दयाशंकर शुक्ल सागर

Monday, September 9, 2013

मकाऊ तुम्‍हें जीत कर जाने नहीं देगा सलीम


 मकाऊ डायरी 3


और इस वक्त मैं दुनिया के सबसे बड़े जुआघर में हूँ। होटल के इस कसीनो में कोई दो हजार मेजों पर जुआ चल रहा है। मकाऊ में सुबह के पाँच बजे हैं और कसीनो खचाखच भरा है। रात भर जुआ चला और अब भी चलेगा। ये खेल 24 घंटे चलता है। करोडों रुपये का दांव लगता है। दुनिया भर के धनकुबेर हारते हैं लेकिन उनके चेहरे पर शिकन तक नहीं होती। यहाँ सब जुआरी नहीं हैं, कुछ मेरे तरह दर्शक भी हैं। यहाँ दर्शक बनने पर कोई मनाही नहीं है क्योंकि चालाक कसीनो वाले जानते हैं ये दर्शक भी थोड़ी देर में जुआ खेलने पर मजबूर हो जायंगे। और मेरे साथ यही हुआ। पहले दो दिन मैं यहाँ सिर्फ़ दर्शक था। तीसरे दिन सब खेल कुछ समझ में आया तो लगा किस्मत पर दांव लगाया जा सकता है। मैंने अपने मित्र ली यान से पूछा कि कैसा रहेगा। वह मुस्कुराया और चीनी में कुछ बोला मैंने पूछा इट-मीन्स। उसने अंग्रेजी में इसका मतलब बताया की दुनिया का कोई जुआघर आपको जीतकर नहीं जाने देता । जुआ घर से मकाऊ तुम्हें जीत के जाने नहीं देगा। थोड़ी देर के लिए आप जीत भी जाए लेकिन अंततः आपको हारना है । पर मैं तय कर चुका था। खेलने के लिए आपके पास हांगकांग डालर होने चाहिए। मैंने अमेरिकी डालर का जो फारेक्स प्लस प्री पेड कार्ड बनाया था वह यंहा नहीं चलता क्योंकि इस कार्ड पर आपका नाम नहीं होता। दूसरा विकल्प था मैं एटीएम का इतेमाल करूँ। जुआघर में तमाम एटीएम हैं। लेकिन एटीएम या मेरे कार्ड को स्वीकार नहीं किया। बेशक ये मेरी नहीं बल्कि एचडीऍफ़सी बैंक की विश्‍वसनीयता पर सवाल खड़ा करता है। लेकिन मैं खुशकिस्मत था की मेरे एटीएम ने काम  नहीं किया। देखिये आगे क्या हुआ।
मेरे पर्स में 100 हांगकांग डालर के दो नोट थे। यानी करीब दो हजार रूपये। किस्मत आजमाने के लिए इससे शुरुआत हो सकती थी। कम से कम कहने को हो जाता की हमने भी मकाऊ के कसीनो में दांव लगाया। हालाँकि मैं जानता था इस पैसे से मैं दो दांव से ज्यादा नहीं खेल सकता लेकिन शुरुआत हो सकती है।
हो सकती है उस खेल में डालर या तो दोगुना होता है उस खेल का नाम 'बकाए' है। इस खेल में डालर या तो दोगुना होता है या फिर सारा पैसा डूब जाता है। सिर्फ एक मिनट का खेल है। मेज पर दो विकल्प हैं। 'बैंकर' और 'प्लेएर'। आपको अनुमान लगाना है कि 'बैंकर' जीतेगा या 'प्लयेर'। अगर आपको लगता है कि 'बैंकर' जीतेगा तो मेज पर जहाँ 'बैंकर' लिखा है वहां 100 डालर का एक सिक्का रख दीजिये। आप चाहे तो 100 डालर के दस या सौ सिक्के भी रख सकते हैं। अगर आपको लगता है कि इस बार प्लयेर जीतेगा तो सिक्के प्लयेर वाले खाने पर रखिये। जुआ खिलाने वाला एक मशीन से 'बैंकर' और प्लयेर के लिए ताश के 3 -3 पत्ते निकालेगा। ये पत्ते आपको स्क्रीन पर दिखेंगे। वह एक बटन दबाएगा। अगर प्लयेर जीता तो दांव पर लगाये गए आपके सिक्के अपनी जगह मौजूद हैं। अब खेल खिलने वाला या वाली उतने ही सिक्के के दोगुने सिक्के वहीँ रख देंगे। ये सरे सिक्के आपके। यानि 100 डालर के बदले 200 डालर। 1000 डालर के बदले 2000 डालर। 20,000 डालर कि जगह 40,000 डालर। यानी दिमाग लगाने कि कोई गुंजाइश नहीं। एक या दो। मैंने प्लयेर पर 200 डालर लगाये थे और एक मिनट में मेरे पास 400 डालर थे। मूल धन 200 डालर मैंने जेब में रखे और जीते हुए 200 डालर को इस बार 'बैंकर' के खाने पर रख दिया। मशीन ने 3 -3 पत्ते निकाले। बटन दबाया।'प्लयेर' के खाने में अन्य 5 खिलाडियों के सारे सिक्के मेज के नीचे छुपे डिब्बे में गिर गए। 'बैंकर' के खाने पर मेरे 200 डालर और बैंकर पर दांव लगाने वाले 7 और खिलाडियों के सिक्के मुस्करा रहे थे। क्योंकि हम सब जीते थे। अब मेरे पास 600 डालर थे। मैंने अपने आप से कहा बस इतना काफी है अब दूसरा खेल समझा जाय। बगल की मेज पर कई हिंदुस्तानी जुआ खेल रहे हैं। इस खेल का नाम रूलेट है। ये दुनिया भर के कसीनो का लोकप्रिय खेल है। इससे पहले ये खेल मैंने किसी फिल्म में देखा था। एक कटोरा आकर मशीन में गेंद घूमती रहती है। वह जिस नम्बर पर रूकती है वह नम्बर जीत जाता है। उस नम्बर पर आपने जितने डालर लगाये हैं उससे 36 गुना डालर आपको मिलेंगे। उस नम्बर के आसपास के नम्बरों पर अगर आपने दांव लगाया है तो आपको 8 गुना पैसा मिलेगा। इवन और आड़ नम्बर पर भी पैसा लगा सकते हैं। इसमें आपका पैसा दोगुना हो जायेगा। इसी तरह से सारे खेल चलते रहते हैं। इस खेल में सबकुछ आपकी किस्मत पर है।
रोचक खेल था। समझ में भी आ गया। मैंने अपनी जेब से 100 -100 के डालर के 6 सिक्के अलग-अलग खेलो में लगा दिए। मैंने पहला दांव 21 नंबर पर लगाया था क्योंकि ये मेरी जन्मतिथि है। इसमें लगे थे 200 डालर। बाकि 400 डालर अलग खेलों पर। कटोरानुमा छोटी-सी मशीन में वो छोटी-सी गेंद घूमी और 15 ,18 ,19 नंबर पर अटकी हुई 21 पर आकर रूक गई। जुआ खिलाने वाली लड़की ने 7200 डालर गिन कर मेरे सामने रख दिए। मेज के आसपास बैठे अन्य जुआरियों  की जैसे चीख निकल गई। अब मैं सात हजार डालर का मालिक था। यानी करीब 56,000 रूपये। एक घंटे के खेल में मैं 2000 से कहल शुरू कर 56,000 रूपये जीत चुका था। पर ज्यादातर लोग मेरी तरह खुशकिस्मत नहीं। मुझे वहां एक भी हिंदुस्तानी ऐसा नहीं दिखा जिसका चेहरा ख़ुशी का दमक रहा हो। मैं वहां अकेला हूँ, जो खुश हूँ।
सुबह के सात बज गए हैं। मैं रत भर यही खेलता रहा।नींद का दूर-दूर तक कोई निशान नहीं।मैं कसीनो में घूमता रहा। जो खेल थोडा भी समझ में आता खेल लेता। कभी हारता कभी जीतता। सच पूछिए तो हरने के लिए मेरे पास मेरा कुछ नहीं था। वह सारे हांगकांग डालर इसी कसीनो ने मुझे दिए थे।और एक वक्त ऐसा आया जब मेरी जेब में सिर्फ 200 डालर बचे थे। ब्बकी सब मैं हर चुका था।आब मैं भी उन्ही हारे हुए लोगों की भीड़ के बीच शामिल हूँ।
56,000
रूपये हारने का दुःख है। इस फ्री का पैसे से मैं अपने मित्रों के लिए कई सरे गिफ्ट लेकर लौट सकता था। पर अब नहीं।मुझे अपने चीनी मित्र की बात याद आई-'जुए में आप कभी नही जीतते हमेशा गवांते हैं'। और ये सही है।पर इस अनुभव ने मुझे अंतररास्ट्रीय स्तर का जुआरी जरूर बना दिया।ये कोई फ़ख करने की बात कतई नहीं है लेकिन अनुभव एक एसी चीज है जो आप खरीद नहीं सकते न किसी जुए में जीत सकते हैं। ये बड़ी कीमती चीज है।खासतौर से तब जब इसके लिए आपको कोई कीमत न चुकानी पड़े।









No comments: