पूरे असहयोगी रहते हैं या फिर पूरी तरह सहयोग करने वाले। ...वे सिर्फ अति की हद तक ही सोच सकते हैं। या तो बेहद रूमानी या फिर बेहद संयम। शायद आल्डस हक्सले ने ही कहा है कि बैरागी डॉन जुआन का दूसरा रूप है।जवाहरलाल नेहरू वाङ्मय के छठें खंड के पेज 344 के फुटनोट में यह भी बताया गया है किपेशेवर डॉन जुआन अपनी ताकत इसी जानलेवा तरीके से बर्बाद करता है जैसे पेशेवर बैरागी करता है, आईने में अपने अक्स को देखकर।
    आश्रम में रहने वाले महात्मा के कुछ शिष्य और शुभचिंतकों का इन प्रयोगों को लेकर हमेशा विरोध रहा लेकिन किसी ने भी इन बातों को आश्रम की चहारदीवारी से बाहर ले जाने की हिम्मत नहीं की। मसलन आश्रम के प्रबंधक मुन्नालाल शाह महात्मा के इन प्रयोगों के सबसे बड़े विरोधी थे। खुद शाह की पत्नी महात्मा के  प्रयोग की हिस्सेदार बनी थीं। शाह ने बाकायदा शास्त्रों का उदाहरण देकर बताया कि महात्मा जो कर रहे हैं वह एकदम गलत है। लेकिन महात्मा ने इन उदाहरणों को ही दोषपूर्ण करार दे दिया। महात्मा मनोवैज्ञानिक रूप से अपने विरोधी को घेर लेते। जैसा कि उन्होंने शाह से कहा -  मैं जानता हूं कि मेरा यह प्रयोग बहुत खतरनाक है, लेकिन इसके परिणाम भी महान हो सकते हैं। यह प्रयोग मेरे मन से तभी निकलेगा जब मैं इसमें कोई अनिष्ट देखूंगा। तुम सब मेरी बुद्धि पर आघात कर सकते हो। हृदय पर एक ही तरह से आघात किया जा सकता है,मेरा त्याग करके। तुमने जो विचार व्यक्त किए हैं, यदि वे ठीक हैं तो मेरा त्याग करना और मेरा भंडाफोड़ करना तुम्हारा धर्म है।25

    इसी तरह महात्मा ने अपने टाइपिस्ट परशुराम को भावनात्मक तौर पर घेर लिया था। वह इन प्रयोगों से इतना आहत हुआ कि उसने महात्मा का सचमुच त्याग कर दिया। उन्होंने परशुराम से कहा था कि उसने जो कुछ यहां पर देखा वह उसेसार्वजनिक करने के लिए स्वतंत्रहै। लेकिन महात्मा के जीवित रहते महात्मा का कोई करीबी ऐसा करने का साहस नहीं जुटा पाया। महात्मा के प्रयोगों से निर्मल कुमार बोस भी सहमत नहीं थे। लेकिन वह भी महात्मा के जीते जी महात्मा और अपने बीच हुए पत्र व्यवहार को सार्वजनिक करने का साहस नहीं जुटा पाए। महात्मा का विरोध करने वाले उनके साथी किशोरलाल मशरूवाला, केदारनाथ कुलकर्णी, नाथ जी, स्वामी आनंद, जेबी कृपलानी, सरदार पटेल, घनश्यामदास बिड़ला, विनोबा भावे किसी ने भी महात्मा के जीवित रहते अथवा उनकी मृत्यु के बाद इस विषय पर मुंह नहीं खोला। महात्मा के करीबी रहे सी. राजगोपालाचारी ने बहुत बाद में यह स्वीकार किया किउनका जन्म इतने पवित्र वातावरण में हुआ था कि उनका ब्रह्मचर्य के प्रति स्वाभाविक झुकाव था लेकिन वास्तव में वह काम को लेकर बेहद आक्रांतथे।26

    महात्मा दावा करते थे कि - ‘मैंने शायद हजारों - हजार स्त्रियों का स्पर्श किया है लेकिन मेरे स्पर्श में वासना लेशमात्र भी नहीं रही। मैं कुछ स्त्रियों के साथ बिलकुल नग्नावस्था में लेटा हूं लेकिन वासना - तृप्ति के उद्देश्य से कभी नहीं। मेरा स्पर्श हमारे पारस्परिक उत्थान के निमित्त रहा है। यदि कोई ऐसी स्त्री हो जिसने इसके विपरीत कुछ अनुभव किए हों, तो मैं सचमुच चाहता हूं कि वह मेरे खिलाफ गवाही दे।27

    लेकिन महात्मा के खिलाफ गवाही देने कभी कोई महिला सामने नहीं आई। यह कल्पना करना भी व्यर्थ है कि महात्मा किसी के साथ कोई जोर - जबरदस्ती करते। महात्मा के प्रयोग से लड़कियां और महिलाएं स्वेच्छा से जुड़ी थीं। ऐसे में उनकी बगावत का कोई सवाल ही नहीं उठता था। महात्मा अपने प्रयोग में शामिल होने के लिए लड़कियों को खुद आमंत्रित करते थे। अगर इन लड़कियों में प्रयोग को लेकर वह जरा भी हिचक देखते तो साथ सुलाने के लिए मना कर देते। ऐसा शुरू में उन्होंने आभा और कंचन के साथ किया। ये लड़कियां महात्मा के सामने नग्न होने से इसलिए इंकार नहीं कर पाईं कि कहीं बापू नाराज हो जाएं। लेकिन महात्मा को पता चला कि इन लड़कियों की उनके साथ सोने में रुचि नहीं है तो महात्मा ने उन्हें रोक दिया। नोआखली में बंगाली लड़की आभा ने खुद महात्मा के साथ सोने की इच्छा जाहिर की तो वह झट से तैयार हो गए। महात्मा के ब्रह्मचर्य के प्रयोग के नाटक से जुड़े ये पात्रअपना मुंह इतनी बुरी तरह बंदरखते थे कि सत्य का दम घुट कर रह गया। ये सभी लोग जानते थे कि हिंदुस्तान की जनता के बीच महात्मा इतनी ऊंचाई पर पहुंच गए हैं उन पर किया गया कोई भी हमला आखिर में खुद जुबान खोलने वालों को तहस - नहस कर देगा। महात्मा की शहादत के बाद तो विवाद के ये आपत्तिजनक अध्याय हमेशा के लिए बंद कर दिए गए।
जारी 
 

 

 

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